अतुल सती
जोशीमठ में नवंबर 2021 में जब कुछ जगहों पर सड़क धंसने लगी थी व कुछ घरों में दरारें आई थीं, तभी 17 नवंबर 2021 को पहले प्रदर्शन के साथ जनता ने इस खतरे के बढ़ने की आशंका प्रकट करते हुए सरकार से इसके सर्वेक्षण की मांग कर दी थी, जिससे इसके कारणों का पता चले किंतु कोई कार्यवाही नहीं हुई। यहां तक कि दिसंबर में 14 परिवारों को, जिनके घरों में दरारें गंभीर थीं, सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने का भी दवाब बनाया गया परंतु शासन प्रशासन द्वारा कुछ भी नहीं किया गया। तभी हमने कहा था कि जब अभी 14 परिवारों का इंतजाम नहीं हो पा रहा तो भविष्य में इसके बढ़ने पर सैकड़ों परिवारों की कैसे व्यवस्था होगी? और हमारी यह आशंका और अनुमान सही सिद्ध हुए। दरारों का सिलसिला बढ़ता गया। जगह-जगह जमीन के धंसने की गति व फैलाव बढ़ता गया।
इस पर लगातार सरकार को चेतावनी दी जाती रही व सर्वेक्षण की मांग की जाती रही किंतु कोई कार्यवाही नहीं हुई। 6 महीने बाद भी जब सरकार ने तमाम प्रदर्शन ज्ञापन और मीडिया रिपोर्ट के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं की तब हमने स्वतंत्र वैज्ञानिकों की एक कमेटी के जरिए सर्वेक्षण करवाया। जिसकी रिपोर्ट मई अंत में आने पर यह रिपोर्ट हमने सरकार को सौंपी और इस रिपोर्ट के आधार पर तुरंत कार्यवाही की मांग की। सरकार ने इस पर भी कोई कार्यवाही नहीं की हां इसके बाद अगस्त 2021 में सरकार ने सरकारी वैज्ञानिकों की एक कमेटी सर्वेक्षण के लिए भेजी, जिनकी रिपोर्ट 24 सितम्बर 2022 को आई। इस रिपोर्ट में जोशीमठ के भू धंसाव के लिए पानी की निकासी व्यवस्था न होना एवं जोशीमठ में अत्यधिक निजी निर्माण को होना जिम्मेदार माना गया। इस रिपोर्ट में एक प्रकार से तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना की सुरंग को क्लीन चिट दे दी गई थी। तब हमने इस रिपोर्ट पर सवाल उठाए।
लगातार ज्ञापन व पत्र व्यवहार के बावजूद सरकार निश्चेष्ट लापरवाह बनी रही। दिसंबर माह में विशाल प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री से मुलाकात की किन्तु तब भी सरकार की आपदा से पीड़ितों के प्रति उपेक्षा यथावत रही। जनवरी 2023 में विशाल मशाल जुलूस और चक्का जाम के बाद 6 जनवरी से लगातार धरना शुरू हुआ। जिसके बाद दरारों से पटे घरों में रहने को मजबूर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया गया। फरवरी में घरों के मुआवजे पर सहमति बनी जो अभी तक भी आधे लोगों तक ही पहुंची है और उसमें भी तमाम झोल हैं। मुआवजे, विस्थापन, पुनर्वास, जोशीमठ के स्थाईकरण के कार्य आदि 11 मांगों पर अभी भी कार्यवाही की प्रतीक्षा है।
चार माह के धरना प्रदर्शन के बाद उत्तराखंड के आपदा प्रबन्धन के सचिव के साथ दो बार की विस्तृत वार्ता के बाद और तीन बार मुख्यमंत्री उत्तराखंड से वार्ता के बाद 8 अप्रैल को मुख्यमंत्री के आश्वासन/सहमति के बाद 20 अप्रैल को हमने धरना स्थगित किया इस चेतावनी के साथ कि यदि प्रभावितों की मांगों पर कार्यवाही नहीं हुई तो पुनः आंदोलन होगा। एक माह बाद मई में सरकार को याद दिलाने को मशाल जलूस निकला। जून 22 व जुलाई 20 को एक दिनी याद दिहानी धरना दिया गया। और अभी 15 अगस्त को तिरंगा रैली के जरिए फिर 11 मांगों पर कार्यवाही करने की याद दिलाई गई। इस तरह सरकार जो एक साल के बाद आंदोलन के दबाव में कुछ करते दिखना चाहती थी, अब पुनः उसी अवस्था में चली गई है ।
