इस्लाम हुसैन
हल्द्वानी में रेलवे की कथित जमीन पर बनभूलपरा की बस्ती बसने को लेकर मीडिया में और ख़ास विचार धारा ने यह अफवाह ख़ूब फैलाई है कि यहां कथित रेलवे की ज़मीन पर लोगों को बसाने का काम कांग्रेस ने अपने वोट बैंक के लिए किया। लेकिन जो लोग हल्द्वानी के इतिहास और भूगोल से थोड़ा बहुत भी परिचित होंगे उन्हें पता होगा कि शहर के फैलाव के समय हर पार्टी के नेता ने जहां भी लोग बसे वहां उनको मदद की और बनभूलपरा भी इसमें अपवाद नहीं है। तथ्यों की दृष्टि से देखें तो पता लगेगा कि बनभूलपरा शहर की आबादी बढ़ने के साथ साथ फैला है।
हल्द्वानी बसने की शुरूआत 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से थोड़ा पहले हुई। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय मुस्लिम रोहेला पठान के साथ अंग्रेजी सेना का युद्ध हुआ था। सितम्बर 1857 में हल्द्वानी पर हमला रोहेलों का हमला काला खान के नेतृत्व में हुआ था जिसमें हल्द्वानी पर स्वतंत्रता सेनानियों का कब्जा हो गया था। लेकिन जल्दी ही रोहेलों की हार हो गई।
कुमाऊँ कमिश्नरी के मैदानी क्षेत्र अवश्य इस दौरान ग़दर से प्रभावित रहे जो कमिश्नर रैमजे के लिये चिंता का विषय बने। जुलाई 1857 में बकरीद के मौके पर रामपुर में विद्रोह भड़कने और उससे नैनीताल के प्रभावित होने की आशंका से रैमजे ने ब्रिटिश औरतों और बच्चों को नैनीताल से हटा कर अल्मोड़ा भेज दिया था, हालाँकि रामपुर के नवाब अंग्रेज़ों के सहयोगी थे। नैनीताल पर कब्ज़ा करने का प्रथम प्रयास सितंबर 1857 में हुआ और 17 सितम्बर 1857 की एक घटना में मैदानी भाग में स्थित हल्द्वानी शहर पर विद्रोहियों ने कब्ज़ा भी कर लिया था जिसे बाद में अंग्रेजों ने वापस हासिल कर लिया। इस आक्रमण का नेतृत्व काला खान नामक विद्रोही कर रहा था।
रोहेलों की हार के बाद पकड़े गए रोहेलों को नैनीताल के फांसी घर में फांसी दी गई थी।
ऐसा माना जाता है कि उस समय हल्द्वानी खाम की ज़मीन अंग्रेजों ने जब्त कर ली जिसे बाद में दान सिंह मालदार को लीज पर मिली।
नैनीताल अल्मोड़ा में अंग्रेजों के मजबूत होने से उनकी सप्लाई चेन हल्द्वानी से बनी जिसके लिए मुस्लिम व्यापारी रामपुर बिजनौर से आने लगे। रामपुर का नवाब चूंकि अंग्रेजों का सहयोगी रहा तो इसलिए रियासत रामपुर टाडां और बिजनौर की ताजपुर रियासत के कारोबारी और व्यापारी आकर यहां बसे, बाद में जिनका कारोबार नैनीताल और अल्मोड़ा के इलाकों में फैला। उस समय सारा व्यापार घोड़ों से और घोड़ा गाड़ी, बैलगाड़ियों और ऊंट गाड़ियों से होता था।
रेल आने के बाद मुख्य बसासत रेलवे स्टेशन के आसपास हुई थी। मंगल पड़ाव में साप्ताहिक मंडी लगने लगी जहां मुस्लिम बंजारे व्यापार अनाज की ख़रीद फरोख्त करने लगे। इसी दौरान कुमाऊं कमिश्नर सर हेनरी रामजे ने हल्द्वानी का बनभूलपुरा बसाया।
आजादी के समय से ही इस क्षेत्र पर कांग्रेस का दबदबा रहा।1952 और 1957 के हल्द्वानी जैसे बड़े मुस्लिम बाहुल्य वाली नैनीताल लोकसभा सीट गोविन्द बल्लभ पन्त के दामाद सीडी पाण्डेय ने जीती। इसके बाद यह सीट गोविन्द बल्लभ पन्त के पुत्र केसी पंत ने लगातार तीन बार 1962, 1967 और 1971 जीती और वो केन्द्र सरकार में मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इन चुनावों में बनभूलपरा का असरदार अब्दुल्ला परिवार कांग्रेस के साथ रहा। हल्द्वानी की बसासत में अहम रोल निभाने वाले मुस्लिम बंजारे ताजपुर रियासत और टांडे से आए थे। उत्तराखंड के हाईकोर्ट के जज रहे जस्टिस इरशाद हुसैन के पूर्वज यहां आकर बसे। उन्नीसवीं सदी के मध्य से लेकर बीसवीं सदी के मध्य तक उनका कुमाऊं में बड़ा कारोबार रहा। इस परिवार के कई सदस्य डिस्ट्रिक्ट