हिमांशु जोशी
भारत में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अंधेरे में रहते हुए भी पूरे देश में उजाला करते रहते हैं। नैनीताल समाचार की वजह से मेरा ऐसे ही एक रत्न से परिचय हुआ जिनका नाम है ‘बसु राय’।
बसु राय के पिता भारत में एक धार्मिक सिख परिवार से ताल्लुक रखते थे। परिवार के खिलाफ उन्होंने एक ‘बार डांसर’ से शादी कर ली जिससे उन्हें अपने परिवार से अलग होना पड़ा और वह भारत छोड़ पहले से अपने परिचित नेपाल के राजा वीर विक्रम शाह के पास जाकर रहने लगे।
अपने मॉडलिंग कॅरियर को बनाने के लिए बसु की माँ गर्भ धारण नही करना चाहती थी और बसु राय के दुनिया में आने के बाद बसु को उनकी माँ ने अपना दूध तक नही पिलाया। छह महीने के बसु और अपने पति को छोड़ उनकी माँ बिन बताए कहीं चली गयी और फिर कभी वापस नही आई।
बसु राय के पिता जिसके लिए अपना देश, धर्म और परिवार छोड़ आए थे उसके चले जाने से वह टूट गए और शराब पीने लगे। अपने पिता का अस्त व्यस्त कपड़ो में घर आना बसु को अभी भी याद हैं। उसके बाद पहले तो उन्हें पैरालिसिस हुआ और फिर साढ़े चार साल के बसु को इस दुनिया में अकेला छोड़ उनके पिता चल बसे। बसु के पिता को आखिरी क्रिया कर्म के लिए उनके कुछ दोस्त वहां से ले गए और दुनियादारी से अनजान एक छोटा सा बच्चा ‘थामेल’ की गलियों में चला गया।
अपने पिता को खो चुका और अच्छे कपड़े पहना एक बच्चा थामेल की गलियों में भूखा था। होटल से खाना मांगने पर होटल वाले ने बसु से पैसा मांगा और ‘पैसा’ शब्द बसु के लिए नया था।
बहुत देर बाद उन्होंने आसपास के लोगों को भिखारियों को पैसा देते हुए देखा तो नन्हे बसु को पता चला कि ऐसे पैसे मिलते हैं और वह भी सड़क के एक कोने में जाकर बैठ गए। लोग एक प्यारे से बच्चे को देखकर उसे पुचकार तो रहे थे पर पैसा कोई नही दे रहा था जिसके बाद छोटा सा बसु भूखे पेट ही सो गया।
रात 2:30 बजे एक गैंग ने आते ही सोते बसु को उठा कर पूछा कि तू कौन से गैंग का है। तुतलाती ज़ुबान में बसु के कौन सा गैंग पूछते ही नशे में धुत उन लड़कों ने बसु को मार मार कर अधमरा कर दिया।
डेढ़ घण्टे बाद एक और लड़के ने बेहोशी की हालत में पहुँच चुके बसु से उसका गैंग पूछा तो मत मारो कहता हुआ बसु बेहोश हो गया। वो लड़का उसे अस्पताल ले गया और बाद में बसु उसी लड़के के गैंग से जुड़ गया। उस गैंग की विशेषता यह थी कि वह लोग पैसे के लिए साथ नही थे बल्कि उनका मुख्य उद्देश्य बस जिंदा रहने के लिए खाने की व्यवस्था करना था।
बसु ने वहाँ कूड़ा बीना, भीख मांगी, होटलों, घरों, बूचड़खाने में काम किया। बूचड़खाने में काम करते हुए बसु का काम साइकिल चला कर मीठ पहुंचाना था। कैंची बना साइकिल चला मीठ बांटते बसु को मुर्गे काटते देखना अच्छा नही लगता था तो एक दिन उसने सारे मुर्गे भगा दिए जिसकी वज़ह से उसे फिर मार पड़ी।
साढ़े छह साल का हो चुका बसु अब ब्रेड फैक्ट्री में काम करता था। अपने गैंग के साथ जेब काटते हुए बसु अब तक पन्द्रह लोगों को चाकू मार चुका था और एक दिन पकड़े जाने पर बसु ने लोगों से फिर मार खाई। बसु कहते हैं कि ” लोग मारते हुए यह सोचना भूल जाते थे कि एक छोटा सा बच्चा जेब क्यों काट रहा है।”
बसु को यह काम बुरा लगता था तो उसने फिर से कूड़ा बीनना शुरू किया और कुछ समय बाद वह बीमार पड़ कर सड़क पर ही बेहोश हो गए। वहां ‘सिविन’ ( नेपाल में बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली एक अशासकीय संस्था ) के लोगों की नज़र उन पर पड़ी और वो लोग बसु को अपने साथ ले गए।
आँख खुलने पर बसु को पहली बार प्यार नसीब हुआ उन्हें लगा कि वह मर कर स्वर्ग में आ गए हैं क्योंकि उन्होंने सुना था कि स्वर्ग में अच्छे लोग रहते हैं।
आठ साल के बसु ने एक महीने बाद सिविन में पहली बार अपना मुँह खोला और पूछा कि मुझे मशहूर और पैसे वाला बनना है उसके लिए मुझे क्या करना होगा?
