शुभनित कौशिक
आज तड़के प्रसिद्ध इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा का देहरादून में निधन हो गया। लाल बहादुर वर्मा यानी जीवन प्रवाह में बहता हुआ एक एक्टिविस्ट इतिहासकार। एक रंगकर्मी और संपादक, जो आजीवन दोस्तियां बनाने और निभाने में यकीन करता रहा। छात्रों का एक चहेता अध्यापक और विश्व साहित्य का अनुवादक, जो हम सभी से खुद को गंभीरता से लेने का बार-बार आग्रह करता रहा।
लाल बहादुर वर्मा द्वारा लिखी गईं आत्मकथाएं ‘जीवन प्रवाह में बहते हुए’ और ‘बुतपरस्ती मेरा ईमान नहीं’ उनके व्यापक सामाजिक सरोकारों और प्रतिबद्धताओं की बानगी देती हैं।
बीएचयू के दिनों में इतिहास लेखन पर केन्द्रित उनकी किताब ‘इतिहास के बारे में’ पढ़ने का मौका मिला। तब से आज तक यह किताब जब भी पढ़ता हूं, हर बार कुछ नई अंतर्दृष्टि मिलती है। यह किताब अतीतग्रस्तता और इतिहासबोध के बीच गहरे अंतर को बड़ी स्पष्टता के साथ पाठकों के समक्ष रखती है।
यह किताब इतिहास की प्रासंगिकता और उसकी अर्थवत्ता को गहराई से रेखांकित करती है। इतिहास को सामान्य पाठकों से, आमजन से जोड़ती है। अकारण नहीं कि लाल बहादुर वर्मा लिखते हैं कि “जो समाज का सचेत साक्षात्कार कर रहे हैं, जिन्हें सरोकार है और जो समाज की वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट हैं। उन्हें है और होना चाहिए के बीच के अंतर और एक से दूसरे तक की यात्रा के महत्व और उसमें निहित कठिनाइयों का एहसास होगा। इसलिए वे इतिहास संबंधी समस्याओं को समझना चाहेंगे ताकि उनका हल ढूंढा जा सके। क्योंकि इतिहास की समस्याओं को समझने और उन्हें हल करने का सवाल स्वयं समाज को समझने और बदलने के सवाल से जुड़ा हुआ है।”
उन्होंने यूरोप का इतिहास, आधुनिक विश्व का इतिहास जैसी इतिहास की किताबें लिखी और साथ ही उत्तर पूर्व, मई 68 पेरिस जैसे उपन्यास भी लिखे।
इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा ने इतिहास बोध, दोस्ती और संवाद का जो सिलसिला शुरू किया था, वह ज़रूर आगे बढ़ेगा। अलविदा सर। ज़िंदाबाद।