इन्द्रेश मैखुरी
उत्तराखंड में वामपंथी आंदोलन के वरिष्ठतम नेताओं में से एक और माकपा की राज्य कमेटी के पूर्व सदस्य कॉमरेड बच्चीराम कौंसवाल का 88 वर्ष की उम्र में देहावसान हो गया. कॉमरेड बच्चीराम कौंसवाल उस पीढ़ी के वामपंथी नेताओं में से थे, जिन्होंने आजाद हुए मुल्क में युवा अवस्था में लाल परचम थामा और आजीवन उसे मजबूती से थामे रहे.
वे शिक्षक रहे, शिक्षक नेता भी रहे, पत्रकार, लेखक और इन सबसे ऊपर आजीवन एक प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट रहे. 90 के दशक में उत्तरकाशी से आते-जाते दीवारों पर उनके नाम की वाल राइटिंग देखी थी और 2000 के दशक में उनसे प्रत्यक्ष मुलाकात हुई. पहली बार उनसे सामने मिल कर यही रोमांच हुआ कि यह वही व्यक्ति हैं, जिनका नाम बहुत सालों दीवार पर पढ़ा है. जबसे उनसे परिचय हुए तब से उनका बेहद आत्मीय और मित्रवत व्यवहार हमेशा ही आकर्षित करता रहा. हालांकि उनके वामपंथी लाल परचम थामने के डेढ़ दशक के बाद की पैदाइश है मेरी, लेकिन, जीवन के आठ दशक के बाद भी वे दोस्त थे, कॉमरेड तो वे थे ही, जिस शब्द का अर्थ ही होता है- साथी.
रमेश पहाड़ी
उत्तराखण्ड में साम्यवादी और वैचारिक आंदोलनों के अग्रणी नेता कामरेड बच्चीराम कौंसवाल का निधन सम्पूर्ण उत्तराखण्ड के लिए अपूरणीय क्षति है। उमेश डोभाल की गुमशुदगी के दौर के 2 उदाहरणों से उनकी निष्ठा और दूरदर्शिता का परिचय मिलता है। 11 मई 1988 को उमेश डोभाल की गुमशुदगी का पता लगाने के लिए पत्रकार संघर्ष समिति (गढ़वाल-कुमाऊं) के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। डालमिया धर्मशाला, श्रीनगर में आयोजित 72 पत्रकारों की बैठक में उन्होंने और का. विपिन उनियाल ने प्रस्ताव रखा कि संघर्ष समिति का नेतृत्व रमेश पहाड़ी करेंगे तो ही पत्रकारों का यह आंदोलन सही दिशा में आगे बढ़ सकता है। उनके ही जोर देने पर समिति अस्तित्व में आ पाई थी। बाद में भी वे हमेशा इसको सक्रिय समर्थन देते रहे।
30 जून 1988 को दिल्ली बोट क्लब पर प्रदर्शन और प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने के बाद निर्णय लिया गया कि दोनों मंडलों के प्रत्येक जिले में पत्रकार संघर्ष समिति की बैठकें की जायें। टिहरी के साथियों के आग्रह पर 15 जुलाई 1988 को टिहरी में बैठक रखी गई और उसकी जिम्मेदारी मसूरी टाइम्स के टिहरी प्रतिनिधि सरदार प्रेम सिंह ने ली। जब मैं 15 जुलाई को अपने साथियों के साथ बैठक हेतु टिहरी पहुँचा तो प्रेमसिंह जी ने शराब माफियाओं के दबाव में आकर बैठक की व्यवस्था करने से ही नहीं बल्कि उसमें शामिल होने से भी इन्कार कर दिया। जब हम हताश होकर बच्ची राम कौंसवाल जी के पास गए तो उन्होंने अपने पार्टी कार्यालय में न केवल बैठक का आयोजन किया, बल्कि सब साथियों के भोजन की व्यवस्था भी की। इससे टिहरी में दबदबा बनाये रखने वाले शराब माफियाओं की बोलती बंद हो गई। अब कहाँ वह टिहरी और कहाँ कौंसवाल जी जैसे नेता-विचारक! ऐसे निष्ठावान और साहसी साथी की स्मृति को दिल से सलाम।
दो-एक साल पहले देहरादून में सफदर हाशमी के शहादत दिवस पर एक कार्यक्रम में बोलते हुए मैंने जिक्र किया कि सफदर 1976 में गढ़वाल विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता रहे थे. कार्यक्रम के बाद कॉमरेड बच्चीराम कौंसवाल ने कहा- जानते हो पार्टी की तरफ से मैं ही जाता था, सफदर से बात करने. अक्सर वे खुश हो कर या चिंता प्रकट करने के लिए भी फोन करते थे. एक बार तिलाड़ी कांड पर केन्द्रित विद्यासागर नौटियाल जी के उपन्यास- यमुना के बागी बेटे- का पाठ करता हुआ, वीडियो मैंने पोस्ट किया. बेहद खुश हो कर उन्होंने मुझे फोन किया, बोले तुमने बहुत बढ़िया पाठ किया. स्वयं उन्होंने तिलाड़ी कांड पर एक पुस्तिका लिखी थी, जो अभी भी संदर्भ पुस्तिका के तौर पर खोजी-तलाशी जाती है.
उनको जानने वाले, मानने वाले और उनके प्रशंसक सभी राजनीतिक धाराओं में थे. यह सर्व स्वीकार्यता एक प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट होने की हैसियत से ही उन्होंने हासिल की थी. वामपंथी आंदोलन की बेहतरी, हमेशा ही उनकी चिंता के केंद्र में रहती थी. अक्सर कहते थे- कुछ करो यार. उनके जीवन के अंतिम वर्षों में भी वे देहरादून में होने वाले कार्यक्रमों और धरना-प्रदर्शनों में निरंतर ही शरीक होते थे. उनसे अंतिम मुलाक़ात देहरादून में दिसंबर में हुए सीपीएम के राज्य सम्मेलन में हुई थी. उस दिन भी खूब हंस-हंस कर बात कर रहे थे. सेहत अपेक्षाकृत कमजोर लग रही थी, लेकिन ज़िंदादिली में कोई कमी न थी. उनकी ज़िंदादिली, दोस्तना व्यवहार और वैचारिक प्रतिबद्धता, उत्तराखंड में वामपंथी आंदोलन की साझी विरासत है. आपने आजीवन जिस लाल परचम को थामे रखा, हम उसे बुलंद करेंगे, कॉमरेड. अलविदा कॉमरेड, आखिरी सलाम!