जगमोहन रौतेला
केदारनाथ में 2013 में आई आपदा के दस साल बाद भी वहां मुनाफे के अवसर तलाशे जा रहे हैं. किसी ने क्या सीखा उस भयावह आपदा से? वहां पहले से ज्यादा लोहे-सीमेंट-कंक्रीट का ढेर कथित विकास के नाम लगाने का शर्मनाक खेल जारी है. वही जोशीमठ में भी होगा. पुनर्वास के नाम पर कई साल तक करोड़ों-अरबों की बंदरबांट जारी रहेगी. चंट-चालाक-मक्कार लोग बढ़िया मुआवजा हड़प लेंगे और आमजन फिर से रोने-कलपने के लिए छोड़ दिया जाएगा. उसे दसियों लोग यह समझाने में लगे रहेंगे कि जब किस्मत ही खराब हो तो कोई क्या कर सकता है.
नैनीताल की माल रोड पिछले चार साल से धँस रही है. बलिया नाले वाला एक हिस्सा हर साल दरक रहा है. किसी को क्या फर्क पड़ रहा है? सिवाय दो-चार दिन कथित विशेषज्ञों की कमेटी के दौरे के! कुछ दिन बाद उनकी रिपोर्ट की चर्चा अवश्य होती है, पर इस पर अमल कभी नहीं होता. क्यों नहीं होता? इस पर कभी कोई चर्चा तक नहीं होती. यही जोशीमठ के बारे में हुआ है. 1976 में बनी मिश्रा कमेटी ने तब ही जोशीमठ को बहुत ही संवेदनशील घोषित करते हुए, वहां हर तरह के निर्माण कार्यों पर रोक लगाने की मांग की थी. पर हमने क्या किया? तब तो सबको जोशीमठ में एक अदद होटल, मकान चाहिए था, यात्रा मार्ग का पड़ाव जो हुआ। उसी होड़ ने कच्चे पहाड़ में अथाह लोहे, सरिया, सीमेंट का बोझ लाद दिया। वह बोझ सहन नहीं कर पाया तो अब खिसक रहा है.
अब जोशीमठ को नहीं, जनता को बचाओ. जोशीमठ के हत्या की सुपारी तो “विकास“ के नाम पर बहुत पहले ले ली गई थी. हत्यारे अब जाकर सफल होते दिखाई दे रहे हैं. ऐतिहासिक व सांस्कृतिक शहर टिहरी की हत्या में तो “मुआवजा“ लेकर हम खुद शामिल हो गए थे. जोशीमठ में भी “मुआवजे“ से हमारा मुँह बंद हो जाएगा. हम फिर “विकास“ की आड़ लेकर किसी दूसरे शहर की हत्या की साजिश में शामिल हो जायेंगे. पर जिंदा शहरों की हत्या की साजिश रचने वाले “विकास“ के खिलाफ एकजुट नहीं होंगे.
पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील औली तक में दर्जनों होटल बनाने की अनुमति के दी. भाजपा की पिछली सरकार के एक मुख्यमन्त्री ने तो एक बिगड़ैल धनपशु को वहां अपनी बेटी की शादी करने की अनुमति तक दे दी. आज जितने भी नेता पक्ष व विपक्ष के जोशीमठ की तबाही के लेकर बड़े-बड़े बयान दे रहे हैं, ये सारे के सारे तब उस भ्रष्टाचारी धनपशु के आगे न केवल नतमस्तक थे, बल्कि उसकी बेटी की शादी में हजारों के नेग तक दे आए थे. जब कुछ संवेदनशील लोगों ने उस शादी का विरोध किया तो उन्हें हमेशा की तरह विकास विरोधी कहा गया. एक कथित पर्यावरणविद् व पद्म सम्मान धारी ने तो तब अपनी फेसबुक पोस्ट पर यह तक लिख दिया कि अगर उस धनपशु की बेटी की शादी से राज्य का पर्यटन व्यवसाय बढ़ता है तो इसमें गलत क्या है?
उस शादी ने औली के संवेदनशील बुग्याल की कुकुरगत्त कर दी थी. महीनों तक वहां से साफ पानी बहने की बजाय गंदगी बह रही थी. पर हर बात में पैसा कमाने की सोच से भविष्य की बर्बादी पर किसी ने बात तक नहीं की. हमारे सत्ताधीशों व उनकी चापलूसी करने वाले बड़े बाबुओं की चलती तो वहां अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बना चुके होते अब तक. सरकारों व धंधेबाजों के साथ स्थानीय लोग कौन सा कम हैं? सबको जोशीमठ में एक होटल और मकान चाहिए था. 1976 की मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट पर किसने गम्भीरता दिखाई. नगर पालिका तक ने चुप्पी साध ली. जब बर्बादी व तबाही निश्चित हो गई है तब बचाने का शोर उठ रहा है.
जोशीमठ पर खतरा तो 40-45 साल पहले था। अब तो वह तबाही के मुहाने पर खड़ा है। इस तबाही को सरकारों, व्यवस्था और आमजन ने खुद आमंत्रित किया। पर इस तबाही के बाद कोई दूसरा शहर तबाह ना हो, इसके लिए हम आगे भी नहीं सोचेंगे और ना इसके लिए कुछ करेंगे। हिमालय की पीड़ा की खुद हिमालय वासियों ने अनदेखी की है। अगर हिमालय वासी अपने हिमालय की चिंता करते तो किसी सत्ता, व्यवस्था और दलालों की हिम्मत नहीं थी कि वह हिमालय के साथ लगातार छेड़छाड़ करती और उसे जख्म देती रहती। जिसके दुष्परिणाम हिमालय वासियों को भोगने पड़ रहे हैं। अगर हम अब भी इस मामले में सचेत नहीं हुए तो आने वाले दिन और भयावह होंगे। सवाल अब केवल जोशीमठ का नहीं बल्कि यहां बन रहे विनाशकारी परियोजनाओं पर गंभीरता से रोक लगाने और इस संवेदनशील हिमालय राज्य के लिए नई नीति बनाने का है। जो सरकारें कभी नहीं करेंगी और आम आदमी मुआवजे-मुआवजे, विस्थापन, पुनर्वास इसमें ही उलझ कर रह जाएगा
व्यवस्थाएं व सरकारें हमेशा से निर्दयी रही हैं. उनकी बचाने की उम्मीद करना अपनी बर्बादी को आमंत्रण देना है और कुछ नहीं.