वीरेंद्र यादव
एक वर्ष 3 हाथरस का गांव बूलगढ़ी खबरों में था. एक दलित किशोरी की सामूहिक बलात्कार के बाद इलाज के दौरान मृत्यु हुई थी और उसके शव को रात के अंधेरे में परिवार की अनुपस्थिति में पुलिस के पहरे में जला दिया गया था. मीडिया और नागरिक संगठनों के हस्तक्षेप के बाद परिवार की दबंगों से रक्षा के लिए सीआरपीएफ की तैनाती हुई थी.
‘दि हिन्दू’ अखबार के रिपोर्टर ने उस गाँव और परिवार का जो हाल कल (17 सितम्बर) की अपनी फ्रंट पेज स्टोरी में लिखा है उससे आज के सामाजिक और राजनीतिक तंत्र की सड़ांध उजागर होती है. मृत दलित किशोरी के घर के सामने समूचे गांव ने गोबर, गंदगी और कूड़े का पहाड़ खड़ा कर दिया है. वहाँ सुरक्षा में लगे सीआरपीएफ के दल का कहना है कि गोबर और कूड़े के ढेर से बरसात में इतनी दुर्गंध उठती है कि वहाँ खड़ा होना मुश्किल है.
उनका यह भी कहना है कि यह पहली बार है जब हमें एक घर की रक्षा ठीक सामने के घरवालों से करनी पड़ रही है. समूचे हालात से हैरान व परेशान मृत किशोरी के पिता का कहना है कि हम तो दलित होने के कारण पहले से ही अलग थलग थे, लेकिन अब सचमुच अछूत बना दिए गए हैं. हमारी खेती भी बहुत मुश्किल से एक व्यक्ति ने बंटाई पर लिया है. लड़की के भाइयों का कहना है कि बाहर निकलने पर गांव के दबंगों के व्यंग्य बोल सहने पड़ते हैं. लगता है जैसे हमारा परिवार ही अपराधी हो.
परिवार की त्रासद स्थिति को विस्तार से इस खबर में दर्ज किया गया है. गनीमत है कि एक अंग्रेजी अखबार ने परिवार की सुध तो ली. हिंदी गोदी मीडिया तो फिलहाल सोहर गाने में मशगूल है.
यही है ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’.
फ़ोटो : ‘दि हिन्दू’ से साभार