नवीन बिष्ट
आंखों में काला चश्मा, कान में मोबाइल लगाए, करीने से की गई केष सज्जा, काली पैन्ट अथवा जीन्स और सफेद या आफव्हाइट कलर की शर्ट पहने अलमस्त चाल में बतियाते अच्छी कदकाठी याने कि गबरू नौजवान दिखने वाले की इस अदा के नायक वरिष्ठ पत्रकार दीप जोशी को अल्मोड़ा नगरी अब नहीं देख पाएगी। हरा बिला गई अपनी बारीक मुस्कराहट से सामने वाले के दिल में उतर जाने वाली छवि। रीती हो गई मूल्यों और आमजन की पैरोकारी करने वाली जनपक्षीय पत्रकारिता के पहरूवे की ठौर। अब नहीं नजर नहीं आएगी पत्रकारों के सामूहिक कार्यक्रमों, सांस्कृतिक मंचों में अपने गीतों, रामलीला मंचो में अपने प्रभावशाली अभिनय से दशरथ की भूमिका को जीवंत करने की कला। कहा जाएगा कि दीप एक सुघड़ पत्रकार ही नहीं अच्छे रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, हर दुखियारे की अपने स्तर से मददगार इन सबसे ऊपर बेहद नेक दिल इंसान और अच्छे दोस्त के साथ किसी भी काम को मना नहीं करने वाले व्यक्ति थे। दीप जैसा ठसकदार पत्रकार आज के दौर में देखने को मिलेगा, कहा नहीं जा सकता है।
महीना ठीक से याद नहीं जनवरी या फरवरी 1995 की बात है, एक स्मार्ट सा लड़का मुझे सूचना विभाग में मिला। तत्कालीन अपर सूचना अधिकारी दीपक जोशी ने मेरा तआरुफ अमर उजाला के नए ब्यूरो चीफ के रूप में दीप जोशी से कराया, मेरी ओर इंगित कर बताया कि ये दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ हैं। अपनी मोहक मुस्कराहट के साथ गर्मजोशी से दीप ने हाथ बढ़ाया। मुझे उस युवा से मिलकर अच्छा लगा, कि प्रतिद्वंद्वी अखबार के ब्यूरोचीफ से ठीक पटेगी। दिन बीतते गए, समय का पहियां अपनी गति से घूम रहा था। जीवन के छब्बीस (26) वसंत न जाने कब बीते पता भी नहीं चला। इन छब्बीस सालों में सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक उतार चढ़ाव आए होंगे। कई मित्र तो कई विरोधी बने होंगे, कई पुराने साथी बिछुड़े होंगे कई नए बने होंगे। संपर्को को सहेजने की उनकी बेहतरीन अदा थी, पुराने संबंधों को ताजातरीन रखने की कला निराली थी। पत्रकारिता में मेरा साथ लम्बा रहा, दीप से कुछ खबरों को लेकर कई असहमतियों के बावजूद हमारे संबंध हमेशा मधुर ही रहे। दीप की खासियत थी कि वह किसी से बैर नहीं रखते थे। खबर में कोई विवाद न हो उनका प्रयास रहता। मेरे और दीप के मिजाज का अन्तर था कि दीप हमेशा नर्म रूख रहते तो मेरा तीखापन न चाहने के बावजूद भी कम नहीं हो पाता था। हमेशा मध्य मार्गगामी उनका अपना अंदाज रहा। कई बार अखबार की पालिसी के आगे हम दोनों विवशता के दायरे से निकल नहीं पाते थे। इस सबके बाद भी उस दौर की पत्रकारिता आज से अलग रही। वह पत्रकारिता का स्वर्णिमकाल लिखने की स्वतंत्रता के लिहाज से कहा जा सकता है। ऐसा दबाव तब नहीं हुआ करता था, तो पत्रकारिता का मजा भी था, कम से कम दैनिक जागरण में चंद्रकान्त त्रिपाठीजी के समय में लिखने को खुला हाथ रहता था, भले ही आर्थिक रूप