सिविन के लोग इस बात से खुश थे कि यह बच्चा गूंगा नही है पर बसु के सवाल से वह परेशान भी हो गए।
सिविन के एक कर्मचारी ने बसु से पूछा कि वह मशहूर और पैसे वाला क्यों बनना चाहते हैं तो बसु ने कहा कि जैसे आपने मेरा ध्यान रखा वैसे ही मैं अपने जैसे लोगों को सड़क से अच्छा जीवन देना चाहता हूं और इसके लिए मुझे पैसे की जरूरत होगी।
एक छोटे बच्चे से इतनी बड़ी बात सुन सिविन के लोग उससे प्रभावित हुए और बसु को एक पुनर्वसन केंद्र
भेजा गया। जहां विदेशी शिक्षक मुफ्त में अच्छी शिक्षा देते थे और उन्हें वहां पहनने के लिए अच्छे कपड़े मिलते थे। बसु राय कहते हैं कि “यहां से बसु राय ने जन्म लिया’।
वर्ष 1997 में कैलाश सत्यार्थी एक ऐसे बच्चे को ढूंढ रहे थे जो पूरी दुनिया में शोषण झेल रहे बच्चों की आवाज़ बने। इसी वजह से ली जा रही परीक्षा में बसु राय ने खाना खाते हुए यह सुना कि जो जीतेगा वह विदेश जाएगा। तब बसु इस परीक्षा को गम्भीरता से लेने लगे।
सिविन के शिक्षक ‘गौरी प्रधान’ ने जब बसु से पूछा कि बेटा वहां आप ही क्यों जाएं मैं क्यों न जाऊं?
तब एक आठ साल के बच्चे का उनको जवाब था कि ” अगर आपने लोगों की पॉकेट मारी है, मार खाई है तो मेरी जगह आप चले जाइए। जो मेरे साथ हुआ वो सरकार और समाज की गलती है” । वहाँ मौजूद 3025 बच्चों में से बसु राय को कैलाश सत्यार्थी के इस ‘ग्लोबल मार्च’ के लिए चुना गया।
अपने शिक्षक ‘तारक धीताल’ के साथ पहली बार प्लेन में बैठते ही बसु राय का प्लेन में बैठने का वह सपना पूरा हो रहा था जो उसने अपनी साढ़े चार साल की उम्र से सड़क पर बैठकर देखा था। बसु राय को लगा कि भगवान ने उनकी सुन ली है। तारक धीताल भावुक होकर बसु से बोले कि अभी तो यह शुरुआत है।
नेपाल से हॉंगकॉंग और वहां से फिलीपींस पहुँचने के बाद अगले दिन 14-18 तक की उम्र के चुने हुए सभी बच्चों का प्रतिनिधि भी उनमें मौजूद एकमात्र 9 साल का बच्चा ‘बसु राय’ बना।
ग्लोबल मार्च में कैलाश सत्यार्थी की अगुवाई में ‘शोषण से शिक्षा तक, लेट्स स्टॉप चाइल्ड लेबर’ नारे के साथ बसु राय ने 7.2 मिलियन अन्य प्रतिभागियों के साथ पूरी दुनिया में 80000 किमी तक मार्च किया।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के इतिहास में पहली बार 2 जून 1998 को कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में नागरिक समाज को संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा मुख्यालय में प्रवेश की अनुमति दी।बसु राय ने वहां अपनी बात रखते हुए कहा कि मेरे सामने बहुत से बच्चे चाकूबाजी में मरते थे । उनका सड़क पर रात भर खून बहता रहता था और सुबह सरकारी गाड़ी आकर उनकी लाशों को उठा ले जाती थी।
क्या आप इसे वापस ला सकते हैं? क्या आप हमारा खोया बचपन वापस कर सकते हैं? यह सुनने के बाद वहाँ सब सुन्न थे। इससे बाल श्रम कन्वेंशन (182) के सबसे बुरे रुपों पर चर्चा शुरू हुई। जिसे आखिरकार 1999 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनाया।
इसके बाद वर्ष 1999 में बसु ने कैलाश सत्यार्थी से भारत वापस आने की जिद की और उन्हें अब तक पता चल गया था कि नेपाल हिंदुस्तान में नही है और उनके पिताजी हिंदुस्तानी थे। कैलाश ने बसु को नेपाल में रह कर ही अच्छी शिक्षा प्राप्त करने की सलाह दी पर बसु जिद कर उनके पास रहने भारत आ गए।
