रेवती बिष्ट
होली आई होली आई रे कन्हैया सुना दे जरा बांसुरी… होली आई रे कन्हैया, रूठे श्याम को होली में मना लूंगी, तुम राज के छोरे मैं नंद गांव की बाला, आला रे आला नंदलाला आला रे जरा चुनरी संभाल बृजबाला। ऐसे कई प्रेम रस पूर्ण गीतों से होली का त्योहार भरा रहता है. राधा कृष्ण की रासलीला का अद्भुत वर्णन इन गीतों के ही माध्यम से हो जाता है जो की अजर अमर अद्वितीय छटा से परिपूर्ण है. ब्रज में लीला करते हुए इन आनंदित कर देने वाले गीतों से समस्त होली का उल्लास भरा रहता है, उदासीन प्रकृति भी इन गीतों को गाते हुए बसंत ऋतु के पीले रंगीन फूलों के साथ पल्लवित होकर प्रसन्नता से खिल उठती है. प्रत्येक घर पर ढोलकी की थाप पर यह गीत गाए जाते हैं जिनमें रासलीला से लेकर गोपियों के साथ कृष्ण की लीला का वर्णन मिलता है. ब्रज में तो पूरे समय उत्सव चलता रहता है, होली में दुगना हो जाता है. उत्तराखंड में भी हर मोहल्ले में कदम (पइया) की टहनी को लाकर उस पर रंगीन कपड़ों के चीर बांधे जाते हैं. रंगों से उसकी पूजा कर स्थापित किया जाता है। शाम के समय वहां दिया जलाकर रंगों से पूजन कर होली गायी जाती है और टीका के बाद छरड़ी के दिन चीर जलाई जाती है। प्रचलित कथा है कि हिरण कश्यप अपने पुत्र प्रहलाद श्री विष्णु भक्ति के विरुद्ध होकर अपनी पूजा करवाना चाहता था इसलिए उसने भक्त प्रहलाद को अनेक यातनाएं दी अंत में अपनी बहन होलिका से कहा प्रह्लाद को अग्नि में बिठाने हेतु होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी लेकिन अग्नी में होलीका तो जल गई परंतु प्रहलाद बच गया तब उसे लोहे के खंबे पर बांध दिया गया। खंभे से भगवान विष्णु प्रकट हुए और प्रहलाद की रक्षा की स्वयं नरसिंह रूप धरकर हिरण कश्यप को मार दिया क्योंकि उसे भी वरदान था कि अन्य कोई नहीं मार सकता. होलिका के नाम से ही उस दिन से चीर जलाकर खुशी मनाते हुए रंगों से खेलते हुए इस त्यौहार का नाम होली प्रसिद्ध हो गया उस दिन से लोग एक दूसरे पर रंग डालकर रंग लगाकर खुशी मनाते हुए त्यौहार मनाते हैं. जो की बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है, रामचंद्र जी ने सीता को खोज कर जैसे लंका पति रावण पर विजय प्राप्त की थी और लंका से सीता को सकुशल अयोध्या ले आए थे तो इस खुशी में दशहरा मनाया जाता है और रावण के पुतले का भी दहन किया जाता है कि हमेशा अच्छाई व सत्य की जीत होती है और बुराई तथा असत्य की हार होती है. होली का उल्लास बच्चों में भी बहुत रहता है हफ्तों पहले पिचकारिया खरीदना और पानी की बाल्टी भरकर खेलते रहना. आते-जाते लोगों पर भी पिचकारी चला कर पानी फेंकना उन्हें इसी में उल्लास व खुशी मिलती है. ग्रहणियों का आलू चिप्स बनाकर सुखाना और होली पर पकवानों के लिए खरीदारी करना महीनों से आरंभ हो जाता है होली में गुजिया बनाना भी एक पारंपरिक कार्य हो जाता है घर-घर पर बने खस्ता का तो अपना ही महत्व