नीमा
इस धरती में किसी – किसी स्थान का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। परन्तु उस स्थान पर रहने वाले इंसानों को उसका भान होता हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि हम इंसान अपनी सीमित सोच और उसी सोच के अनुसार अपने सीमित भौतिक लक्ष्य के लिए जीवन जीते हैं और इसी को समग्र जीवन समझ बैठते हैं। यही बात लागू होती है इस कौसानी के लिए जहां हम सबको भी जीने का अवसर मिला है।
कौसानी के बारे में जितना अधिक जानेंगे उतना अधिक इस स्थान के महत्व को समझेंगे और इस जगह के प्रति उतना ही हमारा स्नेह और श्रृद्धा बढ़ जायेगी। धरती में कौसानी एक खास जगह है। प्राकृतिक रूप से देखें तो यह छोटी सी जगह गहराई और ऊंचाई दोनों तरह का अहसास देती है। इसके सामने विस्तृत हिमालय के पर्वत चौखम्बा से पंचाचूली तक के भव्य दर्शन होते हैं, प्रकृति की इन महान संरचना का वर्णन इंसान शब्दों में नहीं कर सकता है, उसका वह अहसास कर सकता है। इन्हीं हिमालय पर्वत श्रृखलाओं के पीछे से उगता सूरज एक चमत्कार से कम नहीं लगता है। कौसानी से थोड़ा और उत्तर की ओर इन्हीं हिम श्रृखलाओं की जड़ में कत्यूर नामक विशाल सुन्दर घाटी बिखरी हुई है। आजकल तो यह घाटी मकानों और दुकानों तथा वाहनों से पट गयी है। इसलिए उसका अधिकांश प्राकृतिक भाग दिखता भी नहीं है परन्तु जब धरती खाली होती थी तो उसकी अनुपम छटा देखते देखते आंखें थकती नहीं थीं। कौसानी के ही दक्षिण दिशा में लगती कोसी नदी के तट पर बसी सुन्दर बौरारो घाटी और उसके सिरे पर बसे छोटे – बड़े गांव हैं। आमने सामने बसे ये गांव ऐसे लगते हैं मानो एक दूसरे के समाचार पूछते हों और अपने सुख दुख बया करते हों, बौरारो घाटी भी अपनी खूबसूरती और अपनी उर्वरा शक्ति के लिए दुनियां भर में जानी जाती रही है।
इस तरह इस छोटी पहाड़ी पर बसी कौसानी की दोनों तरफ सुन्दर लंबी चौड़ी घाटियां कौसानी की दांयी बांयी भुजायें जैसी प्रतीत होती हैं और लगता है जैसे कौसानी ने इनको अपने सीने से लगाया हो या यूं कहें कि कौसानी को इन्होंने अपनी गोद में थापकर रखा हो। यहां की छोटी सी बाजार जिसमें अधिकांश समय शांति समायी रहती है, उसका भी अपना एक अति स्थानीय वातावरण है। गरमी और सर्दी के कुछ महीनों में ही शोरगुल और आवाजाही रहती है क्योंकि तब पर्यटक सीजन रहता है। यहां पर पहुंचने वाले पर्यटकों में काफी लोग प्रकृति प्रेमी, साहित्य प्रेमी और गांधी विचार में रूचि रखने वाले होते हैं।
देश के कोने कोने से आने वाले प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को उत्तर की ओर आते – आते ही पहाड़, नदी, सूर्योदय और भव्य हिमालय के दर्शन होने लगते हैं। गांधी विचारकों को यहां पर अनासक्ति आश्रम, सरला बहन संग्रहालय, लक्ष्मी आश्रम एवं सुमित्रानन्दन पंत विथिका को देखने और समझने का अवसर मिलता है। साहित्य प्रेमियों को कवि सुमित्रानन्दन पंत की बीथिका को देखने और पंत जी के बारे में पढ़ने और उनको जानने का सुन्दर अवसर मिलता है।