वर्ष 2001 में कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में शिक्षा यात्रा का आयोजन किया गया था। बसु राय भी इस यात्रा में एक लाख अन्य लोगों के साथ शामिल थे। इस यात्रा का उद्देश्य संसद में लंबित संवैधानिक सम्बोधन के पारित होने और कार्यान्वन को सुनिश्चित करना था। जो 18 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण मुफ्त शिक्षा को अनिवार्य बना देता। इन्हीं प्रयासों से भारत में वर्ष 2009 में ‘शिक्षा का अधिकार’ अधिनियम लागू हुआ।
इस बीच बसु ‘दूरस्थ शिक्षा’ से अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए थे। नेहरू स्टेडियम में मार्शल आर्ट्स, ताइक्वांडो और जूडो सीख बसु इसका ट्यूशन दे अपनी पढ़ाई के लिए पैसा जोड़ते थे। वर्ष 2014 बसु के जीवन के लिए महत्वपूर्ण रहा। 2014 में 11 जनवरी 1954 को विदिशा में जन्में कैलाश सत्यार्थी को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ उनके संघर्ष के लिए और सभी बच्चो को शिक्षा के अधिकार के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।
यह बसु के जीवन का सबसे खुशी वाला दिन था क्योंकि यह जीत सिर्फ कैलाश सत्यार्थी जी की ही नही थी यह जीत उनकी पूरी टीम की जीत थी। इसी वर्ष बसु का विवाह हुआ। वर्ष 2014 में ही बसु राय के जीवन के ऊपर लिखी पुस्तक ” ‘बसु राय’ फ्रॉम द स्ट्रीट्स ऑफ काठमांडू ” आई। बसु राय की यह पुस्तक हमारी शिक्षा प्रणाली, सामाजिक कल्याण प्रणाली को सुधारने के लिए कितनी महत्वपूर्ण है यह हम इससे समझ सकते हैं कि इस पुस्तक का विमोचन करते समय किरण बेदी, कैलाश सत्यार्थी जैसी शख्सियत मौजूद थे।
बाल यौन शोषण और बाल दुर्व्यवहार के खिलाफ कैलाश सत्यार्थी ने भारत यात्रा का आयोजन किया था।
11 सितंबर 2017 को विवेकानंद शिला स्मारक (कन्याकुमारी) से यह यात्रा “सुरक्षित बचपन, सुरक्षित भारत” सपने को लेकर बसु राय सहित सौ लोगों की टीम के साथ शुरू हुई। 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरते हुए इस यात्रा ने 12000 किलोमीटर का सफर तय किया था। इस यात्रा में 12 लाख लोग शामिल हुए।
16 अक्टूबर 2017 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के अंदर इस यात्रा का समापन हुआ।
बसु राय का भारत में बच्चों के हित के लिए ‘बसु राय पहल फाउंडेशन’ नाम से एक पंजीकृत गैर लाभकारी संगठन भी है । इसके बाद बसु ने ‘इंडियन स्कूल ऑफ डेवलपमेंट एंड मैनेजमैंट’ से लीडरशिप मैनेजमेंट कोर्स किया। इससे उन्हें पता चला कि नेतृत्व क्या होता है। बसु राय वर्षों से अपनी जान जोखिम में डालकर बहुत से बच्चों को उनके मालिकों से बचा रहे थे पर अब उनके मन में यह प्रश्न उठने लगा कि इस हवा और पानी का क्या होगा।
इसलिए उन्होंने अब पर्यावरण के मुद्दों को जानने और समझने के लिए पर्यावरण सुधार कार्यक्रमों में भागीदारी करने का निर्णय लिया है। बसु इस समय नैनीताल में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़े एक प्रोजेक्ट ‘हिलदारी’ के लिए काम कर रहे हैं।
जिन परिस्थितियों से बसु राय बचपन में गुज़रे उस बचपन को बदलने और अन्य सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए आज हमें बसु राय जैसे ही लाखों परिवर्तनकारी युवाओं की आवश्यकता है। पर उसके लिए हमें नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी जैसा बनना होगा जिन्होंने अपने बचपन से ही बाल शोषण व बाल शिक्षा के लिए आवाज़ उठाई और बसु जैसे बच्चों को सड़क से ला समाज के लिए एक उदाहरण बना दिया।