होता है. मीठे पकवान भी बनाने का अपना महत्व रहता है. होली की तैयारी का अपना ही अंदाज रहता है जो पहले से ही चला आ रहा है. होली के सफेद रंग के वस्त्रों की खरीदारी भी अपना स्थान रखती है. सभी के लिए कुछ ना कुछ लेना ही हुआ. एकादशी में रंग पड़ने से लेकर छरड़ी तक मोहल्ले में होली गायन की अपनी रौनक रहती है. आस पड़ोस में होली गायन रंग जमाते रहते हैं जिसमें स्वांग बनना भी महिलाओं में शामिल है विभिन्न स्वांग बनकर माहौल को रंगीन बनाना बड़ा महत्व रखता है, खूब गाना बजाना चलता रहता है. आलू के गुटके, गुजिया, चाय, मिठाई का अलग ही महत्व रहता है. बैठकी की होली में महिलाओं की भागीदारी अलग से रहती है. पुरुषों की होली भी अपनी टोली बनाकर चलती है. हमारे मोहल्ले में भी पाली पछाओ से लेकर अल्मोड़ा तक की होलियां गाई जाती थी उन में नेपाली लोग भी शामिल रहते क्योंकि मोहल्ले में नेपाली लोग भी रहते थे. आपस में सब नेपाली में बातचीत कर लेते थे और एक दूसरे के सहयोग से सभी त्यौहार मनाते थे. चीर चोरने की परंपरा होने से रात को पहरा भी देना होता जो मोहल्ले के ही लड़के, बच्चे देखभाल कर लेते थे. ऐसे ही दशहरा में मेघनाथ का पुतला बनता तो अम्मा जी उसकी पहरेदारी, देखभाल कर लेती थी. अन्य लोग भी उसमें सहयोग करते थे. नेपाली टोली भी घर-घर आती और होली गाते हुए सभी शामिल हो जाते थे. पुरुषों की होली में नैनीताल से इनके मित्र लोग गिर्दा, शेखर, राजीव, हरीश, महेश तथा अन्य लोग भी शामिल होने आते रहते. गिर्दा की हुडके की थाप पर होली गायन करके लोगों में शमा जम जाता वैसी होली बड़ी यादगार बन जाती है उसमें राजनीतिक गुट भी शामिल हो जाते. कालो किशनिया चैन लेने गए रे, वोट की ओट में चैन लेने गए रे, शहीदों के लिए गाई जाती होली उनरे नाम. गिर्दा के गीत जैंता एक दिन तो आलो, पार पछ्यो धार बटी होलरी आग्ये बयाल. बड़ी मुश्किल से आमा का चूल्हा जला है, गीली है लकड़ी की गीला धुआं है. होली के आसपास ही हमारा भी विवाह हुआ था वह बैनर ‘रेवती-शमशेर’ अभी भी आंखों में घूम रहा है. शादी के बाद होली भी आ गई थी सुबह सवेरे ही लोग हमारे कमरे में आ गए. यह तो बाहर चले गए मैं अंदर रही. मैंने सोचा उस दिन छरड़ी थी तो यह भी मेरी मदद करेंगे, बचाव करेंगे पर मुझे खुद ही छरड़ी का सामना करना पड़ा. वह दिन अभी तक भुलाया नहीं जाता इनका चुपचाप से सिर झुकाए कमरे से बाहर निकलना अभी तक यादों में बसा है. कुछ ऐसे पल अविस्मरणी होते हैं जो प्रतिपल साथ रहते हैं. शीतला देवी मंदिर के पास ही छोटे कमरों का डेरा भी हमारा कभी ना भूलने वाला अहम पड़ाव है. जो की अनगिनत स्मृतियां यादों में समेटे हुए हैं. इस कमरे में सभी आगंतुक दोस्त समा जाते थे. अधिक लोगों के आने पर भी खिचड़ी ही बनाकर उनका स्वागत होता. गिर्दा के साथ तो उनके गीतों से सभी लोग सुनने को आतुर रहते थे. पांडे जी, जगत, पीसी, प्रदीप, नैनी के नैन सिंह, बसंत, खड़क, कपिलेश