- (मनीष सिंह की वॉल से)
आपसे चार्ली चैप्लिन मिलना चाहते है बापू..
– कौन चार्ली चैप्लिन.. ??
गांधी फिल्में नही देखते थे।
तो किसी ने बताया – जोकर है एक!!!
दूसरे ने टोका – नही बापू, एक्टर है,
बहुत फेमस है…
– ठीक है। मैं अभी नही मिलना चाहता…
●●
गोलमेज कॉन्फ्रेंस अटैंड करने को बापू लन्दन में थे। तमाम मुद्दे, राजनीतिक सवाल, दिमाग मे उलझ रहे थे। ऊपर से प्रेस वालो, सेलेब्रिटियों, पॉलिटिशियन्स का तांता लगा हुआ था।
कोई “मैडम तुसाड म्यूजियम” वाले बुला रहे थे। अब पता नही कि ये मैडम तुसाद कौन है? कोई एक गौहर जान भी है, कहते है कि मशहूर गायिका है।
मिलने को आतुर है- एक मुलाकात के लिए 12000 रुपये दान देने की चिट्ठी लिखी है। बस, वो अपना गाना सुनाना चाहती है गांधी को..
औऱ गांधी चाहते थे कि समय निकालकर लंकाशायर जायें। वहां के मिल मजदूरों से मिलें।
चार्ली वाली बात आई गयी हो गई।
●●
किंग्सले हॉल में उनके कार्यक्रम के आयोजक विलियम रिन्ड ने पूछा- आप चार्ली चैपलिन को मिलने समय नही दे रहे ?
गांधी ने अपनी असमर्थता जताई।
“आपको उससे मिलना चाहिए। वो दुनिया का सबसे मशहूर बन्दा है, ऑफकोर्स आपको छोड़कर.. रिन्ड हंसे।
और फिर गम्भीरता से कहा- वो आपके उद्देश्य से सहानुभूति रखता है।उसने गरीबी देखी है, बड़े क्रांतिकारी विचार रखता है। उससे मिलना, आपके कॉज में सहायक होगा..
गांधी ने सर हिलाया
ठीक है फिर..
●●
चार्ल्स स्पेन्सर चैपलिन, नाइट कमांडर ऑफ द मोस्ट एक्सीलेंट ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर, उर्फ चार्ली चैप्लिन (KBE)…
एपोइंटमेंट लेकर, अपने पैरों चलकर उस फकीर से, जिसे 1982 में पिक्चर रिलीज होने के पहले कोई जानता नही था, मिलने आये।
अपनी ऑटोबायोग्राफी में वे याद करते हैं, ईस्ट इंडिया डॉक रोड में, स्लम एरिया का वह घर, जहां गांधी ठहरे थे।
और गांधी से मिलने के लिए सीढियां चढ़ते समय अपनी नर्वसनेस… वे गांधी से मिलकर क्या कहेंगे??
एक्टर थे, तो मन ही मन अपनी ओपनिंग लाइनें दोहरा रहे थे- “मि गांधी, मैं आपके देश और आपके लोगो की आजादी का समर्थक हूँ”
●●
मुलाकात अच्छी हुई। ऑटोबायोग्राफी में चार्ली लिखते है- चरखे को देखकर मैनें पूछ ही लिया, मि. गांधी, मैं आपके सारे विचारों से सहमत हूँ, लेकिन आप मशीनों का विरोध क्यो करते हैं?
गांधी बोले- चरखा चलाने का मतलब, सारी तकनीकी का विरोध नही। ये उससे जुड़े आर्थिक और राजनीतिक तंत्र का विरोध है। शोषण की व्यवस्था का विरोध है। गरीबो से समेटकर, चंद जेबें भरने का विरोध है।
इंगलैंड ने भारत के सारे उद्योग नष्ट कर, यहां मशीनों से प्रोडक्शन शुरू किया है। ताकि यहां माल बनाकर भारतीयों को बेच सकें। वहां का धन, यहां लाया जा सके।
हम मशीन से बने कपड़े का नही, उस शोषण के फ़लसफ़े का विरोध करते हैं। इसलिए चरखे से भारतीय खुद कपड़ा बनाये, खुद का उत्पाद पहने, चरखा चलाकर इसका संकेत देता हूँ।
●●
बातचीत के बाद दोनो ने साथ साथ प्रार्थना की। गांधी ने अपने तरीके से, चार्ली ने अपने तरीके से..
गांधी का भजन जरा लम्बा चला, तो चार्ली भी सुनते रहे। फिर दोनो ने भोजन किया।
ऑटोबायोग्राफी में चार्ली ने “मोस्ट ब्रिलिएंट मैन ही एवर मेट” और “वन ऑफ मोस्ट गॉड लाइक एज वेल” लिखकर गांधी से मुलाकात के अध्याय को समाप्त किया।
●●
प्रेस और मीडिया से, 45- बेक्टन रोड के दोनो फ्लोर पैक थे। हजारों लंदनवासी , सड़क पर इकट्ठे थे। गांधी और चार्ली की मुलाकात का गवाह बनने के लिए..
वो 2 सितंबर 1931 की शाम थी।
और 2024 की भी एक शाम है, जब पूड़ीपैक और 500 रुपये देकर, टेक्टरों से भीड़ इकट्ठा करवाने वाला नशेड़ी जोकर, गांधी की गुमनामी पर दया बरसा रहा है।
●●
उसके जैसे ही एक सनकी, आत्ममुग्ध, बौने, अवतारी तानाशाह का मजाक उड़ाते हुए, चार्ली ने अपनी सर्वकालिक महान क्लासिक ” द ग्रेट डिक्टेटर” बनाई।
और उसके अंत में अपना सन्देश दिया।
चैप्लिन शांति का, अहिंसा का प्रेम, साहचर्य, की बात करते हैं। जब वे गरिमा औऱ मानवता को लालच, नफरत, अहंकार और मशीनो से ज्यादा जरूरी बताते है..
तो उनकी बात में गांधी से मुलाकात की छाप दिखती है।
और चैप्लिन की जुबान से जब गांधी बोलते दिखाई देते हैं, तब आपका, मेरा, और हिंदुस्तान का सीना..
गर्व से दोगुना हो जाता है।