राजीव लोचन साह
27 जनवरी 2020 को केरल के त्रिचूर में एक 20 वर्षीय महिला को अस्पताल में भर्ती किया गया। उसे सूखी खाँसी और गले में दर्द की शिकायत थी। यह कोविड 19 का भारत में पहला केस था। मार्च के तीसरे सप्ताह तक देश में रोजमर्रा की जिन्दगी में कोविड का कोई असर नहीं था। मगर आसन्न खतरे को देखते हुए 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पूरे देश में एक दिन का जनता कफ्र्यू घोषित किया तथा उसके बाद 23 मार्च से 21 दिन का लाॅकडाउन लगा दिया। उस वक्त आशंका व्यक्त की गई थी कि अगले चार महीनों में भारत में करोड़ों लोग कोरोना से संक्रमित होंगे और लाखों लोग अपने प्राण गँवायेंगे। सौभाग्यवश स्थिति उतनी खराब नहीं रही और अब तक भारत में एक करोड़ सात लाख लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं और डेढ़ लाख से कुछ अधिक व्यक्तियों की इस बीमारी से मृत्यु हुई है।
भारत जैसे विशाल देश में जहाँ हर साल लगभग 95 लाख लोग विभिन्न कारणों से मरते ही हैं, यह बहुत बड़ी संख्या नहीं है। मगर इस बीमारी ने एक साल के भीतर दुनिया को पूरी तरह बदल दिया। अर्थव्यवस्थायें चैपट हुईं, बेरोजगारी बढ़ी, व्यावसायिक, सरकारी और न्यायिक कामकाज, पढ़ाई-लिखाई, बैठक-गोष्ठियाँ सब कुछ आनलाईन होने लगीं; घरों में बन्द रहने के कारण डिप्रेशन और आत्महत्याओं की घटनायें बढ़ीं। कुल मिला कर दुनिया वह नहीं रही, वर्ष 2020 से पहले थी। भारत में तो यह साल लाॅकडाउन के दौरान सैकड़ों मील अपने घरों को जाने वाले मजदूरों के संघर्ष और तबलीगी जमात के मुसलमानों के प्रति घोर नफरत फैलाने के लिये भी याद किया जायेगा। सौभाग्य से अब राहत की खबरें आ रही हैं। कम से कम भारत में कोरोना का प्रकोप बहुत कम हो गया है और दो वैक्सीनें बना कर देश में टीकाकरण अभियान भी शुरू हो गया है। पता नहीं इतनी कम टैस्टिंग के साथ बाजार में ले आया गया टीका कितना कारगर होगा, मगर इतना तो तय है कि वर्ष 2021 बीते साल 2020 जितना विध्वंसक नहीं होगा।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।