नैनीताल समाचार टीम
हरेले से एक दिन पूर्व, 15 जुलाई को जोशीमठ (जनपद चमोली) के निकट हेलंग गाँव की मन्दोदरी देवी और उनकी तीन साथी जंगल से घास लेकर घर लौट रहे थे। पहाड़ का यह एक सामान्य दृश्य है। मगर उस रोज मोटर सड़क पर उन्हें उत्तराखंड पुलिस और विष्णुगाड़ पीपलकोटी परियोजना में तैनात औद्योगिक सुरक्षा बल के लगभग एक दर्जन जवानों ने घेर लिया। उनके साथ बदसलूकी की गई, उनकी घास छीन ली गई और उन्हें घण्टों थाने में बिठाये रखा गया। उनसे पानी के लिये भी नहीं पूछा गया। इन घसियारियों के साथ डेढ़-दो साल की एक बच्ची भी थी। बाद में शराब पीकर शान्ति भंग करने के आरोप में इन लोगों का चालान कर उन्हें छोड़ दिया गया।
घटना की पृष्ठभूमि यह है कि विष्णुगाड़ पीपलकोटी परियोजना बनाने वाली कम्पनी टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की नजर हेलंग के चारागाह पर है, जहाँ वह अपनी निर्माणाधीन सुरंग का मलबा फेंकना चाहती है। इसके लिये उसने चमोली के जिला प्रशासन को अपने प्रभाव में लेकर यह दिखाने की कोशिश की है कि वहाँ पर खेल का मैदान बनाने के लिये यह मलबा डाला जा रहा है। मन्दोदरी देवी और हेलंग की महिलायें इस बात का विरोध कर रही हैं। नियमानुसार भी गौचर और पनघट की जमीनों पर किसी तरह का विकास कार्य नहीं किया जा सकता।
उत्तराखंड में घट रही ऐसी अन्य अनेक घटनाओं की तरह यह घटना भी आयी गयी हो जाती। लगातार विस्तार पा रहे मुख्यधारा के मीडिया, जिसमें अब जगह-जगह कुकुरमुत्तों की तरह उग आये ब्लॉग भी शामिल हैं, का ध्यान सरकारी विज्ञप्तियों पर ही केन्द्रित रहता है, जनता के दुःख-कष्टों पर नहीं। मगर सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो गया, जिसमें उनका घास का गठ्ठर छीनने की कोशिश करते पुलिस वालों से बहस करती मन्दोदरी देवी और उनके साथ की एक रोती हुई घसियारिन का दृश्य था। यह वीडियो जहाँ-जहाँ पहुँचा, संवेदनशील लोगों में गुस्से की लहर फैल गई। आन्दोलनकारियों, राजनैतिक कार्यकर्ताओं, समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों, युवाओं द्वारा इस घटना की निन्दा की गई और प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन दिये गये। फिर व्हाट्स ग्रुप बना कर एकजुट होने की प्रक्रिया शुरू हुई।
24 जुलाई को प्रदेश भर से लोग हेलंग पहुँचे। उन्होंने वहाँ जुलूस निकाला और सभा की। सभा को मन्दोदरी देवी ने भी सम्बोधित किया। उनका आत्मविश्वास देखने लायक था। सभा में आसपास के इलाके की अनेक महिला जन प्रतिनिधि भी शामिल थीं। जो लोग 24 जुलाई को हेलंग नहीं पहुँच सके, उन्होंने अपने-अपने इलाके में धरना-प्रदर्शन किये। हेलंग में ही सरकार से माँग की गई कि (1) महिलाओं से घास छीनने, उन्हें डेढ़-दो साल की बच्ची सहित हिरासत में रखने वाले सी.आई.एस.एफ. व पुलिस कर्मियों को निलम्बित कर उनके खिलाफ वैधानिक कार्रवाही की जाये ; (2) उत्पीड़ित महिलाओं के खिलाफ अभियान चलाने वाले चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना को उनके पद से हटाया जाये तथा उनके पूर्वाग्रह को देखते हुए उन्हें भविष्य में किसी सार्वजनिक पद पर नियुक्ति न दी जाये; (3) वन पंचायत नियमावली तथा वनाधिकार कानून का उल्लंघन कर दी गई वन पंचायत की गैरकानूनी स्वीकृति को रद्द किया जाये और इसके आधार पर पेड़ काटने वालों के खिलाफ वैधानिक कार्रवाही की जाये। (4) टीएचडीसी के विरुद्ध नदी में मलबा डालने और पेड़ काटने के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर वैधानिक कार्रवाही की जाये। टीएचडीसी व अन्य परियोजना निर्माता कम्पनियों के कामों की जनता की भागीदारी के साथ अनुश्रवण की व्यवस्था की जाये। (5) हेलंग प्रकरण की उच्च न्यायालय के किसी सेवारत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जाँच करवायी जाये। 1 अगस्त को उत्तराखंड के लगभग पैंतीस स्थानों पर, ग्राम स्तर से लेकर कमिश्नरी स्तर तक, ‘हेलंग एकजुटता मंच’ की ओर से धरना, प्रदर्शन किये गये और अधिकारियों को उक्त माँगों को लेकर ज्ञापन दिये गये। अभी सरकार ने इन माँगों पर ध्यान नहीं दिया है। अलबत्ता मुख्यमंत्री ने इस घटना की जाँच गढ़वाल मंडल के आयुक्त को सौंपी है। महिला आयोग और बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी हेलंग की घटना कां संज्ञान लिया है। आन्दोलन के अगले चरण के रूप में उत्तराखंड के महिला संगठनों तथा बुद्धिजीवियों व आंदोलनकारियों का एक और दल 9 अगस्त को हेलंग जा रहा है। वह वहाँ महिलाओं से बातचीत कर उनके साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करेगा।
हेलंग की घटना उत्तराखंड की मातृशक्ति की अस्मिता, गरिमा और रोजगार पर आघात के रूप में सामने आयी है, मगर गहराई में देखा जाये तो यह जल, जंगल और जमीन के बुनियादी अधिकार से जुड़ी है। ब्रिटिश राज में जनता से जंगल के जो अधिकार छीने गये, वे न आजादी के बाद बहाल किये गये और न उत्तराखंड राज्य बनने के बाद। उत्तराखंड में तो माफियाओं और कम्पनियों का राज है। सरकार-प्रशासन कठपुतलियों की तरह उनकी उंगलियों पर नाचते हैं। 2006 में एक ठीकठाक सा भूमि कानून आया था। मगर उसे लागू न कर 2018 के भू कानून द्वारा उत्तराखंड की जमीनें खुल कर लुटाने का बन्दोबस्त कर दिया गया है। वन अधिकार कानून जैसे जन उपयोगी कानून ईमानदारी से लागू ही नहीं किये जा रहे हैं। इसीलिये जगह-जगह असंतोष है।
पचास साल पहले गौरादेवी ने अपनी साथियों के साथ रेणी गाँव में चिपको आन्दोलन का बिगुल फँूका था। गौरादेवी को अब देश का बच्चा-बच्चा जानता है। हेलंग रेणी से बहुत दूर नहीं है। आज हेलंग से मन्देादरी देवी और उनकी साथियों ने कम्पनी राज और माफिया राज के खिलाफ शंखनाद किया है। उत्तराखंड के लोग धीरे-धीरे उनके साथ जुट रहे हैं। चिपको आन्दोलन का नया दौर शुरू हो रहा है।
हेलंग एकजुटता मंच के पर्चे से साभार