भोज, शेखर, राजीव, हरीश पंत, महेश आदि अन्य भी कई लोग संगठन वाले आते रहते. उत्तराखंड से बाहर भी कई लोगों के साथ संपर्क बना रहता था स्वामी अग्निवेश भी आदरणीय मित्रों में से एक थे. डॉ. बनवारी लाल, डॉ. बीडी पांडे भी प्रेरणा स्रोत रहे. राधा बहन, सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट जी भी अभिन्न प्रेरक स्रोत रहे. होली के माहौल में भाभियों को तो बच कर रहना पड़ता तब टोलियों में होल्यार आते. षष्टी दत्त जी ऐसे देवर रहे जो होली खेलते तो कंगन भी पिचक जाते थे. अतः उनके आते ही छुप जाना पड़ता था. जब वे गए तब बाहर निकलना पड़ता. हमारी सासू जी के देवर लोग भी होली खेलने आते तो बाल्टी भर पानी से उनका स्वागत होता था. खिड़की से भी उन पर पानी डाला जाता है. इसमें बच्चे लोग भी मददगार होते थे पर कमरे का फर्श तो पानी-पानी हो जाता था. वह दिन भी क्या दिन थे बाहर देखो तो दिग्गी बंगला वालों की छरड़ी हो रही होती. वह लोग तो पानी की टंकी पर बाल्टी लेकर एक दूसरे पर पानी उड़ेल रहे होते. भिगोते देखकर सब खुश हो जाते थे. नीचे आते तो यहां भी मोहल्ले में महिलाओं के नाच गाने होली के गीत और स्वांग चल रहे होते. हम सभी इस टोली में घर के आस पड़ोस में शामिल हो जाते. बच्चे दोस्तों के साथ पिचकारी से लोगों को भीगने में मस्त रहते. बिष्ट जी सफेद कोट, पजामा में पलटन बाजार पर ही खड़े होकर जो भी मिलता उसे जेब से रंग निकालकर टीका लगाते. घर पर भी कई लोग टीका लगाने आते रहते हैं. उनका भी रंगों से पानी से ही स्वागत किया जाता. जोशी खोला की होली की टोली भी गाते हुए आती उन्हें भी देखकर होली का शमा बन जाता. गोरखा होली भी गाते हुए आती तो हम सब सभी लोग उनके स्वागत के लिए दौड़े-दौड़े उपस्थित हो जाते. इस टोली में नेपाली तर्ज पर नाच गाने होते. होरी आयो रे कांची रे कांची रे प्रीत मेरी सांची ना जा दिल तोड़ के होली है.हमारे आंगन में रौनक बड़ जाती. ढोलकी की थाप पर होली गाई जाती. चाय, पानी, गुजिया फिर गाते हुए आशीष के वह दृश्य आंखों के सामने आते ही होली की स्मृतियां जीवंत हो उठती हैं.होली ही ऐसा त्यौहार है जिसमें आपसी भेदभाव मिटाकर गले मिलते हुए रंग लगाते हुए मन भी रंगीन हो जाता है. इनके सभी सहयोगी मस्त रहते हुए गले मिल लेते थे. राजा बाबू भी पहुंच जाते थे और होली की मस्ती में रंग लगाते हुए सबसे गले मिल लेते. होलियारो की टोली भी मस्ती भरे गीत गाने लगते उसमें फिल्मों के गीत भी मिल जाते रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे. फिर तो अगले वर्ष ही ऐसे गीत गाने सुनने को मिलेंगे जो बाकी बचे रहेंगे तो फिर मिलेंगे. होली का समापन करते हुए चाय की चुस्की लेते हुए ढोलकी की थाप पर बिष्ट जी के साथ हम भी गाने गुनगुनाने लगते. आज की होली नसी गए छ फागुन उलो कई गए छ, गुजिया, भांग खिलाई गए छ. आज की होली की रहा या जी रय्या जागीरया कह गए छ…आज की होली…..