धीरज उप्रेती
पूर्णागिरी तहसील के ईमानदार अधिकारी हिमांशु कफल्टिया का स्थानान्तरण आम जनता के बीच सवाल बनकर घूम रहा है। सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि नेकदिल और कुशल प्रशासक को एकदम हटाने का आदेश आ गया। वह भी उस समय जब वे टनकपुर में किताबों को लेकर बड़ी मुहिम चला रहे थे और पुस्तक मेले के रूप में पूरे समाज को एकजुट करने का माहौल बना चुके थे। ग्रामीण क्षेत्रों में तमाम जगह पुस्तकालय खोलने का उनका अभियान भी सफल हो रहा था।
टनकपुर के एसडीएम हिमांशु कफल्टिया का स्थानान्तरण कर उन्हें चमोली जिले में भेजा गया। शासन के उप सचिव अनिल जोशी की ओर से 19 दिसम्बर को यह आदेश जारी किया गया। नए एसडीएम आने तक जिला प्रशासन ने लोहाघाट की एसडीएम रिंकू बिष्ट को टनकपुर की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी। उसके बाद नये एसडीएम सुन्दर सिंह ने कार्यभार ग्रहण किया।
कफल्टिया के स्थानान्तरण से लोगों में कापफी गुस्सा देखा गया। उन्होंने जुलूस प्रदर्शन करते हुए स्थानान्तरण निरस्त करने की मांग की। 2006 के बैच के उत्तराखण्ड पीसीएस टॉपर कफल्टिया सितम्बर 2020 से टनकपुर में तैनात थे। उनकी पहली तैनाती 2020 में पाटी में हुई। बेहद ईमानदार, समस्याओं का त्वरित निस्तारण करने वाले, युवाओं को पुस्तकों से जोड़ने के अभियान में वह लगे थे। खनन क्षेत्र के लिये चर्चित टनकपुर में उन्होंने सख्ती भी की थी जो कतिपय जनों को चुभती थी। बताया जाता है कि उनके स्थानान्तरण के लिये बार-बार शिकायतें भी की जा रही थीं, जिसे कफल्टिया भली-भांति जानते थे लेकिन जनप्रिय अधिकारी होने के कारण शासन-सत्ता बदलने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं हुआ। मगर विगत दिवस उनका स्थानान्तरण का समाचार चौंकाने वाला था। उस समय वे अपना जन्मदिन मना रहे थे।
चर्चा है कि एसडीएम साहब ने पुस्तक मेले को लेकर जो एक बड़े आयोजन विचार किया था, उसी बीच होने वाली बातचीत व आने वाले मेहमानों सहित तमाम लोगों की कानाफूसी हुई। इन्हीं कारणों से किताबों का मेला बनने से पहले ही कफल्टिया के तबादले की किताब लिख दी गई।
टनकपुर में प्रथम बार पुस्तकों को लेकर ‘कौतिक’ का सपना देखने वाले हिमांशु कफल्टिया की एक चूक यह थी कि वह सबको लेकर तो चल रहे थे लेकिन यह भूल रहे थे कि जो लोग बहुत ज्यादा सक्रिय हो रहे हैं, उसके पीछे उनके क्या स्वार्थ हैं। देखने में आया कि उपजिलाधिकारी की अगुवाई देखते हुए स्थानीय लोगों ने उत्साह से साथ देना शुरु कर दिया, लेकिन जैसे यह बात फैली पुस्तक-कला-संस्कृति के नाम पर और भी अन्य दन्द-फन्द भी करने वाले लोग सक्रिय हो उठे। हो सकता है उन्हें लगता हो कि बाहर से लोगों के आने से ज्यादा जागरुकता होगी और उनके परिचय का क्षेत्र बढ़ेगा, लेकिन यह कड़वा सच है कि आने वालों की सूची में ज्यादातर वे नाम थे जो भाजपा के विरोध में कठोर वचन बोलने में भी चूक नहीं करते। लिखने-पढ़ने के बारे यह सामान्य बात है, लेकिन राजनीतिक चरित्र के लिये कौन क्या बोलता ? वैसे भी यह सीएम पुष्कर सिंह धामी का विधानसभा क्षेत्र है। कई सवाल उठ रहे हैं, मगर यह सच भी फैल चुका है कि एसडीएम नीयत अच्छा करने की थी।
बताते चलें कि जब से आयोजन का विचार आया होगा, पुस्तक मेले के लिये बैठकों का दौर चलता रहा। स्थानीय आम जन मान रहे थे कि बाहर से मेहमान आयेंगे और खूब भेंट-घाट होगी, किताबों पर बात होगी, गीत-संगीत होगा लेकिन…..? आने वाले भी जिस प्रकार की हड़बड़ाहट करने लगे उससे शक होने लगा कि इतनी हड़बड़ी क्यों? क्या अब कहीं और कुछ नहीं होने वाला है या और कुछ ? आने वालों में वे नाम भी दिखाई दे रहे थे जो ज्यादातर फेसबुक में बने रहते हैं। समझ में आना कठिन हो गया कि आंखिर दो दिन के आयोजन में कितने ज्यादा लोग आने वाले हैं। बोलने वाले ज्यादा होंगे तो सुनने वाले किसे और कितना सुन पायेंगे ? यह भी कड़वा सच है कि सोशल मीडिया की गिरफ्त में आ रहे समाज में ऐसे लोग होते हैं, जो सिर्फ अपना मैनेजमेंट कर रहे होते हैं। जिससे समाज को कोई लाभ नहीं है। सवाल उठने लगे कि जब फेसबुक में सब दिखाई दे रहा है तो पुस्तक मेले में वह क्या करने आएंगे। फिलहाल यह पहल तो अच्छी थी कि देवेन्द्र मेवाड़ी, प्रयाग जोशी, हयात सिंह रावत जैसे लोगों ने आने का न्योता स्वीकारा और पुस्तकों को बढ़ावा देने वाले प्रकाशक भी सहर्ष तैयार हो गये। स्थानीय स्कूलों ने भी प्रतिभाग करने के लिये पूरी तैयारी की।
कुल मिलाकर जब सब ठीक-ठाक हो ही रहा था तो एसडीएम साहब का स्थानान्तरण उन लोगों में गुस्सा पैदा कर गया, जो उनकी नेकदिली, कार्यप्रणाली, ईमानदारी व सख्ती को पसन्द करते थे। पुस्तकालय और पुस्तकों से जुड़ रहे विद्यार्थियों ने भी एसडीएम के स्थानान्तरण का विरोध किया। उनका स्थानान्तरण रोकने के लिये सीएम कार्यालय में ज्ञापन तक प्रेषित किये। लेकिन राजकीय कार्यों में आना-जाना तो स्वाभाविक है। इस सच के बीच पुस्तक मेले को गठित समिति ने हिम्मत जुटाई और आयोजन को किया। आयोजन का समय भी 24-25 दिसम्बर था, जबकि पूरे प्रदेश में छात्रसंघ चुनाव हो रहे थे और पुलिस-प्रशासन की अपनी व्यस्तता थी। इस पूरी व्यस्तता के बीच टनकपुर के लोगों ने एक कड़वे सच को झेला। इस आयोजन के समापन पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पधारे।
पुस्तकों से दोस्ती का यह कौतिक एक स्वागत योग्य पहल है। भविष्य में भी पुस्तकों से दोस्ती की यह मुहिम चलती रहे, इसके लिये जागरूक लोगों को सावधान रहना होगा।
(‘पिघलता हिमालय’ से साभार)