अतुल सती
16 तारीख को पूरे उत्तराखण्ड में हरेला मनाया जा रहा था और वृक्षारोपण की बाढ़ आयी हुई थी तब रात्रि में मेरे साथ कुछ वीडियो शेयर किए गये। जिसमें सर्वाधिक वायरल वीडियो वह है जिसमें एक महिला के घास के बोझ को बहुत सी पुलिस और औद्योगिक पुलिस बल मिलकर नीचे रखवा रहे हैं। इस दृश्य को देखकर सवाल उठा कि आखिर वे ऐसा कर क्यों रहे हैं ? क्यों एक महिला की मेहनत को छीना जा रहा है ? उस महिला के बगल में खड़ी दूसरी महिला के आंख में आंसू हैं, जो आंख की कोर से फिसल कर टपकते कि उसने पोंछ लिए। वीडियो 15 तारीख का है और जोशीमठ से 13 किलोमीटर पहले हेलंग गांव का है। यूं अब हेलंग एक छोटा सा कस्बा ही हो गया है पर यह गांव है और ग्रामसभा का हिस्सा है। हेलंग अलकनन्दा और कल्पगंगा का मिलन बिंदु भी है। यहां आकर ‘तपोवन विष्णुगाड परियोजना’ समाप्त होती है और भविष्य में कभी ‘तपोवन विष्णुगाड परियोजना’ पूरी हुई और उससे उत्पादन हुआ तो उसकी सुरंग का पानी हेलंग में बाहर निकलेगा।
धौली गंगा का पानी यहां सुरंग से निकल कर अलकनन्दा—कल्पगंगा से मिलेगा और थोड़ी सांस भर लेगा ही कि आगे ‘विष्णुगाड पीपलकोटी परियोजना’ की सुरंग में प्रवेश कर जाएगा, जिसको ‘टिहरी डुबाने वाली’…सॉरी ‘टिहरी डैम’ बनाने वाली प्रसिद्ध कम्पनी टी एच डी सी बना रही है। यहां सुरंग का ठेका एच सी सी कम्पनी के पास है।
सुरंग बनाने में बहुत सा मलबा और गाद निकलता है जिसके लिए डम्पिंग क्षेत्र की व्यवस्था करनी होती है जो पहले ही डी पी आर में इंगित होता है। कहां—कहां बनेगा ? कितना बनेगा ? जितने मलबे का अनुमान होगा उतने ही डम्पिंग क्षेत्र की जरूरत होगी क्योंकि इससे प्रदूषण भी होता है। यही कारण है कि इसे आबादी क्षेत्र से दूर ही बनाया जाता है। इसकी सारी व्यवस्था परियोजना कार्य प्रारंभ होने से पहले ही कर ली जाती है। ध्यान रहे इस परियोजना का कार्य करते हुए 14 से अधिक वर्ष हो चुके हैं।
इस कम्पनी ने जहां पूर्व में डम्पिंग क्षेत्र बनाया वह पर्याप्त नहीं था। कम्पनी पर पूर्व में और अब भी मलबे को नदी में डंप करने के आरोप लगते रहे हैं, जिस पर कम्पनी को जुर्माना भी हुआ है। इस कम्पनी का ग्रामीणों से टकराव पुरानी बात है। यह हर कम्पनी का ही मसला है। वे परियोजना किसी भी तरह बनाने के क्रम में नियम—कायदों की धज्जियां उड़ाते हैं और गांव वालों को भी तरह—तरह के झूठे प्रलोभनों में फँसाते हैं। अपना काम बनाने के लिए गांव की सामुदायिकता खत्म करते हैं। कुछ ठेकेदारनुमा लोगों को अपने साथ करके पूरे गांव को प्रताड़ित करते हैं और उसके संसाधनों को नष्ट करते हैं।
इस किस्से में यही बात है। सन 2007 में जब इस परियोजना की शरुआत हो रही थी तभी हमने देखा कि जनसुनवाई के समय पर किस तरह लोगों को छला गया। उसके बाद जाने कितने टकराव गांव वालों और कम्पनी के बीच हुए। केस—मुकदमे, लड़ाई—झगड़े और धोखे—दलाली के अनन्त किस्से हैं।