इस बीच जोशीमठ के हालात और बिगड़े। पुरानी धंसाव वाली जगहों पर धंसाव बढ़ा। कई स्थानों पर नए भूस्खलन हुए हैं। सौ से ज्यादा नए घर दरारों की जद में आए हैं। जहां सरकार की गिनती में पहले 868 घरों में सामान्य अथवा गंभीर दरारें थीं अब इनकी संख्या बहुत बढ़ गई है। जिन क्षेत्रों को संवदेनशील या खतरनाक/डेंजर जोन माना गया था उनकी स्थिति और गंभीर हो गई है। पिछले एक महीने की बरसात की रातें बहुत से लोगों ने जागकर बिताई हैं। जो क्षेत्र वैज्ञानिकों और सरकार की नजर में पहले डेंजर नहीं थे अब बरसात के बाद वहां भी खतरा बढ़ गया है।
हमारी मांग थी कि जोशीमठ क्षेत्र का उच्चस्तरीय वैज्ञानिकों द्वारा व्यापक सर्वेक्षण करवाया जाए। जनवरी महीने में सरकार के आठ सर्वोच्च संस्थानों के वैज्ञानिकों ने व्यापक सर्वेक्षण किया। जिसमें कहा गया कि वैज्ञानिकों की यह सर्वेक्षण रिपोर्ट फरवरी 10 को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति को सौंप दी गई है किंतु बार-बार आग्रह के बावजूद, मुख्यमंत्री के आश्वाशन के बावजूद उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन के सचिव के सार्वजानिक बयान के बावजूद आज तक यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। इस रिपोर्ट के न आने से भय और आशंका बढ़ी है। इस रिपोर्ट के आधार पर विस्थापन पुनर्वास के बहुत से कार्य निर्भर हैं। जोशीमठ कितना सुरक्षित है या नहीं है यह इस रिपोर्ट से पता चलता। जोशीमठ की इस तबाही के क्या कारण हैं वह भी स्पष्ट होते। तभी निदान भीं संभव होते। सरकार ने न सिर्फ इस रिपोर्ट को छुपाने में अपनी पूरी ऊर्जा लगाई बल्कि अन्य संस्थाओं वैज्ञानिकों पर भी, जोशीमठ पर किसी भीं तरह के खुलासे करने पर प्रतिबंध लगाने के लिये डराने धमकाने पर अपनी ताकत लगाई।
पिछले एक माह की बारिश ने विकास के वर्तमान सरकारी ढांचे और नीतियों की पोल खोल दी है। केंद्र सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट चारधाम सड़क योजना अथवा आलवेदर रोड़ ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ तक बीसियों जगहों पर भू स्खलन के जद में आई और लगातार बाधित हैं। इस सड़क के चौड़ीकरण को लेकर लगातार सवाल उठाए गए। इसमें वृक्षों के कटान, मलवे के निस्तारण को लेकर सवाल उठे। सुप्रीमकोर्ट की उच्चस्तरीय कमेटी ने आपत्तियां जताई। किंतु सरकारों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। प्राकृतिक विनाश और विकास के बीच के संतुलन से छेड़ छाड़ का नतीजा यह है कि सड़क की जिस चौड़ाई के लिए हजारों करोड़ खर्च हुए वह चौड़ाई अधिकांश जगहों पर पुनः वहीं आ गई। इससे पहले 2004 में भी इस सड़क का चौड़ीकरण किया गया था जो सन 2013 की आपदा तक पुनः पुरानी स्थिति में आ गयी।
जोशीमठ की आपदा भी इसी विकास और संतुलन की अनदेखी का परिणाम है। हिमाचल में अभी हो रही तबाही में भी इसको स्वीकार किया गया है किंतु अफसोस है कि सरकारें इससे सबक नहीं लेती। चाहे 2013 की आपदा हो जिसमें 5 हजार से कई ज्यादा लोगों ने जाने गंवाई या 2021 की रिणी की आपदा हो। यह सब इसी ओर इंगित करती हैं। हिमालय की कमजोर भू गर्भिक स्थिति और संवेदनशील प्राकृतिक भूगोल से छेड़छाड़ न सिर्फ यहां के निवासियों के लिए बल्कि बांकी देश के लिए भी खतरनाक साबित होगी किंतु पूंजीपतियों के लिए और प्राकृतिक संसाधनों की लूट की खुली छूट के लिए प्रतिबद्ध सरकार ने अभी वन संरक्षण अधिनियम में इसी नियत से बदलाव किए हैं जिसके कार्यान्वयन के परिणाम और भी भयावह होने निश्चित हैं।
जोशीमठ की जनता के आंदोलन ने सभी हिमालयी राज्यों में विकास के वर्तमान ढांचे के खिलाफ एक चेतावनी और चेतना जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जोशीमठ का आंदोलन अभी जारी है। कोशिश है कि लोभ लालच पर आधारित विकास के इस मॉडल के बरक्स संरक्षण और संतुलन का विकास मॉडल इस आंदोलन से मजबूत हो। इसमें सभी की भूमिका की जरूरत है। यदि यह अब नहीं रुका तो विनाश के जो सामान्य संकेत अभी सामने हैं यह आने वाले विनाश के सम्मुख बहुत छोटे पड़ेंगे।