गजेन्द्र रौतेला
रुद्रप्रयाग । 4 मई 2021। कल शाम लगभग साढ़े चार बजे के आसपास जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी की दूरी पर बद्रीनाथ राजमार्ग के नरकोटा और खांखरा में बादल फटा और करीब 12-15 घरों और गौशालाओं में मलबा और पानी घुस गया। जिससे घरेलू सामान के नुकसान के साथ-साथ पूरा जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया और बद्रीनाथ राजमार्ग बन्द हो गया। गनीमत यह रही कि दिन का समय होने से लोग वक़्त रहते सचेत हुए और सुरक्षित निकल आये। हालांकि इस मलबे की चपेट में एक बाइक और बोलेरो गाड़ी आ गई जिसमें बैठे चार सवारियों को भी सुरक्षित बचा लिया गया। इसी प्रकार की घटना नरकोटा से लगभग 5 किमी आगे खांखरा के पास बछणस्यू पट्टी में घटी जहाँ खांखरा सहित फतेहपुर ,कांडई और गैरसारी में भी सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई और फसल और कृषि भूमि को भारी नुकसान हुआ है। इसी क्षेत्र के पास अलकनंदा नदी के ठीक सामने कोटली भरदार में इसी तरह के बादल फटने की घटना हुई यहां भी कोई जनहानि तो नहीं हुई लेकिन यहाँ भी घरों में मलबा और पानी घुस गया जिससे घरेलू सामान का नुकसान हुआ है।और ऐसी ही खबरें उत्तरकाशी जिले के मोरी विकासखंड के गाँव फिताडी जहाँ करीब 40 भेड़ बकरियों और चिन्यालसौड़ विकासखंड के कुमराडा और बुल्डोगा में भी मवेशियों के मरने , फसलों और कृषि भूमि के भारी नुकसान की खबरें हैं।
आज के इस कठिन दौर में जब एक तरफ तो कोविड के कारण आम जनता की जद्दोजहद जारी है तो वहीं दूसरी तरफ ऐसी घटनाएं लोगों के मनोबल को बुरी तरह तोड़ देती हैं। जो उनके जीवन को और कठिन कर दे रही हैं।
हाल के कुछ वर्षों में यह देखने में आ रहा है कि पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं बड़ी तेजी से बढ़ी हैं। बल्कि पहले जो गिनी चुनी घटनाएं सिर्फ मानसून में होती थी वो अब कभी भी और कहीं भी देखने सुनने में आ रही हैं। ये सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है। जब इस संदर्भ में मैंने पर्यावरण विशेषज्ञ विशाल रस्तोगी से पूछा तो उन्होंने बताया कि इसके कारणों में से एक प्रमुख कारण है क्लाइमेट चेंज और अनियोजित विकास का मॉडल। इसको थोड़ा विस्तार में बताते हुए उन्होंने कहा कि मध्य हिमालयी क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद संवेदनशीलशील है और भौगौलिक रूप में बहुत नाजुक भी।यहाँ के विकास का मॉडल भी वही नहीं हो सकता जैसा कि अन्य जगह का। दो उदाहरणों से उन्होंने इसको स्पष्ट करने की कोशिश की एक तो यह कि जितनी भी निर्माण की बड़ी-बड़ी योजनाएं और परियोजनाएं बनाई जा रही हैं चाहे वो चारधाम सड़क परियोजना हो या बड़े-बड़े बांध और बिजली परियोजनाएं या फिर रेलवे के निर्माण कार्य आदि इन सभी के द्वारा जमीन की ऊपरी सतह सीमेंट के निर्माण कार्य या किसी भी ढांचे से ढक दी गई हो जो कि ऊष्मा या गर्मी को मिट्टी में समाहित करने के बजाय वापस परावर्तित करती हो तो उससे उस स्थान का क्लाइमेट बहुत अधिक प्रभावित होता है जिससे वहाँ के तापमान में भी बदलाव आ जाता है और दूसरा जंगलों में लगने वाली आग भी उस विशेष क्षेत्र के क्लाइमेट में भारी बदलाव करती है। क्योंकि आग लगने से गर्म हवाएं ऊपर उठती हैं और खाली स्थान को भरने के लिए ठंडी हवाएं बड़ी तेजी से उस जगह पर आती हैं जिससे बादल बनने की प्रक्रिया बहुत तेजी से बढ़ जाती है जिससे बादल फटने जैसी घटनाएं भी लगातार बढ़ती जा रही हैं।
इस बारे में जब स्थानीय युवा और उक्रांद के नेता मोहित डिमरी से पूछा गया तो उन्होंने भी कुछ इसी तरह की बातों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि -“इन तमाम बड़ी-बड़ी परियोजनाओं से निकलने वाली लाखों- करोड़ों टन मिट्टी और अन्य मलबे को जगह-जगह यूँ ही फेंक दिया जाता है जिससे स्थानीय पर्यावरण और नदियों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।और सरकार के नीति नियंता भी और नियम- कानून लागू करवाने वाली एजेंसियां भी आँख मूंदकर बैठी रहती हैं जिससे स्थानीय जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।जैसे कि कल गुलाबराय में एन एच द्वारा बनाई गई रोड का पूरा पानी लोगों के घरों में जा घुसा”
इस पूरी घटना पर रुद्रप्रयाग के ही एक स्थानीय युवा अशोक चौधरी कहते हैं कि – “अब तो पहाड़ में रहने वाले हम सभी लोगों की यही नियति बन गई है कि कभी बाढ़ से , कभी भूस्खलन से , कभी बादल फटने से हम खत्म हो रहे हैं और रही-सही कमी चारधाम सड़क परियोजना और बाँधों के लिए हमें अपनी ज़मीन और घरों से बेदखल करके पूरी की जा रही है।” दरअसल यही कड़वा सच भी है कि विकास के नाम पर एक बड़ा नेटवर्क सिर्फ अपने हित साध रहा है जिसकी चपेट में आम जनता पिस रही है।