बोर्ड और म्यूनिसिपल बोर्ड में रहे जस्टिस इरशाद के वालिद अब्दुल्ला साहब हल्द्वानी नगर पालिका के चेयरमैन रहे वो स्वतंत्रता सेनानी और देश के गृहमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त के निकट सहयोगी रहे। गोविन्द बल्लभ पन्त के बाद उनके बेटे और केन्द्रीय मंत्री रहे केसी पन्त के साथ उनका सम्बन्ध रहा एक समय में अब्दुल्ला साहब हल्द्वानी में एक तरह से केसी पन्त के सबसे बड़े सहयोगी रहे। अब्दुल्ला बिल्डिंग बरेली रोड और बनभूलपरा हल्द्वानी की पहचान रही है।
उन्नीसवीं सदी से लेकर आजादी और बीसवीं सदी के मध्य तक बनभूलपुरा घना होने लगा तब इसका विस्तार नई बस्ती और इन्दिरा नगर की तरफ होने लगा। लीज़ और नीलामी के आधार पर लोगों को रहने के लिए ज़मीन मिली और आबादी बढ़ने लगी।
अपने प्रारम्भिक काल पहले आम चुनाव 1951-52 से ही नैनीताल लोकसभा सीट कांग्रेस के गढ़ की तरह रही है. इसमें पहली बार सेंध 1977 के चुनाव में लगी. जब कांग्रेस के सांसद केसी पंत जनता पार्टी के प्रत्याशी भारत भूषण से चुनाव हार गए थे. आपातकाल के बाद हुए इस चुनाव में कांग्रेस के एकाधिकार का यह सिलसिला टूटा और उसके बाद कोई भी दल इस सीट ज्यादा वर्षों तक अधिपत्य नहीं जमा पाया.
आपातकाल के बाद जनता पार्टी भले ही सत्ता में आ गई हो, लेकिन वह ढाई साल में ही सत्ता से बाहर हो गई और 1980 में देश में मध्यावधि चुनाव हुए. जिसमें जनता पार्टी के भारत भूषण को हरा कर कांग्रेस के नायायण दत्त तिवारी सांसद बने. इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद 1984 में चुनाव हुए तो कांग्रेस के सत्येन्द्र चन्द्र गुड़िया सांसद बने. उसके बाद 1989 के चुनाव में कांग्रेस के सत्येन्द्र गुड़िया को जनता दल के डॉ. महेन्द्र सिंह पाल ने हराया. जनता दल की सरकार भी अपने आपसी झगड़ों के कारण अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और 1991 में मध्यावधि चुनाव हुए. रामलहर के बीच हुए इस चुनाव में नैनीताल सीट पर भारी उलट फेर हुआ और भाजपा के एक अनजान युवा चेहरे बलराज पासी ने कांग्रेस के खांटी नेता एनडी तिवारी को चुनाव में मात दे दी और इस तरह इस सीट पर पहली बार भाजपा को कब्जा जमाने में सफलता मिली.
इस बीच इस क्षेत्र में उत्तरप्रदेश की विभिन्न सरकारों की तरफ से विकास कार्य भी होने लगे। सड़कें बनीं, आजादी से पहले यहां एक सरकारी प्राइमरी स्कूल बन चुका था बाद और सरकारी स्कूल भी बने। अस्पताल बना, बिजली लाइन पहले से ही थी, बाद में सीवर लाइन भी आ गई।
पूरे देश में आबादी बढ़ने की जिम्मेदारी तत्कालीन सरकारों पर डाली जाए तो अंग्रेजों के बाद कांग्रेस सरकार पर जिम्मेदारी डाली जानी चाहिए। बनभूलपरा की इसका अपवाद नहीं माना जा सकता। लेकिन बनभूलपरा की बसासत आजादी से पहले से भले ही शुरू हुई हो उसमें गैर कांग्रेसी सरकारों का भी अहम रोल रहा है। 1960 के दशक में जब बनभूलपरा का नई बस्ती और इन्दिरा नगर की तरफ फैलाव होना शुरू हुआ तो कांग्रेस के साथ साथ उन विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने भी अपने अपने समर्थकों को यहां तक बसाया जो आपातकाल के बाद में जनता पार्टी में शामिल होगए थे। उस दौर से ही इन्दिरानगर में जीआईसी , राजकीय प्राथमिक विद्यालय इन्दिरानगर, नई बस्ती दुर्गामन्दिर, धर्मशाला और आसपास का क्षेत्र भाजपा समर्थक और वोट बैंक रहा है। वहां से भाजपा के नगर पार्षद चुने जाते रहे हैं, खुद महापौर जो भाजपा के हैं वो अपनी पार्टी का प्रचार और वोटरों को लुभाने के लिए वहां जाते रहे हैं।
उत्तराखंड बनने से पहले उत्तर प्रदेश में लम्बे समय से भाजपा और समाजवादी पार्टी की सरकारें रही हैं। जिन्होने समय समय पर बनभूलपरा की नागरिकत सुविधाओं के लिए लाखों करोड़ों का बजट उपलब्ध कराया है। उत्तर प्रदेश की गैर कांग्रेसी सरकारों के बजट से या यूं कहें जनता के टैक्स के पैसे से बनभूलपरा क्षेत्र में स्कूल, सड़कें, स्वास्थ्य सेवाएं, विद्युत और सीवर लाइन जैसी मूलभूत सेवाएं उपलब्ध कराई गईं। यह गैर कांग्रेसी भाजपा, बहुजन समाजवादी पार्टी, और समाजवादी पार्टी की सरकारें कल्याण सिंह, मायावती, रामप्रकाश गुप्ता मुलायमसिंह राजनाथ सिंह आदि रहीं थीं। इस तरह उत्तराखंड बनने के बीस साल पहले से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं थी। इस तरह बनभूलपरा की बसावट को कांग्रेसी वोटबैंक से जोड़ने की बात पूरी तरह फ़र्जी और एक ख़ास तरह की मानसिकता का प्रचार है।
श्रीमती इन्दिरा हृदयेश उत्तराखंड की पहली विधानसभा में विधायक (एमएलए) के तौर पर शामिल रही और राज्य में मार्च 2002 में विधानसभा चुनाव होने तक अंतरिम विधानसभा की सदस्य रही. पहले विधानसभा चुनाव 2002 में वह हल्द्वानी से पहली बार विधायक चुनी गई . उन्होंने भाजपा की अंतरिम सरकार के मन्त्री बंशीधर भगत को हराया. कॉग्रेस सत्ता में आई तो नारायण दत्त तिवारी पहली निर्वाचित सरकार के मुख्यमन्त्री बने और इंदिरा हृदयेश लोकनिर्माण, विधायी एवं संसदीय कार्य तथा वित्त मन्त्री बनी. तिवारी मन्त्रिमंडल में वह सबसे अधिक ताकतवर मन्त्री रही. उन्हें तब सुपर मुख्यमन्त्री भी कहा जाता था. दूसरे विधानसभा चुनाव में 2007 में वह हल्द्वानी से ही भाजपा के बंशीधर भगत से चुनाव हार गई.
तीसरे विधानसभा चुनाव में 2012 में उन्होंने भाजपा की रेणु अधिकारी को हल्द्वानी सीट से चुनाव हराया और राज्य में कॉग्रेस की सरकार बनने पर वह पहले विजय बहुगुणा और उसके बाद हरीश रावत मन्त्रिमंडल में विधायी एवं संसदीय कार्य व वित्तमन्त्री रही. इन दोनों नेताओं के मुख्यमन्त्री काल में भी इंदिरा हृदयेश की सरकार से लेकर कॉग्रेस संगठन तक तूती बोलती थी. राज्य के 2017 में हुए चौथे विधानसभा चुनाव में कॉग्रेस तो सत्ता से बाहर हो गई, लेकिन इंदिरा हृदयेश हल्द्वानी से तीसरी बार विधायक बनने में सफल रही. इस बार उन्होंने भाजपा के डॉ. जोगेन्द्रपाल सिंह रौतेला को हराया. कॉग्रेस को केवल 11 सीटों पर ही विजय मिली. इंदिरा ह्रदयेश को कॉग्रेस ने विधायक दल का नेता बनाया और इस तरह वह नेता प्रतिपक्ष बनी और अपनी मृत्यु के दिन 13 जून 2021 तक इस पद पर रही।
उत्तराखंड बनने के बाद भी कांग्रेस की एक स्थायी सरकार के सापेक्ष भाजपा की सरकार ज्यादा रही है और उसके शासन काल में भी बनभूलपरा में नागरिक सुविधाओं पर अच्छा खासा बजट ख़र्च किया गया है। इस तरह यह बात कुप्रचार से ज़्यादा कुछ नहीं कि कांग्रेस ने इस इलाके की आबादी अपने राजनैतिक लाभ के लिए बढ़ाई थी। जबकि बनभूलपरा क्षेत्र में भाजपा का भी अच्छा ख़ासा होल्ड है।
अभी हाल में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने हल्द्वानी में करोड़ों की लागत से बने जिस सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का उद्घाटन किया उसकी लाइन भी बनभूलपरा की के कथित रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण क्षेत्र से होकर जा रही है।
भाजपा ने डेमोग्राफिक स्थिति के कारण 2007 से ही इस क्षेत्र को अलग थलग करके राजनैतिक लाभ लेने का प्रयास शुरू कर दिया था। तथा इसके लिए अदालत में याचिका और रेल सुविधाएं बढ़ाने का आधार लिया गया।
यह उल्लेखनीय है कि 2007 तक रेलवे ने कभी भी रेल सुविधाओं के लिए कथित जमीन अतिक्रमण हटाने की मांग या कार्यवाही नहीं की थी। 2007 में कुल 29 एकड़ के कथित अतिक्रमण की जो मांग आई थी उसमें से 10 एकड़ जमीन उसे मिल गई थी।