रमेश मुमुक्षु
एक समय था कि दिल्ली में सभी बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। लेकिन कालांतर में सरकारों स्कूल पिछड़ते चले गए। निजी स्कूल की रफ्तार इतनी तेज हुई कि सरकारी स्कूल बन्द करने के कगार पर पहुँच गए। सरकारी स्कूल के सुधार की बात घाटे का सौदा बन कर रह गई। सरकारी स्कूल को सभी लगभग भूलने लगे थे। यहां तक माहौल बन गया था कि लोग अपने बच्चों को गुस्सा करते हुए कह देते कि अगर कहना नही माना तो सरकारी स्कूल में डाल देंगे, बच्चा डर जाता था। सरकार भी सरकारी स्कूलों को प्राइवेट हाथ देने का मन बना चुकी थी।
लेकिन वर्तमान दिल्ली सरकार ने एक डेड इन्वेस्टमेंट को एक मिशन ही बना डाला। सरकारी स्कूल को सुधारना और इसके बारे में सोचना भी एक बड़ा चैलेंज ही था। सरकारी स्कूल को ठीक करने का अर्थ है ,शुद्ध रूप से आम आदमी के लिए कुछ ठोस और बड़ा कदम। सरकारी स्कूल में थोड़ा बहुत कमाने वाला भी नही पढ़ाना पसंद करता है।
वो बच्चों को गली मोहल्लों के निजी स्कूल में पढ़ाना चाहता है। लेकिन श्री केज़रीवाल और मनीष जी ने दिल्ली के सरकारी स्कूल की काया ही पलट दी। टूटे फूटे और कभी साफ न रहने वाले स्कूल आज निजी स्कूल जैसे लगने लगे है। सम्पूर्ण गुणवत्ता पर एक मिशन की तरह दिल्ली सरकार जुटी है। स्कूल की बिल्डिंग से लेकर पढ़ाई एवं अन्य एक्टिविटी ने स्कूल को पूरी तरह बदल दिया और काया पलट हो गई। स्कूल की साज सज्जा से लेकर बच्चों को खुश रहने की बातें, तोतोचान ,जापानी विश्व विख्यात उपन्यास में वर्णित बातों को जमीन पर लाने जैसा लगता है। सच में ये आप सरकार के साहस और मिशन का परिचायक ही है। पिछले पांच वर्षों में एक सपना साकार करने जैसा ही है। तरह तरह के स्कूल ,जैसे स्कूल ऑफ एक्सीलेंस जैसा प्रयोग देखते ही बनता है। अभी बहुत आम आदमी के बच्चे इन स्कूलों में जाते है, उनके स्वयं के जीवन में परिवर्तन आने लगा है। माहौल में परिवर्तन धीमे धीमे ही आता है। लेकिन दिशा और दशा के लिए दिल से धन्यवाद तो निकलता ही है।।
खेलों के लिए विश्व स्तरीय मैदान एक बड़ा कदम है। घुमनहेड़ा में हॉकी का आधुनिक मैदान बच्चों के खेल में आमूलचूल परिवर्तन का परिचायक सिद्ध होगा। मनीष जी और अरविंद जी ने ऐसा किया जैसे चंगेज़ आत्मतोफ के लघु उपन्यास ” पहला अध्यापक “के टीचर दुष्यन ने किया । उस उपन्यास में रूसी क्रांति के बाद शिक्षा के विकास और संवर्धन के लिए दूरदराज में स्कूलों की स्थापना की और किर्गिस्तान के कुरकेव गांव में स्कूल की स्थापना की कहानी और स्टेपी मैदान में दूर दिखते टीले पर दो पॉप्लर के पौधों के रोपने के संग स्कूली शिक्षा का आरम्भ करने जैसा कुछ इन दोनों ने किया है। ऐसा काम सपना देखने वाले ही कर सकते है।
मैंने भी व्यक्तिगत रूप से सन 2000 में ठीक सरकारी स्कूल सुधार पर एक सपना बुना था। एक विस्तृत दस्तावेज तैयार किया था। हस्तक्षर अभियान भी आरम्भ किया ,लेकिन चरितार्थ नही हो सका। इसको मैं व्यक्तिगत विफलता ही समझूंगा। इसलिए भी दिल्ली सरकार के कदम को मैं अपने सपने को साकार होते हुए ,महसूस करता हूँ। मेरे सपने को ,जो दिल्ली सरकार ने 14 वर्षों बाद साकार करना आरम्भ किया और 2019 तक ये मूर्त रुप भी लेने लगा है। जब मैं अपने सपने की बात करता हूँ तो ये वो है ,जो हमने साकार करने की सोची ही नही ,आरम्भ भी किया था। लेकिन अंजाम तक नही जा सकें। संभव है, ऐसा सपना बहुत से लोगो ने देखा होगा। सपना देखते ही उसको साकार रुप देने में समय नही लगाना चाहिए। सपना एक व्यक्ति नही बहुत से व्यक्ति देखते है। जो पहल करता है, वो चरितार्थ भी करता है। दिल्ली सरकार ने कितनो के सपने पूरे किए होंगे। ये चिंतन का विषय है।
इस तरह स्कूल को सपने की तरह उभार देना , दिल्ली सरकार की बहुत बड़ी सफलता है। पूरा देश इस बात को सिद्धान्त रूप से स्वीकार करता है। बहुत कुछ अच्छा भी नही होगा। लेकिन जब एक आमूलचूल परिवर्तन होता है ,तो थोड़े कुछ पड़ाव समय के साथ यात्रा में शामिल होते रहते है। जिन्होंने सरकारी स्कूल में पढ़ाई की है, उनको अपने सरकारी स्कूल को याद करना चाहिए। आज पुनः वहां पर जा कर वो सारे पल स्मृतिपटल पर उभर आएंगे। मेरे जैसे केवल कक्षा में गप्प मारने वाले तो बहुत कुछ याद रखते ही है। टीचर की धुनाई, डंडा, मुक्का, मुर्गा और डेस्क पर खड़े होना ,कौन भूल सकता है। उस पर घर वालो का कहना ” मास्टरजी शैतानी करे ,तो हड्डी फसली एक कर देना” । टीचर के नामकरण , मौका मिलते ही स्कूल से फुटक जाना ,कभी कोई भुला नही सकता।
अंत में महान कवियत्री महादेवी वर्मा की लाइन याद हो उठी
” चिर सजग आंखे उनींदी
आज कैसा व्यस्त ताना ,
जाग तुझको दूर जाना”,
अभी दिल्ली सरकार की यात्रा जारी है। उम्मीद है ,जल्दी सरकारी स्कूल की ओर जनता का पॉजिटिव रुख आएगा, इस बात से इंकार नही किया जा सकता, ऐसा मुझे विश्वास है। टूटते और बिखरते हुए सपने को साकार करने के लिए ,दिल्ली सरकार, तमाम एस एम सी टीम एवं टीचर्स को सादुवाद ।