एमसी मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 1985 में गंगा के प्रदूषण से सम्बंधित याचिका दायर की थी। वर्ष 2014 तक सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका पर अनगिनत फैसले और निर्देश दिए, पर गंगा और प्रदूषित होती रही। वर्ष 2014 में गंगा प्रदूषण से सम्बंधित सभी याचिकाएं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में स्थानांतरित कर दी गयीं। इस दौरान एनजीटी ने भी अनगिनत निर्देश और फैसले इस मामले में दिए, पर गंगा प्रदूषित होती रही।

यही नहीं जिन प्रान्तों से होकर गंगा बहती है, लगभग सभी प्रान्तों के उच्च न्यायालयों में भी गंगा प्रदूषण से सम्बंधित अनेक याचिकाएं दायर की गयीं, निर्देश और फैसले वहां से भी आते रहे पर गंगा पहले से अधिक प्रदूषित होती रही। वर्ष 2014 से नमामि गंगे का शोर भी शुरू हो गया, उमा भारती 2018 में ही गंगा अविरल और निर्मल कर रही थीं, इसके बाद नितिन गडकरी ने 2019 में गंगा साफ़ करने का दावा किया, पर गंगा और प्रदूषित होती रही।

यह एक भद्दा मजाक इसलिए भी है क्योंकि देश की लम्बाई के सन्दर्भ में सबसे लम्बी गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी का दर्जा भी मिल गया, पर नदी का प्रदूषण बढ़ता रहा। इस नदी को एक खिलौना या कठपुतली जैसा बना दिया गया है, जिसमें अर्ध-कुम्भ को महाकुम्भ बनाने के लिए पानी छोड़ दिया जाता है और उत्सव के अंत में इसे फिर से सूखा छोड़ दिया जाता है।

कुम्भ के नाम पर इसके डूब क्षेत्र से अपनी मर्जी से छेड़छाड़ की जाती है, कहीं द्वीप बनाए जाते हैं तो कहीं पूरी तरह से समतल कर दिया जाता है, पर उस समय सभी न्यायालय चुप्पी साध लेते हैं, या फिर याचिकाकर्ता को ही सजा देने की बात करने लगते हैं। लाखों शौचालय बनाए गए, खूब दावे भी किये गए साफ़-सफाई के पर हकीकत यही है कि हरेक कचरा, पूरा मल-मूत्र सभी कुछ नदी में ही पहुंच गया और नमामि गंगे की माला जपने वाले बस तारीफ़ के पुल बांधते रहे।

नमामि गंगे गैंग अपने आप में एक मजाक से कम नहीं है। मोदी जी ने कहा, गंगा ने मुझे बुलाया है फिर बनारस में घाटों पर ढेर सारी सीढ़ियां बनवा दीं और गंगा आरती भव्य करा दी, उन्हें लगा कि इससे गंगा साफ़ हो जायेगी। उमा भारती ने जल समाधि की बात की, अविरल और निर्मल को बार बार दुहराया, लच्छेदार हिन्दी में बार-बार गंगा पर प्रवचन देती रहीं और उन्हें लगा कि गंगा साफ़ हो जायेगी।

नितिन गडकरी आये और गंगा में जल-पोट और क्रूज चलाना शुरू किया, उन्हें लगा कि गंगा साफ़ हो गयी। योगी जी तो अपने आप को भागीरथ ही समझ बैठे, जितने दिन उनकी मर्जी होगी गंगा में पानी होगा, जब पानी होगा तो वे अपनी मर्जी से इसकी धारा निश्चित करेंगे।

इन सबके बीच अनेक स्वामी/संन्यासी पता नहीं किससे और कौन सी उम्मीद लेकर लगातार अनशन/तपस्या करते रहे, कुछ ने अपने प्राण भी त्याग दिए पर गंगा ना तो निर्मल हुई और ना ही अविरल हुई। अलबत्ता निर्मल तो नहीं पर अविरल सरकारी आश्वासन जरूर मिलते रहे।

एनजीटी में माननीय आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में प्रमुख पीठ ने 14 मई 2019 को दिए गए अपने फैसले में अनेक बातें कही हैं, जिससे पता चलता है कि 1985 से हम वहीं खड़े हैं, हालात में कोई सुधार नहीं आया है, गंगा में प्रदूषण कम करने और निरंतर बहाव को लेकर तमाम संस्थाएं बिना किसी ठोस कार्य योजना के ही काम कर रहीं है। जाहिर है जब एनजीटी को स्थिति में सुधार नहीं दिख रहा है तब नितिन गडकरी के गंगा सफाई के तमाम दावे अपने आप झूठे साबित हो जाते हैं।

इस फैसले में लिखा गया है, गंगा में एक बूंद प्रदूषण भी चिंता की बात है। नदी के संरक्षण के लिए सभी अधिकारियों का रवैया सख्त होना चाहिए। किसी भी प्रदूषण फैलाने वाले गतिविधि से प्रदूषण के निवारण के लिए एहतियात बरतने की आवश्यकता है। कितना भी आर्थिक लाभ हो, या फिर व्यापारिक और औद्योगिक गतिविधियों को गंगा की सफाई की तुलना में प्राथमिकता नहीं दी जा सकती। कोई भी व्यक्ति या संस्थान गंगा में प्रदूषण करता है तो उसके ऊपर कानूनी कार्यवाही की आवश्यकता है।

हरेक सम्बंधित राज्य एक विशेष प्रकोष्ठ बनायेंगे जो हरेक दिन गंगा में प्रदूषण फैलाने वाले गतिविधियों की निगरानी करेंगे। इस तरह की कार्यवाही देश की दूसरी प्रदूषित नदियों की सफाई के लिए एक सबक होगी। यह दुख की बात है कि सीपीसीबी के अनुसार देश में नदियों पर 351 प्रदूषित खंड हैं।

यह हास्यास्पद नहीं तो और क्या है, जिस मुकदमे की सुनवाई 1985 से चल रही हो उसके लिए जज साहब को कहना पड़े कि गंगा में एक बूंद प्रदूषण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। गंगा हो या कोई और नदी, पर्यावरण की कोई समस्या का हल तब तक नहीं निकलेगा जब तक किसी भी संस्थान को इसके लिए जिम्मेदार नहीं बनाया जाएगा। तमाम सरकारी संस्थान जो आज नदी की सफाई कर रहे हैं, वही हैं जो 1986 से इसकी सफाई करते आ रहे हैं और मालामाल होते जा रहे हैं। आखिर गंगा साफ़ हो जायेगी तो माल कहाँ से आएगा?

हिन्दी वैब पोर्टल ‘जनज्वार’ से साभार