विरेन्द्र सेंगर
इसका सही अनुमान भी किसी के पास नहीं है।सरकार के पास भी नहीं।कोरोनाकल के चलते देश की आर्थिक स्थिति बहुत नाजुक दौर से गुजर रही है।यूं तो मार्च के पहले भी स्थिति खराब ही थी।करीब दो करोड़ लोगों के रोजगार चले गये थे।लेकिन सरकार सियासी चालों से इस तबाही के मंजर से लोगों का ध्यान हटा रही थी।गोदी मीडिया का कलंकित दौर चल रहा है।ऐसे में अपना ऐजेण्डा चलाना उसके लिए काफी आसान होता है। सरकार के तमाम दावे हैं कि कैसे वो सफलता के झंडे गाड़ रही है?।
यहभी प्रचारित किया जा रहा है कि कुशल प्रबंधन की वजह से भारत में मृत्यु दर बहुत कम है।अरबों रु.के विज्ञापन, यही डंका बजाने के लिए जारी किये गये।खुद की पीठ ठोंकने में माहिर सरकार ,यह काम जारी रखे है।इतना ही नहीं, सरकार कुछ जरूरी सूचनाएं छिपाती भी है ताकि उसकी पोल न खुल सके।यही फण्डा आर्थिक मामलों में भी असलियत छिपाने के लिए किए गये।दो साल पहले सरकारी एजेंसी का बेरोजगारी डाटा आया था।इससे खुलासा हुआ था कि 45सालों ये बेरोजगारी की सबसे बढ़ी हुई दर है।जाहिर है, इस खुलासे से सरकार के तमाम झूठे दावों की पोल खुल गयी थी।संघ परिवारी तमाम संगठनों को मैदान में उतरना पड़ा था।उन्हें हिंदू मुस्लिम का आजमाया ऐजेंडा आगे बढ़ाना पड़ा था।ताकि राष्ट्रीय विमर्श का मुद्दा ही बदल जाए।ये सब सियासी धतकर्म करने के बावजूद सरकार की महीनों किरकिरी हुई थी।उसी दौर में साहेब ने पकौड़े बेचने वाला बहु चर्चित जुमला उछाला था।इस प्रकरण में तो हैरानी की बात ये है कि अब सरकार ने बेरोजगारी का डाटा सर्वेक्षण ही बंद करा दिया है।क्योंकि सरकारी ऐजेंसी का डाटा झुठलाना मुश्किल हो जाता है।गोदी मीडिया भी इस आंकड़े को राहुल गांधी की साजिश आसानी से नहीं बता पाती।सरकार ने इस डाटा का काम क्यों रोका?ये सवाल कौन करे?कोई करता भी है तो उसे वामी,कांग्रेसी या देशद्रोही तक बता दिया जाता है। सवाल है कि क्या वाकई में कोरोना पर हम नियंत्रण बेहतर कर रहे हैं?सरकार और चंपू मीडिया जो परोस रहे हैं,वो सच नहीं है।वाहवूदी जताने के लिए आंकड़ों का आपराधिक स्तर का खेल हो रहा है।इसे ही समझने के लिए ये पोस्ट लिख भी रहा हूं। कोरोना की वैश्विक ताजा स्थिति जानने की रिसर्च में तेजतर्रार युवा पत्रकार सूरज सोलंकी ने काफी मदद की है।सूरज का आभार!सरकार लगातार यह जताने की कोशिश कर रही है कि उसकी कुशलता की वजह से भारत में लाखों की जान बच गयी। जबकि तथ्यों पर गौर करें,तो साफ है कि यह जमीनी सच्चाई नहीं है।कोशिश यह है कि अमेरिका और कुछ उन यूरोपीय देशों में हुई मौतों के आंकड़ों से तुलना की जाए,जहां हालात ज्यादा खराब हुए हैं।
जबकि यह साफ हो गया है कि कोरोना हर क्षेत्र में एक जैसा मारक नहीं है।हर संभाग की जल वायु का असर पड़ता है।अच्छी बात है कि हर दस लाख मरीजों में हमारे यहां मरने वालों का आंकड़ा काफी कम रहा है।यूं तो पूरी दुनिया में कमी आ रही है।खास तौर पर दक्षिण एशिया के देशों में।पहले सरकारी प्रेस कांफ्रेंस में पड़ोसी मुल्कों का भी डाटा बताया जाता था।आप ने गौर किया कि नहीं? लेकिन ये सच्चाई है।क्योंकि इस डाटा से सरकार की शाइनिंग इंडिया कुछ फीकी दिखाई पड़ती। कल यानी21 अगस्त तक का जरा आंकड़ा देखिऐ!
अफगानिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है।वहां मेडिकल सुविधाएं हमसे भी गयी बीती हैं।औसत रूप में टेस्ट भी हमारे यहां से कम नहीं हुए।वहां कोरोना के मरीज मिले,37,894और मरने वालो की संख्या है,1385।चीन जो कोरोना का जनक देश है।वहां के मरीजों का आकंड़ा है,84,939 और कुल मरने वालों की संख्या है,4,634। एकदम पड़ोसी देश है, नेपाल।यहां का आंकड़ा है,30,43का। मरने वाले हैं सिर्फ 137।हमारा चर्चित पड़ोसी देश है, पाकिस्तान।यहां का आंकड़ा30,483का है।6,219लोगों की मौत हुई है।बता दें कि यहां कोरोना टेस्ट आबादी के मुताबिक प्रतिशत में भारत से ज्यादा हुए हैं।एक और पड़ोसी मुल्क है,श्रीलंका।यहां कुल2,941केस मिले।केवल 11लोगों की मौत हुई है।यहां इंडोनेशिया का भी जिक्र जरूरी है क्योंकि ,जब दिल्ली में जमाती आए थे,तो भारी बवाल हुआ था।इंडोनेशिया से भी तमाम जमाती आए थे।गोदी मीडिया ने ये तस्वीर बनाई थी कि एक साजिश के तहत भारत में कोरोना, जमातियों ने जानबूझ कर फैलाया।इसी से संक्रमण वाले देश इंडोनेशिया से ज्यादा जमाती भेजे गये।
उसी इंड़ोनेशिया का ताजा आंकड़ा12197मरीजों का है।यह दुनिया का सबसे ज्यादा मुस्लिमआबादी वाला देश है।यहां कोरोना से कुल 82लोग मरे हैं।ये सभी आंकड़े कल शाम तक के हैं।WHOकी आधिकारिक बेब साइट से लिए गये हैं।भारत में कोरोना विकराल रूप ले रहा है।आज सुबह जारी हुए आंकड़े के मुताबिक,29,73,368का आंकड़ा हो गया है।मरने वालों की संख्या,55,928 की पंहुची है।अब इसका खतरनाक प्रसार ग्रामीण इलाकों की तरफ बढ़ चला है।अस्पतालों की.हालत तो डरावनी हो चली है। आज ही यूपी विधान परिषद में सपा के एक वरिष्ठ विधायक ने रोकर अस्पताल की अपनी आप बीती बताई ,तो पूरे सदन में सन्नाटा छा गया।वे कोरोना पीड़ित होकर लखनऊ के प्रतिष्ठित सरकारी पीजीआई में भर्ती थे।वहांकी बद इंतजामी का जो ब्यौरा विधायक जी।ने दिया, वो सरकार के लिए शर्मसार करने वाला रहा।जब पीजीआई का यह हाल है ,तो जिले और तहसीलों के सरकारी अस्पतालों की हालात का अनुमान लगाना, मुश्किल नहीं होगा ?
दर असल,शुरुआत से ही कोरोना को लेकर सरकार की परिकल्पना बहुत सतही और देश को गुमराह करने वाली ज्यादा रही है।याद कीजिए! साहेब ने रात में आकर पूरे देश में लाकडाउन करने का एलान किया था।लोगों को अपने घरों तक लौटने का समय नहीं दिया गया था।जिसकी वजह से लाखों प्रवासी मजदूरों ने महीनों कैसी तबाही झेली!वो मंजर याद करके मेरे को तो आज भी आंसू आ जाते हैं ।दुनिया की मीडिया में यह दर्दनाक मंजर ,टीवी मीडिया में खूब दिखाया भी गया।इससे देश की छवि चमकी तो नहीं होगी?यह जरूर रहा कि गोदी मीडिया इस काल में नीचता की हद तक गुजरी।सरकार के आकाओं को खुश करने के लिए उन मजदूर परिवारों को ही जमकर कोसा,जो मजबूरी में एक एक हजार कलोमीटर पैदल ही चल पड़े थे।अपने घरों के लिए पैदल निकले सौ से ज्यादा मजदूर या उनके मासूम बच्चों ने भूख प्यास से रास्ते में दम तोड़ दियाथा।तमाम सड़क दुर्घटनाओं का शिकार बन गये थे।विभिन्न एजेंसियों के अनुमान के हिसाब से इस कोरोनाकल में करीब 15से20करोड़ और बेरोजगार हो गये हैं, नौकरियां गई हैं।छोटे धंधे बंद हुए हैं।यह तबाही वाला दौर जारी है।सत्ता पक्ष ,तो यही कोशिश कर रहा है कि इस तबाही पर सही विमर्श ही न हो।शायद वह चमकीले रैपर में लपेटकर कोरोनाकल के आंकड़े ऐसे परोस रहा है,मानो सरकार इसके सफल प्रबंधन में कोई विश्व गुरू बन गया हो?विपक्षी नेता भी अपनी भूमिका निभाने में बुरी तरह असफल रहे हैं।पता नहीं ,कोरोना के डर से या जेल जाने की आशंका से?