रमाकांत बेंजवाल
उन्नीसवीं सदी तक गढ़वाल क्षेत्र बेहद बीहड़ व अगम्य था। यहाँ के यातायात की शुरुआत पगडंडियों से हुई। धार्मिक ग्रंथों विशेषकर महाभारत में बदरीनाथ, भृगुपंथ, गंगोत्तरी, यमनोत्तरी की तीर्थ यात्रा का वर्णन है। उन्नीसवीं तथा बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में भी अंग्रेज लेखकों- ट्रेल, ब्रेकेट, फ्रेजर, पौ, एटकिंसन, ओकले, वाल्टन आदि ने यहाँ की आकाश छूती ऊँची-ऊँची चोटियों व गहरी धंसती घाटियों में पग-पग पर जोखिम भरे रास्तों का वर्णन किया है। गढ़वाल में सड़क निर्माण का कार्य अंग्रेजी शासन से ही शुरू हुआ।
कुमाऊँ (गढ़वाल सहित) के कमिश्नर ट्रेल के समय सन् 1827-28 में हरिद्वार से बदरीनाथ व केदारनाथ जाने वाले पैदल मार्ग का पुनर्निर्माण करवाया गया जो कि लगभग आठ वर्षों में पूर्ण हुआ। सन् 1830 में ट्रेल ने पिंडारी के दर्रे से तिब्बत तक का रास्ता ढूँढ़ा था जिसे आज भी ‘ट्रेलपास’ के नाम से जाना जाता है। इस ही पोस्ट पर गोविन्द पंत राजू जी ने जानकारी दी है- “ट्रेल्स पास तिब्बत जाने का रास्ता नहीं बल्कि पिंडारी की ओर से गोरी घाटी में जाने का रास्ता था और इसे नाम भले ही ट्रेल का मिला हो मगर उसने इसकी खोज नहीं की थी। यह मार्ग तो भोटांतिक व्यापारियों द्वारा पहले से ही इस्तेमाल किया जा रहा था.”
बस यातायात गढ़वाल में बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध से ही शुरू हुआ। सन् 1910 में कोटद्वार-फतेहपुर वाली सड़क को लैंसडाउन तक बनवाया गया। ब्रिटिश गढ़वाल में सन् 1839 में जनांदोलन के पश्चात् जिला परिषद द्वारा गुमखाल होते हुए पौड़ी तक सड़क बनवाई गई। टिहरी रियासत में टिहरी नरेश नरेन्द्रशाह के समय सन् 1921 में ऋषिकेश से नरेन्द्रनगर तक तथा सन् 1937-38 में ऋषिकेश-कीर्तिनगर मोटर सड़क बनवाई गई। वर्ष 1940 तक टिहरी रियासत में लगभग डेढ़ सौ किमी मोटर सड़क का निर्माण पूर्ण हो गया था। दिसम्बर 1946 ई० में मोटर मार्ग चमोली तक पहुँचा तथा मार्च 1947 में नियमित रूप से बसें कर्णप्रयाग तक पहुँचने लगी थीं।
गढ़वाल में मोटर मार्गों का विस्तार सन् 1962 में भारत-चीन आक्रमण के पश्चात् द्रुतगति से होने लगा। इससे पूर्व स्वतंत्रता के बाद पाँच वर्षाें में मात्र 16 किमी सड़क पीपलकोटी तक बनी थी। यहाँ मुख्य नदियों के समानांतर ही मुख्य-मुख्य सड़कें ऋषिकेश-माणा अलकनंदा के, रुद्रप्रयाग से गौरीकुण्ड मंदाकिनी के, कर्णप्रयाग से थराली-देवाल पिंडर के, जोशीमठ-मलारी धौली के, डाक पत्थर से यमनोत्तरी यमुना के, टिहरी से गंगोत्तरी तक भागीरथी के, टिहरी से घुत्तू भिलंगना के, डाकपत्थर-त्यूणी-मोरी-नैटवाड़ टोंस के समानांतर बनाई गई हैं। गढ़वाल में राष्ट्रीय राजमार्ग इस प्रकार हैंः-
राष्ट्रीय राजमार्ग राजमार्ग का नाम लंबाई किमी
58 मंगलौर-हरिद्वार-बद्रीनाथ-माणा 376
72 ढालीपुर-हरिद्वार 93
84 ऋषिकेश-टिहरी-धरासू-यमुनोत्तरी 217
108 धरासू-उत्तरकाशी-गंगोत्तरी 124
109 रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड 76
119 कोटद्वार-श्रीनगर 155
123 हरबर्टपुर-डामटा-नौगाँव-बड़कोट 95
लोक निर्माण विभाग
प्रादेशिक राज मार्ग – 680 कि०मी०
मुख्य जिला सड़क – 672 कि०मी०
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना – 5856 कि०मी०
कुल – 7208 कि०मी०
गढ़वाल में स्वतंत्रता के बाद रेल यातायात की प्रगति शून्य रही है। सन् 1871 में देहरादून, 1897 में कोटद्वार, तथा 1930 में ऋषिकेश तक रेलवे लाइन बिछाई गई थी। सन् 1919 में गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर जे० एम० क्ले ने ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछाने का सर्वे करवाया था। लगभग सौ वर्ष बाद ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक कुल 125 किमी रेल लाइन का कार्य प्रारम्भ हुआ है। 16200 करोड़ लागत से बन रही इस सिंगल ट्रेक लाइन में 35 पुल तथा 85 प्रतिशत भाग सुरंग से गुजरेगा जिसमें 12 स्टेशन होंगे।
चार धाम परियोजना के लिए केन्द्र सरकार द्वारा सड़काें के चौड़ीकरण के लिए 12 हजार करोड़ स्वीकृत किया गया है, जिसका कार्य अपने अंतिम चरण में है। वायु मार्ग के लिए एकमात्र हवाई पट्टी जौलीग्रांट देहरादून में है। गौचर (चमोली) तथा चिन्यालीसौड़ (उत्तरकाशी) में भी पट्टी का निर्माण कार्य हुआ है लेकिन अभी तक कोई हवाई सेवा शुरू नहीं हुई।