उपरोक्त त्रिवेणी संगम में छोटी सी इस कौसानी का होना अपने आपमें एक अदभुत बात है। प्राकृतिक सुन्दरता की दृष्टि से देखें तो शायद इससे भी अधिक खूबसूरत दृष्य उत्तराखण्ड में कुछ अन्य जगहों में भी हैं परन्तु इस जगह की प्राकृतिक खूबसूरती ने महात्मा गांधी को इतना प्रभावित किया कि 2 दिन के प्रवास पर आये गांधी यहां 14 दिन तक रूक गये। महात्मा गांधी, जिनका एक – एक क्षण अति मूल्यवान होता था, फिर भी वह 14 दिन की लंबी अवधि कौसानी में रहने के लिए निकाल सके तो निश्चित ही इस भूमि का कोई तो महातम्य रहा होगा ना? केवल इसकी प्राकृतिक खूबसूरती ने ही गांधी जी को खींचा होगा ऐसा मुझे नहीं लगता है। इस जगह ने निश्चित ही गांधी जी की आध्यात्मिक साधना को भी पुष्ट किया ही होगा, ऐसा मैं मानती हूं। क्योंकि उनके हाथ में भगवद गीता पर लिखा उनका भाष्य था, जिसकी भूमिका उन्होंने हिमालय के सामने ही बैठकर लिखी थी और उस छोटी पुस्तक को उन्होंने ‘अनाशक्तियोग’ नाम दिया था। जिसके नाम पर बाद के वर्षों में याने 60 के दशक में इस जगह का नाम अनाशक्ति आश्रम पड़ा। जो नाम आज दुनियाभर में प्रसिद्ध है। गांधी जी ने इसकी खूबसूरती पर भी कहा कि लोग
स्विटजरलैन्ड क्यों जाते हैं अपने स्वास्थ्य सुधार के लिए उनको तो कौसानी आना चाहिए। यह स्थान यूरोप के स्विटजरलैन्ड से कुछ कम है क्या!
शैक्षणिक दृष्टि से देखें तो करीब 10 – 12 दशकों में कौसानी ही वह स्थान रहा है जिसने अधिकांश कुमाऊं क्षेत्र के युवाओं को पढ़ने लिखने का अवसर दिया था। कौसानी का प्राथमिक विद्यालय एवं कौसानी के राजकीय इन्टर कालेज में दूर – दूर से भी आकर और यहां रहकर युवाओं ने शिक्षा प्राप्त की थी और उक्त विद्यालय अपनी शैक्षणिक गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध थे। यहां से शिक्षित युवाओं ने हर क्षेत्र में काफी प्रगति की और नाम कमाया था। हालांकि इन शिक्षण संस्थाओं की वर्तमान दुर्दशा देखकर लोगों को यह विश्वास करना कठिन होगा।
शिक्षा के क्षेत्र में एक अनूठे तरीके के प्रयास देश की आजादी से पहले ही सरला बहन द्वारा भी कौसानी में ही प्रारम्भ किया गया। सरला बहन द्वारा प्रज्वलित गांधी प्रणीत नयी तालीम शिक्षा की ज्योति ने तो पूरे उत्तराखण्ड और देश को शिक्षा के समग्र स्वरूप को समझने का अवसर व अनुभव दिया। सरला बहन के लक्ष्मी आश्रम में तैयार बहनों ने अपने परिवार, गांव और क्षेत्र में जिस तरह के क्रान्तिकारी परिवर्तन किये उसके परिणामस्वरूप उत्तराखण्ड में महिला शिक्षा, महिला सशक्तीकरण एवं सामाजिक सुधार तथा सामाजिक परिर्वतन को एक दिशा मिली। सरला बहन के इस शिक्षण संस्थान ने 50 के दशक में उत्तराखण्ड में बाल – विवाह और महिला