से पुख्तागी नहीं रही। यही कारण था कि दूसरे प्रमुख दैनिक अखबारों से कई बार आमंत्रण के बाद भी कई अच्छे अवसर छोड़ दिए, कई बार मलाल भी होता है। हाँ मैं भले ही नहीं गया उस दौर के अपने सहयोगी मित्रों को उन अखबारों से जोड़ने का अवसर नहीं जाने दिया। बाद के वर्षों में अच्छी पोजिशन में रहे आज भी कुछ सेवा निवृत भी हो गए हैं। खैर बीती ताही विसारि दे, रात गई बात गई। प्रसंगवश इस बात का जिक्र हो गया। बहरहालदीप के असमय चले जाने से आई रिक्तता की पीड़ा,वर्षों रहा लम्बा साथ छोड़ अनयास बिछुड़ जाने, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बीता हर यादगार पल चलचित्र के मानिंद आंखों के सामने घूम रहा है। जिसे एकदम से भुला पाना संभव नहीं हो सकता है।
पत्रकार दीप जोशी के असामयिक निधन पर समाज के हर वर्ग ने गहरी संवेदना जताई है। डा. शेखर पाठक :- दीप जोशी के निधन की खबर पर विश्वास नहीं हुआ कि दीप जैसा मजबूत कदकाठी का नौजवान अचानक चला गया, गहरी पीड़ा हुई। एक अच्छा रिर्पोटर हमसे बिछड़ गया। जब भी अल्मोड़ा गया तो दीप आत्मीयता से मिलते, बेहद व्यवहार कुशल थे। व्यवयायिक अखबार में काम करते हुए जनसरोकारों से जुड़ी खबरों को खोजने जनता के मुुद्दो को उठाने की कला में माहिर थे। ऐसे जागरूक व्यक्ति का चला जाना बड़ी क्षति है।
दीपक जोशी से.नि सहायक सूचना निदेशक :-सूचना विभाग में रहते दीप जी से निकट का संबंध रहा। राजकीय सेवा में रहते सकारात्क रिर्पोट किया करते थे। हमेशा पाया कि वह मृदुभाषी मिलनसार पत्रकार थे। अचानक उनके निधन की खबर ने हत्प्रभर कर दिया। उनकी रिक्तता को पूरा नहीं किया जा सकेगा।
वरिष्ठ पत्रकार चन्द्रेक बिष्ट :-दीप जोशी ने स्थानीय सवालों को उठाने से सामाजिक या राजनैतिक जीवन की शुरूआत की। पुरानी बात है तब मैं भवाली से अमर उजाला के लिए काम करता था। भीमताल से स्थानीय समस्याओं को लेकर दीप अक्सर प्रेस विज्ञप्ति लेकर आते यह क्रम लम्बे समय चला, धीरे धीरे बरेली से अमर उजाला ने नए युवाओं को जोड़ा दीप जोशी भी जुड़ गए। दीप के साथ लम्बा साथ रहा। दुखद समाचार ने मुझे आहत किया है।
अमर उजाला के अल्मोड़ा ब्यूरो चीफ रहे वरिष्ठ पत्रकार कौशल किशोर सक्सेना :- 28 साल का साथ रहा दीप जोशी से, 20 साल आपसी पत्रकारिता के अनुभवों साझा किया। दीप जब भी पुरातत्व या इतिहास पर लिखना होता बात जरूर करते। सबसे बड़ी बात थी वह मेधावी छात्रों का मनोबल बढ़ाने का काम मनोयोग से करते। बच्चों की उपलब्धियों पर खुश होना उनक शगल था। उनके निधन से जहां एक अच्छा पत्रकार खोया एक बेहतर संवेदनशील मित्र खोया है।
