जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
यातायात व्यवस्था को देखते हुए सबसे पहले तो उत्तराखंड की सरकार ये संज्ञान ले कि पॉलीटेकनिक व अन्य विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के मद्देनजर फिलहाल बच्चों को दो हफ्ते की मोहलत दें. इस वक्त गढ़वाल मंडल का यातायात नेटवर्क पूरी तरह से फ्लॉप हो चुका है. नरेन्द्रनगर–चंबा मार्ग बंद कर दिया गया है. देवप्रयाग, तीन धारा, ऋषिकेश मार्ग बंद भी है व खतरनाक भी बना हुआ है. चमोली, रुद्रप्रयाग जनपदों के लोगों के लिये रुद्रप्रयाग–श्रीनगर के बीच खांकरा को पार करना कठिन हो गया है, लिहाजा लोगों को तिलवाडा–मयाली–घनसाली होते हुए चंबा से धनोल्टी व फिर देहरादून आना पड़ रहा है तभी वे आगे के गंतव्यों व अन्य प्रदेशों को जा पा रहे हैं. सबसे बड़ी दिक्कत है कि धनोल्टी मार्ग पर सुआखोली में बोतल नैक बन गया है जिस कारण उत्तरकाशी व चंबा से आने वाली गाड़ियां घंटों तक जाम की स्थिति में बनी रहती हैं।
मसूरी—चंबा सड़क बहुत संकरी है जबकि सरकार जानती है कि पर्यटकों के लिहाज से यह सड़क कितनी महत्वपूर्ण है ? अब तो सबसे बड़ा सबक यह मिल चुका है की केवल चार धाम की सड़कों के भरोसे मत रहो। पहाड़ की हर सड़क महत्वपूर्ण है व उनको भी हल्का—फुल्का चौड़ा किये जाने की जरुरत है. चार धाम परियोजना के निर्माण कार्यों पर शुरु से ही लोग आशंका जाताते रहे थे कि बरसात में इनकी हालत खतरनाक होने जा रही है। यहाँ तक की धूप में भी पत्थरों के गिरने की संभावनाएं बनी रहेंगी. रानीपोखरी पुल के धवस्त होने का कारण नदी से पत्थर बजरी निकाला जाना बताया जा रहा है इससे नदी की धार पुल के कोने की तरफ हो गयी व पुल टूट गया. इसी प्रकार नरेन्द्र नगर फकोट के पास सड़क टूटने का कारण गधेरे के पानी का सड़क पर आना बताया जा रहा है. ये सब आपदाऐं मानव जनित हैं इसके दोषियों को सजा तो मिलनी ही चाहिए. आल वेदर रोड के तहत हर जगह नालियों की शिकायतें हैं. सड़क तो चौड़ी कर ली पर नालियां नहीं बनने से पानी लोगों के घरों व दुकानों के अन्दर घुस रहा है. कई जगह सड़क पर पानी आने से सड़कों की दिवारें टूट रही हैं.
इसी हफ्ते देहरादून में बादल फटने की घटना भी हुई। बड़ा नुकसान होने से बच गया गए पर माल देवता के पास सोंग नदी ने सड़क काट दी. देहरादून एक बड़ा जलागम क्षेत्र है रिस्पना, बिंदाल, सोंग आदि नदियों के किनारे, मकानों से पट गए है. कभी भीषण बारिश व बादल फटने की घटनाएं हुई तो निचले इलाकों को बड़ा खतरा होने की व्यापक संम्भावनाएँ है. खासकर धुधली-डोईवाला, सुसुवा नदी, सौंग, रिस्पना सबसे बड़े खतरे वाले इलाके है. फिर हरिद्वार तो टाइम बम पर बसा हुआ है ही. इसी तरह उपरी गंगा नदी के विशाल जलागम में जिस तरह आल वेदर रोड का मलबा बहकर नदी तल पर जमा हो रहा है वो कभी भी ऋषिकेश व हरिद्वार के लिये भविष्य के लिये चेतावनी ही.
आज जिस तरह सामरिक महत्व के जनपदों से सड़क नेटवर्क तबाह हुआ है वह भी एक नयी चेतावनी है. पहाड़ों की सप्लाय चेन बंद हो गयी है. गैस, राशन, सब्जी, पहले तो पहुँच ही नहीं रहे थे पर अगर जा भी रही है तो रेट दुगुने तिगुने हो गए. एक तरफ कोरोना महामारी से सब ठप्प पड़ा है, लोग बेरोजगार हो गए हैं, वहीं आपदायें व कुप्रबंधन जले पर नमक मलने का काम कर रहे हैं. पुल बनाने व वैकल्पिक व्यवस्था पर चिंता करने के बजाय पार्टियाँ एक—दूसरे को दोषी ठहराने के लिये सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाने लगे हैं. इसी को कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि.
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