महिपाल नेगी
जिसने जल्दी मृत्यु की कामना इसलिए भी की कि
आई सी यू बेड किसी और के लिए खाली हो सके …
पत्रकारिता और सामाजिक सरोकारों को समर्पित हल्द्वानी के हमारे साथी जगनमोहन रौतेला की पत्नी रीता आखिर कैंसर से जीवन की जंग हार गई। पिछले करीब ढाई साल से वह इस जंग को लड़ रही थी। एक सप्ताह पहले जब उन्हें अहसास हुआ कि अब जीवन नहीं बचने वाला, तब मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी को मेडिकल शोध हेतु शरीर दान कर दिया था।
रीता तमाम सरोकारों में न केवल जगनमोहन दा की सहभागी रही बल्कि स्वयं भी लेखन कार्य किया। पति के साथ ही बेटी बुलबुल के लिए भी वह प्रेरणाश्रोत बनी रही और बनी रहेगी.
एक सप्ताह पहले फेस बुक पर उनका यह आखिर संदेश उनके जज्बे को दर्शाता है – – –
रीता खनका
“अब मेरी देह से मुक्ति की प्रार्थना करें, ताकि गहरी पीड़ा से छुटकारा मिले …
पिछले लगभग ढाई साल से मेरे कैंसर से बीमार होने के बाद से सैकड़ों शुभचिंतकों, मित्रों और परिजनों ने मेरे स्वास्थ्य को लेकर चिंता व्यक्त करने के साथ ही मेरे जल्दी स्वस्थ्य होने की हजारों बार प्रार्थनाएं की हैं. मेरे व मेरे परिवार का बीमारी से लड़ने के लिए हौसला बढ़ाया है. इस सब के लिए मैं व मेरा परिवार हमेशा आप लोगों का ऋणी रहेगा.
अब मेरी बीमारी ऐसी स्थिति में पहुँच गई है कि जहाँ से आगे के जीवन की कोई उम्मीद नहीं है. लोग मौत से संघर्ष करते हैं, पर मैं जीवन से संघर्ष कर रही हूँ. मुझे जीवन के सांसों की आवश्यकता नहीं, बल्कि मौत का आलिंगन चाहिए, ताकि गहरी पीड़ा और वेदना से जल्द से जल्द मुक्त हो सकूँ. किसी भी प्राणी के जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु का आलिंगन ही है. और इसे मैं और मेरा परिवार पूरी सत्यता से स्वीकार करते हैं. ऐसे में मेरी यह देह सांसों से मुक्त हो जाती है तो बुलबुल और उसके बौज्यू को मेरी मुक्ति का दुख तो होगा, पर वे इस दुख की पीड़ा को स्वीकार करेंगे.
जब मैं मौत का आलिंगन चाह रही हूँ तो मैंने अपनी देह को निर्जीव होने के बाद सात कुन्तल लकड़ी को समर्पित करने की बजाय, यही मेडिकल कॉलेज को देने का निर्णय भी कल 20 मई 2023 को कर लिया है. यह निर्णय तो हम दोनों ने बहुत पहले कर लिया था, पर कागजी औपचारिकताओं को पूरा नहीं कर पाए थे. कल 20 मई शनिवार को वह औपचारिकता भी पूरी कर ली है. मेडिकल कॉलेज प्रशासन, जिला प्रशासन और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भी इस बारे में औपचारिकता संकल्प पत्र सौंप दिया है.
मेरे इस संकल्प को पूरा करने में मेडिकल कॉलेज में अध्यापक व मेरी ननद डॉ. दीपा चुफाल देउपा, देवर अंकुश रौतेला, बुलबुल के बौज्यू, देवर के मित्र ललित मोहन लोहनी और ननद के ही विभाग के दीप चन्द्र भट्ट का सहयोग रहा है. मैं इन सब के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ.
मैं अब अपनी देह से जल्दी मुक्ति इस वजह से भी चाहती हूँ ताकि उसके बाद मेरे बैड पर आईसीयू में वह मरीज आए, जिसे जीवन के सांसों की बहुत आवश्यकता है. मेरे जीवन का अब कोई मतलब नहीं रह गया है. शादी के बाद मैंने अपनी भरपूर जिंदगी जी है. मेरे लिखना, पढ़ना और तर्क करना सीखा. सबसे बड़ी बात कि मैंने धारा प्रवाह कुमाउनी भी शादी के बाद ही सासू ईजा और बुलबुल के बौज्यू के प्रेरित करने पर ही सीखी. अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि मैं इस बात को मानती हूँ. अपने कुमाउनी लोकजीवन के तीज-त्योहारों को मनाना और लोक की परम्परा का पालन करना भी मैंने शादी के बाद ही सीखा.
मैं आज आईसीयू के बैड में इस स्थिति में नहीं हूँ कि खुद कुछ लिख सकूँ. यह पोस्ट मैं बुलबुल के बौज्यू से लिखवा रही हूँ. इसमें हो सकता है कि इस पोस्ट के शब्द हूबहू मेरे न हों, भावनाओं के शब्द पूरी तरह मेरे हैं.
मैं अंत में एक बार फिर से आप सब से अपनी इस देह से जल्द से जल्द मुक्ति में सहयोग चाहती हूँ. आप सब से मेरी प्रार्थना है कि अपने-अपने देवी-देवताओं, ईष्ट देवों से कहें कि मुझे इस नश्वर देह से मुक्त करें. आप सब ने पिछले ढाई साल में मेरे जीवन के लिए कामना की, अब आखिरी वक्त में देह से मुक्ति की प्रार्थना में बिना झिझक सहयोग करें. आप सब का प्यार, सहयोग मेरी बिटिया बुलबुल और उसके बौज्यू को आत्मबल ही देगा.
आप सब लोगों का जीवन आरोग्यमयी, प्रेम, प्यार व सहयोग से भरपूर रहे, यही कामना मेरी ओर से है.”
( जगनमोहन दा और बिटिया बुलबुल के दुख में हम सब शामिल हैं, संवेदना)