आत्महत्याओं पर रोक लगाने में बड़ी अहम भूमिका अदा की है। इसी कौसानी में रहकर सरला बहनजी ने एक ओर महिला शिक्षा का विस्तार कर उसे गांवों में फैलाया और दूसरी ओर देश की आजादी के लिए कुर्बान होने वाले क्रान्तिकारियों के परिवारों को टूटने से बचाया, स्वयं देश की आजादी के लिए लड़ी और स्वतंत्रता सेनानी बनकर कैद में रही, इतना ही नहीं, उत्तराखण्ड में गांधी विचार की नयी पीढ़ियों को तैयार किया। उन्हीं कार्यकर्ताओं ने उत्तराखण्ड में गांधी जी के द्वारा दिखाये रास्ते पर चलकर उत्तराखण्ड को विनाशकारी विकास से बचाने के लिए अहिंसक प्रतिरोध की अलख जगायी। जिसमें चाहे बड़े बांधों का प्रतिकार हो, या शराब मुक्ति का आन्दोलन हो या विनाशकारी खनन से पहाड़ को बचाने की मुहिम हो, इनमें सरला बहन के बनाये कार्यकर्ताओं ने अपना जीवन समर्पित कर दिया था। इन्हीं लोगों ने उत्तराखण्ड को गांधी के अहिंसक प्रतिरोध का शिक्षण व प्रशिक्षण दिया। वही अहिंसक प्रतिरोध की परंपरा आज भी उत्तराण्ड में चलती आ रही है। जिसका एक छोटा अनुभव कुछ दिन पूर्व ही कौसानी में शराब की दुकान के खिलाफ बहनों व महिलाओं के जूलूस प्रदर्शनों में हुआ था।
कौसानी का इतिहास जहां एक ओर महात्मा गांधी की शिष्या सरला बहन से बनता है, वही दूसरी ओर उनसे भी पहले महात्मा गांधी से जुड़ता है, गांधी उस विचार और उस कर्म का नाम है जो मनुष्य के नैतिक विकास का हनन करने वाली हर व्यवस्था को नकारता है और शान्तिपूर्ण तरीक से उस व्यवस्था और उसके कानून को तोड़ता है अर्थात नहीं चलने देता है। गांधी के जीवन का लक्ष्य ही असत्य एवं अन्याय को समाप्त करना था। इसलिए असत्य को खत्म करने का एक पूरा सिद्धान्त और उसका व्यावहारिक मार्ग उन्होंने मनुष्य जाति के सामने रखा वह था अहिंसक सत्याग्रह। हम लोग गांधी के लक्ष्य और उनके मार्ग को कितना समझ पाते हैं? यह हमारे
लिए एक सवाल बनकर खड़ा हो जाता है, खासकर गांधी का नाम लेने वाले और उनके सिद्धान्त से प्रेम रखने वालों के लिए। मनुष्य जाति की उच्च चेतना की हैसियत से हमारा मार्ग गांधी से पृथक नहीं हो सकता है अर्थात हम सब तो जीवन में सत्य को ही पसन्द करते हैं। केवल फर्क ये है कि गांधी ने असत्य के साथ समझौता नहीं किया। हम असत्य के साथ समझौता करके अपने जीवन को खतरे में डालने से बचते रहते हैं। मनुष्य अपने छोटे स्वार्थ और अपनी सहूलियतों को आसानी से बनाये रखने अथवा बनाने के लिए अनैतिकता से भी समझौता करने को तैयार बैठा रहता है यद्यपि उनके भीतर की चेतना तो उनको कहती ही है कि यह असत्य है, यह ठीक नहीं है। इसकी एक मिशाल हाल में कौसानी के लोगों ने हमारे सामने प्रस्तुत की है। कौसानी में शराब की दुकान को खुलवाने में जोर जबरदस्ती एक लाबी तैयार करायी गयी, इस तर्क पर कि यहां तो अवैध तरीके से शराब का धंधा चलता है इसलिए सरकारी दुकान खोलकर अवैध शराब की बिक्री का रास्ता बंद किया जाय। दूसरा तर्क दिया गया कि शराब नहीं होने के कारण यहां व्यापारियों की बिक्री प्रभावित हो रही है क्योंकि आदमी शराब के कारण ही सोमेश्वर या गरूड़ खरीददारी के लिए जाता है। तीसरा तर्क यह भी दिया गया कि कौसानी में शराब की दूकान नहीं होने के कारण कौसानी में पर्यटक कम आ रहे हैं। जब शराब की दुकान खुलने के खिलाफ हमारे शांतिपूर्ण जूलूस के दिन उपरोक्त तीनों बातों का जबाव नुक्कड़ सभा में हमारे द्वारा दिया गया कि अवैध शराब को बंद करने के लिए एक सरकारी दुकान लाना कोई औचित्पूर्ण तथ्य नहीं हो