अरे कौन बच्चा है ये – इत्ती सी पोशाक में?
इस नन्हे बालक का अडोल्फ़ नाम है –
हिटलर दम्पत्ति का छोटा बेटा!
वकील बनेगा बड़ा होकर?
या वियेना के ऑपेरा हाउस में कोई गायक?
ये बित्ते से हाथ किसके हैं, किसके ये नन्हे कान, आंखें
और नाक?
हम नहीं जानते दूध से भरा किसका पेट है यह.
-छापाख़ाना चलाने वाले का, डाक्टर का, व्यापारी का
या किसी पादरी का?
किस तरफ़ निकल पड़ेगा यह मुन्ना?
बग़ीचे, स्कूल, दफ़्तर या किसी दुल्हन की तरफ़?
या शायद पहुंच जाएगा मेयर की बेटी के पास?
बेशकीमती फ़रिश्ता, मां की आंखों का तारा,
शहदभरी डबलरोटी सरीखा!
साल भर पहले जब वह जन्म ले रहा था
धरती और आसमान में कोई कमी नहीं थी शुभसंकेतों की –
वसन्त का सूरज, खिड़कियों पर जिरेनियम,
अहाते में ऑर्गन वादक का संगीत
गुलाबी काग़ज़ में तहा कर रखा हुआ सौभाग्य
सपने में देखा गया
कबूतर अच्छी ख़बर ले कर आता है –
अगर वह पकड़ लिया जाए तो कोई बहुप्रतीक्षित अतिथि
घर आता है,
खट् खट्
कौन है
अडोल्फ़ का नन्हा हृदय दस्तक दे रहा है.
बच्चे को शान्त कराने को चीज़ें, लंगोटी, खिलौना,
हमारा तन्दुरुस्त बच्चा, भगवान का शुक्र करो, भला है
हमारा बच्चा, अपने लोगों जैसा
टोकरी में सोये बिल्ली के बच्चे सरीखा
श्श्श! रोओ मत मिठ्ठू!
अभी क्लिक करेगा कैमरा काले हुड के नीचे से –
क्लिंगर का स्टूडियो, ग्राबेनस्ट्रासे, ब्राउनेन!
छोटा मगर बढ़िया शहर है ब्राउनेन –
ईमानदार व्यापारी, मदद करने वाले पड़ोसी.
ख़मीर चढ़े आटे की महक, सलेटी साबुन की महक,
भाग्य की पदचाप पर भौंकते कुत्तों को कोई नहीं सुनता
अपना कॉलर ढीला करके
इतिहास का एक अध्यापक जम्हाई लेता है
और झुकता है होमवर्क जांचने को.
(विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविता)
अशोक पांडे की फेसबुक वॉल से साभार