साहित्य अकादेमी सम्मान से पुरुस्कृत विख्यात हिन्दी कवि वीरेन डंगवाल की स्मृति में बरेली में एक स्मारक का लोकार्पण आज किया गया. हिन्दी के जाने-माने उपन्यासकार-कहानीकार लक्ष्मण सिह बिष्ट ‘बटरोही’ द्वारा स्मारक का उद्घाटन किया गया.
Viren Dangwal Memorial Inaugurated in Bareilly
लोकार्पण समारोह में वीरेन डंगवाल के परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त सांसद संतोष गंगवार, पूर्व सांसद प्रवीण ऐरन भी मौजूद थे. साहित्यकारों में योगेन्द्र आहूजा, सुधीर विद्यार्थी, विनोद सौनकिया, अशोक पांडे मौजूद थे.
बरेली, 05 अगस्त 1947 को कीर्ति नगर, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड, भारत में जन्मे वीरेन डंगवाल की कर्मस्थली रहा है. वे यहाँ के बरेली कॉलेज में हिन्दी पढ़ाने के अलावा दैनिक ‘अमर उजाला’ के स्थानीय सम्पादक के तौर पर लम्बे समय तक कार्यरत रहे थे.
28 सितम्बर 2015 को हुए उनके निधन के बाद से ही उनकी स्मृति को सुरक्षित बनाए रखने के लिए बरेली और उत्तराखंड के साहित्य प्रेमियों द्वारा मांग उठाई जाती रही थी.
विख्यात लेखक व पत्रकार सुधीर विद्यार्थी के प्रयासों से जिला प्रशासन की संस्तुति पर उत्तर प्रदेश सरकार ने वीरेन डंगवाल स्मारक बनाए जाने पर सहमति इसी वर्ष फरवरी माह में व्यक्त की थी. मशहूर चित्रकार अशोक भौमिक को इस स्मारक की शुरुआती रूपरेखा बनाने का कार्य सौंपा गया था.
पिछले दशकों में उनकी कविताओं ने जैसी ख्याति अर्जित की उसे देखते हुए यह दिलचस्प लगता है उनके कुल मात्र तीन संग्रह प्रकाशित हुए. कवि-आलोचक बार-बार बताते आए हैं कि वीरेन निराला और नागार्जुन की परम्परा के कवि हैं. यह बात अंशतः सच है लेकिन अद्वितीयता उनकी आधुनिकता और सजगता में निहित है. Viren Dangwal Memorial Inaugurated in Bareilly
हिन्दी कवि-अनुवादक-चिन्तक-अध्येता विष्णु खरे ने अपने अतरंग मित्र वीरेन डंगवाल को याद करते हुए लिखा था कि
उनकी कविता की एक अद्भुत विशेषता यह है कि मंचीय मूर्ख हास्य-कवियों से नितांत अलग वह बिना सस्ती या फूहड़ हुए इतने ‘आधुनिक’ खिलंदड़ेपन, हास-परिहास,भाषायी क्रीड़ा और कौतुक से भरी हुई हैं कि प्रबुद्धतम श्रोताओं को दुहरा कर देती थी. इसमें भी वह हिंदी के लगभग एकमात्र कवि दिखाई देते हैं और लोकप्रियता तथा सार्थकता के बीच की दीवार तोड़ देते हैं.
लोकार्पण कार्यक्रम की एक्सक्लूसिव तस्वीरें देखिये :
हिन्दी वैब पत्रिका ‘काफल ट्री’ से साभार