सकता है क्योंकि शराब तो वैध हो या अवैध है तो शराब ही, अतः हमको मिलकर अवैध शराब के धंधे को बंद करना चाहिए। दूसरा दूकानो में सामान अच्छा होगा तो क्यों कौसानी के ग्राहक दूसरी जगहों से सामान के लिए जायेंगे, इसलिए यहां व्यापारियों को अपनी दुकानों में अच्छी गुणवत्ता वाला सामान रखना चाहिए। क्योंकि जब महिलायें भी कौसानी की ग्राहक नहीं हैं तो यह सोचने वाली बात है, क्योंकि महिलायें तो शराब नहीं पीती हें, वह सामान खरीदने सोमेश्वर व गरूड़ क्यों जाती हैं? तीसरी बात का जवाब था कि कौसानी में पर्यटक शराब पीने के लिए नहीं आता है। यहां की उपरोक्त विशेषताओं के कारण आता है। ये तर्क तो एकदम सामान्य और सत्य थे, शायद कुछ लोगों की समझ में भी आये, मुझे पता चला कि इन बातों को सुनकर लोगों के विचार भी बदल रहे थे परन्तु कुछ लोगों का शैतानी दिमाग शराब की दुकान को खोलकर ही शांत होने वाला था इसलिए वह उसकी रणनीति बनाने में लगे थे। उन्होंने हमारे उक्त तर्कों को काटने के लिए हमारे ऊपर बेबुनियाद आरोप प्रत्यारोप एवं अभद्र भाषा का प्रयोग करके कौसानी के लोगों को उकसाने का काम किया, अपने निम्न स्तर के द्वेष को बाजार में प्रदर्शित करके अपने असली चरित्र का परिचय दिया। हमें दो बातों से घोर आश्चर्य में रहे। एक तो ये कि दो और व्यापारी महिलाओं ने अपनी नेता का साथ दिया और दूसरा यह कि कौसानी के बाजार के व्यापारी और ग्रामीणों ने अपना विवेक उसी तरह खोकर जिस तरह एक शराबी खोता है, अपने बचकाने या अपनी बेवकूफी का जबरदस्त परिचय तब दिया, जब उन्होंने उस महिला को अपनी देवी मानकर शराब की दूकान खोलने की अगुवायी में उसकी पूजा की, जिसका वह नाम तक लेना पसंद नहीं करते थे। कौसानी की शान सम्राट कवि सुमित्रानन्दन पंत जी के पवित्र संग्रहालय में बैठकर व्यापारियों ने उक्त महिला के चरणों में अपना सिर रखकर शराब की दुकान को लाने के लिए एकजुटता दिखायी। एक तरह से उसको अपना मोहरा ही बनाया! कौसानी के इतिहास के लिए इससे शर्मनाक घटना और कुछ नहीं हो सकती थी। कौसानी के इतिहास में इस बात को जब लिखा जायेगा कि जहां पूरे उत्तराखण्ड में महिलाएं एकजुट होकर शराब का विरोध कर रही थीं। वही कौसानी में महिलाओं की प्रेरणा और उनके नेतृत्व के कारण शराब की दुकान को खुलने का सुअवसर प्राप्त हुआ और कौसानी की छोटी सी बाजार में शराब की दूकान खुली। क्या यही है महिलाओं का सशक्तीकरण ? इस पर जरूर चर्चा होनी चाहिए। आज तो शासन प्रशासन को भी इसी तरह की सशक्त महिलाओं की जरूरत है जो उनके बेगैरत वाले कठिन कामों को आसान कर देती हैं। शायद इन महिलाओं की जरूरत बहुत जगहों पर होने वाली है। यद्यपि इस तरह के कार्यों के पीछे इन महिलाओं के राजनैतिक स्वार्थ छिपे हैं जिसका खुलासा आने वाला समय कर ही देगा।
उत्तराखण्ड की वे महिलाएं इनके लिए क्या कहेंगी जो रात – दिन शराबी पतियों से परेशान होकर आये दिन सड़कों पर शराब के खिलाफ लड़ रही हैं और दरातियां लेकर अपने सारे कारोबार छोड़कर भूखी प्यासी धरना दे रही हैं? उनकी आत्मायें इनको क्या दुआ देंगी?