अब उस दिन का किस्सा ही ले लीजिये जिसमें महिला की घास छीनी जा रही है, उसका कसूर बस इतना है कि वह अपने एकमात्र बचे हुए चारागाह को डम्पिंग क्षेत्र बनाने का विरोध कर रही थी क्योंकि जहां हजारों टन प्रदूषित मलबे को डाले जाने की कम्पनी की योजना है उसके बाजू में 100 मीटर से कम दूरी पर उनका घर है जहां यह हजारों टन मलबा डाला जाना है, वह हरी घास और वृक्षों से भरा बचा रह गया एक मात्र क्षेत्र है इसलिए इन महिलाओं को शांति भंग करने का अपराधी माना गया। इन पर धारा 107, 116 के तहत कार्यवाही की गई। इनको गिरफ्तार कर जोशीमठ थाना लाया गया। 6 घण्टे बैठाने के बाद छोड़ा गया। कसूर वही, अपनी भूमि के नजदीक अपने चारागाह पर डम्पिंग क्षेत्र नहीं बनाने की मांग।
प्रशासन और कम्पनी का तर्क है कि गांव वालों ने ही सहमति दी है खेल का मैदान बनाने की। 22 जून को डम्पिंग क्षेत्र के विरोध में एक पत्र जिलाधिकारी को गांव वालों ने लिखा है, जिसमें 50 लोगों के हस्ताक्षर हैं। इस पत्र में वे कह रहे हैं कि पूर्व में एक और भूमि खेल मैदान बनाने के नाम पर ली गयी थी। ऐसा कम्पनियां करती ही हैं। जिस सहमति की बात हो रही है उस पर बहुत से लोग सवाल उठा रहे हैं। ऐसी किसी बैठक होने पर ही सवाल हैं, जिसमें ऐसी सहमति बनी। इस मामले में प्रशासन को बार—बार बताया गया पर स्थानीय प्रशासन ने जिला प्रशासन के निर्देश पर यह किया, ऐसा कहा जा रहा है।
ऐसे अनेक विडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें इस जमीन पर मौजूद पेड़ों को काटने के सबूत हैं। ये पेड़ गांव वालों ने कभी ऐसे ही किसी हरेला के मौके पर लगाए होंगे। अब उन कटे हुए पेड़ों को डम्पिंग के मलबे के नीचे दफ्न कर दिया गया है। तस्वीर में पेड़ों को देखने से नहीं लगता कि उनको काटने या उड़ाने की कोई व्यवस्थित प्रक्रिया अपनाई गई होगी। जिनके घर के बगल में यह चारागाह है, जिसमें मलवा डाला जाना है, वे मात्र 5 परिवार हैं… तो क्या उनको दफन कर दोगे, क्योंकि वे बहुत ही कम हैं ?
जहां हजारों टन मलवा डाल—डाल के खेल का मैदान बनाने के ख्वाब हैं, वह जगह सड़क से इतनी नीचे है कि लाखों टन मलवे के भरान से भी यह ख्वाब पूरा नहीं होगा। इससे भी बड़ी बात कि इस क्षेत्र के ठीक नीचे अलकनन्दा बहती है। किसी भी बरसात में यह सारा मलवा बह कर सीधे अलकनन्दा में समा जाएगा, यह ऐसा बड़ा रहस्य नहीं है कि कम्पनी के चंट चालाक इससे अनभिज्ञ हों। तो न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी। मतलब न मलवा रहेगा न मैदान बनेगा और न सार्वजनिक सुविधा केंद्र जो एक और बड़ी गोली है जो कम्पनी दे रही है ।
सन 2001 में जय प्रकाश कम्पनी ने जनता के आंदोलन के बाद चाईं गांव वालों के साथ एक लिखित समझौते में खेल का मैदान, अस्पताल, स्कूल आदि देने का वायदा किया था। प्रशासन मध्यथ था। जे पी की परियोजना पूरी हुए 15 साल हो गए। वो वायदे उसी कागज के टुकड़े पर हैं। एन टी पी सी ने 2010 में हमारे आंदोलन के बाद केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे की मध्यस्थता में एक समझौता किया था जिसमें सुरंग के 250 मीटर के दायरे में आने वाले घर—मकानों के बीमा होना था। वह समझौता है पर अमल नहीं ..!
इसलिए अपना जल,जंगल, जमीन किसी लालच में आकर गंवाना मूर्खता है। जो लड़ रहे हैं उनके साथ मजबूती से खड़ा होना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यही इस धरती के प्रति हमारी असल जिम्मेदारी है, सिर्फ एक दिन का हरेला मनाना नहीं।