यह बात भी अच्छी है कि दीप के लिए अल्मोड़ा शैक्षिक व पारिवारिक दृष्टि से उपलब्धियों से भरा रहा। यहां उनकी शादी हुई, बेटा हुआ, एलएलबी की डिग्री हासिल की, पत्नी ने पीएचडी की उपाधि हासिल की और सामाजिक मान्यता अर्जित की, अपने संबंधों का विस्तार किया। संकट के अंतिम क्षणों में यही संबंध उनके काम आए। भारत के विख्यात नेशनल हार्ट केयर सेन्टर के सर्वेसर्वा ख्यातिलब्ध हृदयरोग विशेषज्ञ चिकित्सक डा. ओपी यादव ने तत्काल सारी सुविधाएं जो प्राण रक्षा के लिए होती हैं मुहैया कराई। अंतिम क्षण तक जीवन रक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी। अंततः नियति के आगे सारी कोशिशें हार गई। मुझे बताया गया कि जब हृदय की गति ने दीप का साथ छोड़ दिया तो डा. यादव परिजनो के सामने आए और हाथ जोड़ क्षमा मुद्रा में कहा कि सारी कोशिशों के बाद भी हम दीप जोशी को नहीं बचा पाए। अस्पताल का पच्चीस लाख का बिल अपने हाथों से फाड़ दिया, परिजनों से कोई पैसा नहीं लिया। कहा कि दीप अच्छे इंसान थे, मैं बेहद दुखी हूं। इतनी बड़ी रकम छोड़ देना आज के समय में मामूली बात नहीं है। ऐसे सहृदय व्यक्ति समाज के लिए उदाहरण तो हैं ही, ऐसे मनीषी को पत्रकार जगत के हम जैसे लाखों मित्रों का सलाम है। इस पूरे सहयोग में वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर लखचाौड़ा का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने ही डा. ओपी यादव को फोन कर सहायता के लिए प्रेरित किया। खुद भी हर संभव मदद के लिए लखचाौड़ा हर पल तैयार रहे।
कई बार दीप जोशी से मौजूदा पत्रकारिता की दिशा, दशा, व्यक्तिगत स्थितियों पर चर्चा में उनकी नाखुशी गाहे-बगाहे दिख जाती। अक्सर हमारी चर्चा का विषय अखबारों के प्रबंधन के बढ़ते दबाव, राजनैतिक दलों, आमलोगों की अपेक्षाओं को लेकर हुआ करती, नतीजा निकलता कि अब पत्रकारिता करना कई बार स्वाभिमान के प्रतिकूल हो जाता है, तो आत्मग्लानी का भी आभास होने लगता है। यह विचार आता कि पत्रकारिता अपना कर कोई गलती तो नहीं कर दी। हर व्यक्ति अपने जीवन काल में भावनाओं में बह कर निर्णय लेने में गलती कर बैठता है, लगता है कई अवसर आए दीप जोशी ने अल्मोड़ा या पारिवारिक कारणों से गवा दिए, यदि दीप ने अवसर गवाए नहीं होते तो पत्रकारिता के शिखर पर अवष्य होते। हाल के दिनों में उन्हें इस बात का अहसास होने लगा था। फिर खुद ही मन समझाने को कहते कि चलो नियति का यही खेल होगा। अभी हाल ही में बीमारी से पहले लम्बी बात-चीत में भविष्य को लेकर बात निकली तो कहने लगे कि दिसम्बर 2020 में भीमताल लौटने का मन बना रहा हूं। उन्होंने कहा कि नैनीताल में प्रैक्टिस करेगें, क्योंकि अल्मोड़ा रहते दीप ने एलएलबी की पढ़ाई कर ली थी।इसके अतिरिक्त अपना कोई व्यवसाय की भी कार्ययोजना पर भी मंथन चल रहा था। दिसम्बर ऐसा गया कि उन्हें अपने साथ कभी न लौटने के लिए ले गया, और छोड़ गया उनकी स्मृतियांँ मन ब्योमाने के लिए। दीप का प्रिय गीत नजाने कितने मौकों पर उन्होंने सुनाया होगा जो मेरे मानस पटल पर में सदा गूंजता रहेगा-“जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र करे धुंवे में उड़ाता चला गया, जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया” सच में दीप हर फिक्र को धुवें में उड़ाते-उड़ाते धुवें में विलीन हो गए।