शराब का विरोध कर रही महिलाओं एवं युवाओं की भावनाओं को लक्ष्मी आश्रम से बड़ी दीदी ने जनपद के जिलाअधिकारी से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री तक को लिखकर निवेदन किया था कि यहां की जनभावनाओं एवं कौसानी की खासियत का ध्यान रखकर आप इस प्रस्तावित शराब की दुकान को नहीं खोलें। परन्तु घोर आश्चर्य और शर्म की बात है कि सभी ने चुप्पी साध ली, पत्र प्राप्ति के उत्तर का एक सामान्य शिष्टाचार भी नहीं निभाया कि उन्हें ये पत्र प्राप्त हुए हैं। जहां सरकार एक ओर बड़ी दीदी (राधा बहन) और बसंती दीदी को इन्हीं सब सामाजिक कार्यों के लिए पद्मश्री जैसा गौरान्वित सम्मान देती है, वही दूसरी ओर इन्हीं लोगों के गृहक्षेत्र और कर्मक्षेत्र में शराब की दूकान को खोलती है, ये उनका अपमान और उनके विचार और सामाजिक सेवा के उनके कार्यों का मजाक नहीं तो और क्या है? ये कितना बड़ा विरोधाभास है!
यह भी समझने लायक बात है कि एक ओर सरकार गरीब जनता को मुफ्त अनाज बांटती है और किसान निधि देती है और दूसरी ओर शराब से उनके जेब का अन्तिम धैला भी खींचती है तो इससे क्या सिद्ध होता है? क्या जनता ने हमेशा ही गरीब रहना है और सरकारों ने उनको खुश करने के लिए हमेशा ही शायद मुफ्त अनाज बांटना है। क्या सरकारें घाटे में रहती हैं? इस प्रश्न का जवाब तो सभी एक स्वर में देंगे कि नहीं, घाटा तो जनता को ही भुगतना है, तो फिर जनता क्यों नहीं कहती है कि हमें शराब मत पिलाइए हमारा पैसा बचेगा जिससे हम स्वयं अपना अनाज खरीद लेंगे। फ्री अनाज के बदले उसकी क्रय मूल्य को घटा दीजिए। इतना मूल्य तय कीजिए जो सामान्य नागरिक के आमदनी के अन्दर आ सके। इस बात में जनता का आत्मसम्मान और स्वभिमान समाया है। हम ही तो सरकार बनाते हैं। इसलिए हमको खुश रखना और साथ में बेवकूफ भी बनाये रखना सरकारों का काम है। फ्री अनाज या सुविधायें देने वाली सरकारें ही हमें चाहिए ना? ये क्या हमारी समझदारी है? या बेवकूफी? सोचिये इस पर। जनता इतनी बेवकूफ हो चुकी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमें तब मिलता है जब हमने किसी को कहते सुना कि सरकार राजस्व कहां से लायेगी अगर शराब नहीं बेचेगी तो? इसलिए दुकान खुलनी चाहिए।
शराब से लोगों की इज्जत और आबरू तो जाती ही है, शारीरिक, पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से व्यक्ति और नागरिक समाज कमजोर हो जाता है। लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि लोग कब समझेंगे। क्यों लोगों का दिमाग इतना कुंद हो चुका है। क्यों जनता सरकारों की आज्ञाकारी शिष्य बनकर उनके सभी निर्णयों को आंख मूदकर स्वीकार करती जा रही है। मनुष्य की चेतना का क्यों हृास हो रहा है? समाज ने अपनी स्वायत्ता और आत्मसम्मान क्यों खो दिया है।
उपरोक्त सब प्रकार की मुफ्तखोरी एक अकर्मण्य और भिखारी समाज को तैयार कर रही है। देश में किसी प्रकार के भी चुनावों में सभी दलों का घोषणा पत्र जनता को भीख देने के वादों से ही भरा रहता है और जो जितना अधिक भीख देता है जनता उसको अपना बहूमूल्य मत देकर गद्दी पर आसीन कर देती है। और फिर हाथ पर हाथ रखकर सत्ताधारियों की तरफ अपनी आंखें बिछाकर देखते रहती है कि कब उसकी झोली भरे। समाज कुछ इस प्रकार का बनता दिख रहा है, एक जो अंधश्रृद्धा में डूबा हुआ है दूसरा जो भीख पर टिका हुआ है, इसलिए डरा हुआ है। कुछ इसी तरह का समाज तब था जब 1915 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आये और उन्होंने सालभर घूम – घूमकर देश के किसान, नौजवान, बुद्धिजीवी आदि सभी तबके के लोगों से मुलाकात की और संवाद किया। उन्होंने पाया कि देश पूरी तरह अंग्रेजी हूकूमत से डरा हुआ है। कुछ लोग ब्रिटिश सरकार की स्तुति में लगे है कुछ लोग नाराज है आजादी चाहते हैं पर पीछे से उपद्रव करके लड़ना चाहते हैं और कुछ लोग डरे हुए हैं। गांधी का काम यही से शुरू हुआ कि लोगों को यह समझाना कि पहले अपनी ताकत को समझो अपने आत्मसम्मान को समझो ना डरो ना, स्तुति करो – ब्रिटिश सरकार आपके सहयोग से ही यहाॅ टिकती है। आप सहयोग करना छोड़ दो और डरना छोड़ दो। गांधी ने देश को निर्भय बनने का पाठ पढ़ाया उसके लिए उनके पास दक्षिण अफ्रीका का लंबा अनुभव था। उनके कोरे उपदेश नहीं थे इसलिए लोगों ने गांधी को सुना, समझा और जो वह कह रहे थे उसको करना शुरू किया। तो देश आत्मसम्मान के लिए जाग्रत हुआ। आत्म सम्मान आदमी के अपने कर्म करने से आता है ना कि किसी के देने से। व्यक्ति और समाज जितना अधिक स्वावलंबी होगा उतना ही स्वतंत्र भी होगा। स्वतंत्रता मनुष्यता की मूल पहचान है। सरला बहिनजी ने भी यही कहा – ‘‘स्वावलंबन स्वतंत्रता की गारन्टी है।’’ यद्यपि हम स्वयं इससे दूर हो रहे हैं। समाज में कुछ मेहनतकश लोग आज भी स्वावलंबी जीवन जी रहे हैं। इसलिए उनके पास अधिक स्वतंत्रता भी है। आज सारी दुनिया एक ही ताने बाने में बुनती जा रही है इसलिए स्वावलंबन के लिए गुंजाइश भी घटती जा रही है।
इस लेख में कौसानी के इतिहास से शुरू हुई बात देश के हम सभी नागरिकों की माली हालत तक पहुंची है, परन्तु इसमें कोई विरोधाभास नहीं है। इसमें तारतम्य समाया है। अलग अलग कारणों से पीड़ित जनता जाग्रत भी हुई है इसलिए बदलाव की आशा भी दिखायी देती है परन्तु अपने – अपने राजनैतिक एवं आर्थिक स्वार्थों में लगे लोग जाग्रत लोगों का भी नुकसान कर रहे हैं। इसका प्रमाण हमको मिला है। हमें तो बस इतनी बात की प्रसन्नता है कि लक्ष्मी आश्रम ने अपना फर्ज अदा किया। गांधी विचार को पढ़ने, समझने वाले हमारे ‘साधना कोर्स’ की बहनों और उनकी समन्वयक संजना दीदी को अहिंसक प्रतिरोध का एक छोटा ही सही पर प्रत्यक्ष व स्व अनुभव हुआ। गांधी ने किस तरह अहिंसक प्रतिकार की लंबी – लंबी सामूहिक लड़ाई लड़ीं और जेलों में जिन्दगी बितायी। उस बात को साधना कोर्स की बहनों ने और अधिक गहराई से समझा। हमारी छोटी बड़ी छात्राओं ने बहुत हिम्मत से अपना विरोध प्रकट किया। जनता के सामने अपनी आवाज बुलंद की। ये हमारा एक प्रशिक्षण ही था। यह सरला बहनजी और राधा बहनजी के द्वारा सामाजिक सुधार व परिर्वतन की शिक्षा की परंपरा को जीवंत रखने का एक कर्तव्य ही था। हमारे इस कर्तव्य का मार्गदर्शन भी बड़ी दीदी ने ही किया था। जिसको हमने मिलकर सम्पन्न किया। हमारे आश्रम के आप सभी सहभागी एवं कौसानी की महिलायें तथा हमारे आश्रम के दूर दूर रहने वाले सदस्य सभी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने इस विरोध प्रदर्शन में अपना अपना कर्तव्य अदा किया। और सबसे बड़ी बात यह थी कि आश्रम के खिलाफ जो बातें कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर बोलीं, तब भी आपने धैर्य रखा यही है अहिंसा की शक्ति।