पृथ्वी ‘लक्ष्मी’ राज सिंह
ऐसे ही एक घाट में बडा पंडाल लगा था, जिसमें बहुत बडा प्रवचन चल रहा था और प्रवचन में चल रहा था जीवन के आश्रमों का प्रसंग।
बाबा मोक्ष तक पहुंच चुके थे। देवों का जहाज इन्तजार में खडा था, जैसे संसद सत्र के लिए माल्या अपने व्यक्तिगत जहाज में बम्बई से दिल्ली निकलते हुए बाकी सदस्यों का इन्तजार कर रहे हों। बाबा भी अधीर हो चुके थे, वह सामने बैठी बाला को ऐसी आतुरता से घूरे जाते थे कि कब देवलोक की सभा में पहुंचे और आज पहला नाच इस बालिका का हो।
युधिष्ठिर और कुत्ता बस, माल्या! माफ करना, देवों के जहाज में पांव रखने ही वाले थे कि जैसे आकाशवाणी हुई “महाराज!” बाबा की ताडनिद्रा टूटी, सामने एक भक्त खडा था, प्रश्न पूछना चाहता था।
“हां कहो प्यारे!” बहुत गुस्सा आ रहा था बाबा को।
“महाराज! संत भी इन्द्र के दरबार जाते हैं मरने के बाद!”
“संत कभी मरते नहीं मूरख!” बाबा ने झिडका, खुद को एडजस्ट किया, “वह तो चोला बदलते हैं। यह देख मेरा सफेद चोला! मैं भी बदलूंगा इसे एक दिन।”
लडकी ने फूल हवा में उछाला, बाबा खुद उससे जा टकराये।
“महाराज!”
“हाँ बालिके!” बाबा ने पुचकारा, अपने पास बुलाया, सहलाया।
“बाबा! कल मैंने आपको सपने में देखा”
“हां! हम आये थे बेटा रात को तेरे पास। हम अक्सर जाते हैं रात में। संकट हरने।”
“लेकिन बाबा आप को बहुत भूख लगी थी, आप कुछ टटोल रहे थे।”
बाबा की आखें नशीली हो चुकी थी, उनके हाथ बेचैन हो उठे थे। वह उसके सिर को सहलाते हुए अपनी गोद तक दबाना चाहते थे।
“अच्छा”
“हां! आपने ना! यही सफेद कपडे पहने थे”
आह! कपडे चुभने लगे थे। बाबा सतसंग भूल चुके थे। अखबारों में पढी बलात्कार की खबरें दिमाग में घुसने लगी थी। अंगुलियाँ सहलाने से विरोध करने लगी थी अब वह शरीर में गहरे धंस जाना चाहती थी।
“आप के सफेद कपडों में वह काली धारियां कैसी थी बाबा!” लडकी उस दिव्य स्वप्न को तफतीस से जानना चाहती थी।
“वो! वो!” बाबा चौंके, हाथ जैसे तवा छू गया। धर्म ग्रंथ मौन थे और अखबारों में छपी तस्वीरों में आसाराम और रामरहीम जेल से अदालत का सफर तय कर रहे थे।
बाबा उठ खडे हुए, खडी हो गई लाखों लोगों की भीड। बाबा ने उठाया हाथ, पूरा पंडाल में उठे हाथ जयकारों में बदल गये।
प्रसंग जो भी हो बाबा अपनी प्रासंगिकता जानते थे।