लवजीत सिंह
कक्षा 11, नानकमत्ता पब्लिक स्कूल
कक्षा 11, नानकमत्ता पब्लिक स्कूल
फ़िल्म फेस्टिवल! यह होता क्या है? चलो जानते हैं कि किस तरह मनाया जाता है फ़िल्म फेस्टिवल? पहली बात तो यह है कि फ़िल्म फेस्टिवल में बहुत सी अलग-अलग फ़िल्में दिखाई जाती हैं। हम लोग बहुत से फेस्टिवल मनाते हैं पर हमारे आस-पास ऐसा कभी नहीं हुआ कि हमने किसी भी तरह का फ़िल्म फेस्टिवल आयोजित किया हो। मुझे यह लगता है कि फ़िल्म को इस तरह देखना चाहिए जिससे हम कुछ सीख पाएं। ऐसी फ़िल्में देखें जो हम अपने समाज से जोड़ पाएं और उसके ज़रिए अपने समाज को अलग-अलग नज़रिए से देख पाएं।
फ़िल्म फेस्टिवल एक ऐसा फेस्टिवल है जिसमें स्क्रीनिंग के समय कोई भी व्यक्ति फ़िल्म देख सकता है। भारत की विभिन्न जगहों पर फ़िल्म फेस्टिवल आयोजित होते हैं। जैसे पटना फ़िल्म फेस्टिवल, उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल, गोरखपुर फ़िल्म फेस्टिवल आदि। इस तरह के फेस्टिवल में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। एक बार फिर से सीखने सिखाने के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए नानकमत्ता में पहला फ़िल्म फेस्टिवल आयोजित किया गया। ऐसा पहली बार हुआ कि नानकमत्ता में इस तरह का कोई फेस्टिवल मनाया गया जो नानकमत्ता पब्लिक स्कूल के शिक्षार्थियों ने आयोजित किया था।
इस फेस्टिवल को इस तरह आयोजित किया गया जिसमें रिसोर्सेज का काम इस्तेमाल हुआ। बच्चों ने ही हर स्पेस डिज़ाइन किया। ‘सिनेमा इन स्कूल’ से जुड़कर यह सब डिज़ाइन हो पाया। बड़ी बात तो यह है कि स्कूल के टीचर्स ने लर्नर्स का साथ दिया जिसके कारण वे इस स्पेस को सफ़ल बना पाए।
सिनेमा तो हम बहुत पहले से देखते आ रहे हैं पर इतना व्यवस्थित तौर पर नहीं देखते थे। जब से संजय जोशी जी और अतुल जी सिनेमा इन स्कूल के अंतर्गत हमारे साथ लगातार काम कर रहे हैं, हम लगभग हर हफ्ते कोई न कोई मूवी या डॉक्यूमेंट्री देखते हैं। इस फेस्टिवल में अतुल जी ने फ़िल्म क्लब के लर्नर्स को मेंटर किया। लर्नर्स अलग-अलग ग्रुप में बंट गए जिससे काम और आसान हो गया। डॉक्यूमेंटेशन ग्रुप, लॉजिस्टिक ग्रुप, और इस तरह के कुछ और ग्रुप्स बने। संजय जोशी जी भी फ़िल्म फेस्टिवल का हिस्सा बनने दिल्ली से नानकमत्ता आए। संजय जी सिनेमा को एक अलग नज़रिए से देखने वाले व्यत्ति हैं।
फ़िल्म क्लब ने फ़िल्म फेस्टिवल में दिखाने के लिए ऐसी फ़िल्में चुनी जो हमारे समाज से जुड़ी हुई हैं। हमारा मकसद फ़िल्म के ज़रिए अपने समाज को भी जानना है। हमने जय भीम, चाय, आई एम 20 आदि फ़िल्में देखी। इस फेस्टिवल में तीसरी कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक के शिक्षार्थी शामिल थे।
सिनेमा हॉल में फ़िल्म देखने के बाद उसके बारे में बातचीत नहीं होती है, ये सभी जानते हैं। पर इस फेस्टिवल में ऐसा नहीं था। हर फ़िल्म देखने के बाद बातचीत हुई ताकि सभी शिक्षार्थी अपनी बात रख पाएं कि उन्होंने फ़िल्म में क्या देखा। बड़ी बात तो यह है कि जो स्टूडेंट क्लास में नहीं बोलते हैं, वो भी अपनी बात सब के सामने रख रहे थे। नानकमत्ता जैसे छोटे से कस्बे में फ़िल्म फेस्टिवल आयोजित किया जाना खास बात है।
इस फ़िल्म फेस्टिवल के दौरान एक बार फिर से अपने समाज को जानने का मौका मिला। स्टूडेंट सीखने-सिखाने के अवसरों को ऐसे ही सफ़ल बनाते हैं। हर जगह, हर समय, सीखने-सिखाने के मौकों के पीछे चल पड़ते हैं। मुझे लगता है इसी तरह सीखने में ज्यादा मज़ा आता है।