प्रमोद साह
महात्मा गांधी एक व्यक्ति से अधिक एक विचारधारा हैं । 30 जनवरी 1948 भारत के इतिहास में वह काला दिन है जब सांप्रदायिक सौहार्द, प्रेम तथा अहिंसा के विश्वव्यापी विचार के ऊपर, बंग-भंग से अंग्रेजों के षड्यंत्र शुरू हुए। उनके चार दशक तक लगातार किए गए कुत्सित प्रयासों से उपजे नफरती विचार के पुतले ने महात्मा गांधी के ऊपर हमला कर उनकी हत्या कर दी।
महात्मा गांधी एक शरीर के रूप में तब से हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी शहादत के बाद सांप्रदायिक सौहार्द, अहिंसा और प्रेम के विचार ने जो नया फलक प्राप्त किया, उसका दायरा वैश्विक हुआ।
यह महात्मा गांधी की पुण्य शहादत का ही परिणाम था कि आजादी के बाद देश में फैल रही सांप्रदायिक हिंसा की लपटें शांत हो गई।
आज 30 जनवरी से हम महात्मा गांधी के शहादत के 75वे वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। इस मौके पर हमें ठिठक कर यह विचार करना जरूरी है कि आखिरकार गांधी को किसने मारा ? क्यों मारा ? भारत की सांझी ताकत, किसके लिए खतरा थी ? समाज के इस विभाजन में किसका हित था ?
इस दृष्टि से इस 75वे वर्ष को “नफरत दमन वर्ष “के रूप में मनाया जाना ज्यादा प्रासंगिक होगा।