पार्वती जोशी
भारत के पर्यटक स्थलों में केरल अत्यंत लोकप्रिय व खूबसूरत पर्यटक स्थल है ।वहाँ का सुहावना मौसम,दूर-दूर तक फैले बैक वाटर, हरे भरे हिल स्टेशन,चाय व हरबल मसालों के बाग़ान सब कुछ इतना शानदार है कि पर्यटकों को बार-बार यहाँ आने का मन करता है । यह पश्चिमी घाट ( अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत शृंखलाओं के बीच) में स्थित है ।अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण यह दुनिया के शीर्ष पर्यटक स्थलों में शामिल किया गया है ।कुछ वर्षों पूर्व केरल घूमने की योजना बनाई थी,हमारी पूरी बुकिंग भी हो चुकी थी किन्तु उस बर्ष जाड़ों में हमारी यात्रा से पूर्व मेरी माँ की मृत्यु होने के कारण,हमें अपनी यात्रा निरस्त करनी पड़ी थी ।
इस वर्ष जाड़ों में हम दोनों पति पत्नी अपनी दोनों बेटियों और बड़ी बेटी के सुपुत्र राघव के साथ केरल यात्रा के लिए रवाना हुए ।हमने पूरी बुकिंग वही पाँच वर्ष पुरानी ही रखी थी ।केवल राघव अब छोटा नटखट बच्चा न रहकर समझदार और ज़िम्मेदार बालक बन चुका था ,जो प्रत्येक स्टेशन पर व हवाई अड्डे पर हाथ में अपना ट्रॉली बैग खींचता हुआ ‘फ़ॉलो मी ‘कहता हुआ हमारा मार्गदर्शन कर रहा था । सुबह छह बजे हवाई अड्डे के लिए निकले, साढ़े आठ बजे की उड़ान थी ।बैंगलुरु से एक घंटे में कोच्चि पहुँच गए ।सब कुछ इतना सुनियोजित था कि हमें कहीं कोई परेशानी नहीं हुई ।ट्रैवलिंग एजेंसी वालों ने हमें कोई भी असुविधा नहीं होने दी ।हवाई अड्डे में टैक्सी ड्राइवर ने हमें ढूँढ लिया ।यह शाजी की टैक्सी थी ,जिसे पूरे पाँच दिन हमारे साथ रहना था ।वह न केवल हमारा ड्राइवर था,हमारा गाइड भी वही था।कोच्चि से हमें सीधे मुन्नार के लिए निकलना था ।
पेरियार व मुन्नार के बीच पाँच घंटे का सफ़र काफ़ी रोमांचकारी रहा ।प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर यह एक खूबसूरत हिल स्टेशन है ।यहाँ की हरियाली अत्यंत मनमोहक है ।मार्ग में अनेक हर्बल मसालों के फार्म हैं ।मैं और मेरी छोटी बेटी शालिनी हर्बल मसालों व औषधीय पौधों का एक पार्क देखने टैक्सी से उतर गए ।वे लोग सौ रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से फार्म दिखाते हैं ।उन पौधों को देख कर व उनके बारे में जानकारी पाकर हम दोनों अभिभूत हो गए ।उसी फार्म की मसालों की दुकान से हमने अपने लिए, अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए मसाले व औषधियाँ ख़रीदीं । मार्ग के सारे स्टेशनों के नाम तो याद नहीं हैं,किन्तु रास्ते भर चाय के बाग़ान और मसालों के फार्म देखते-देखते कब मुन्नार के ‘रंगमाया ‘ रिजॉट्स पहुँचे,पता ही नहीं चला ।यह रिजॉर्ट घने जंगलों के बीच में,आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण है।इसी के पास में एक बहुत बड़ी प्राकृतिक लेक भी है ।इस रिजॉर्ट के चारों ओर केवल मसालों के फार्म हैं,जिनमें काली मिर्च,छोटी -बड़ी दोनों प्रकार की
इलाइची,लोंग,जायफल,दालचीनी,जावित्री,कोको,कॉफ़ी,काजू,कटहल ,अनानास,केले और पान के बड़े-बड़े फार्म हैं ।हम वहाँ दो दिन रुके । जब होटल पहुँचे ,तो लंच का समय निकल चुका था, इसलिए नहा-धोकर होटल से ही सैंडविच और कॉफ़ी मँगवाई, थोड़ा आराम करने के बाद घूमने निकल गए ।लेक के किनारे बहुत-सी फ़ोटोग्राफ़ी की । मैं तो बाज़ार में मिलने वाले उन महँगे मसालों को प्रत्यक्ष रूप में अपने सामने देखकर पगला गई थी ।अँधेरा घिरने पर होटल के डाइनिंग रूम में डिनर के लिए एकत्र हुए,तब तक पूरा डाइनिंग रूम भर चुका था ।होटल के रजिस्टर में हमारे मूल पते में उत्तराखंड का नाम देखकर,होटल का मुख्य रसोइया विपिन लाल हमसे मिलने आ गया ।हम लोग एक दूसरे से मिलकर बहुत ख़ुश हुए।फिर तो खाने में जो भी माँगो तुरंत हाज़िर । विपिन पौढी़ गढ़वाल का रहने वाला था ।खाना खाते हुए मैं सोचने लगी हमारे पौढी़ गढ़वाल का खाद-पानी इतना उपजाऊ है कि यहाँ के लाल पूरे देश में छाए हैं ।बहुत गर्व महसूस हुआ ।फिर विपिन ने ही बताया कि रात को होटल के चारों ओर घूमना सुरक्षित नहीं है ।इसलिए आप लोग होटल के ही इंडोर गेम्स वाले हॉल में जाकर खेल सकते हैं ।वहाँ गए तो देखा कि अन्य पर्यटक भी वहाँ उपस्थित थे ।हमने कैरम और टेबल टेनिस खेला ।काफ़ी रात हो गई थी,इसलिए सोने के लिए रिजॉर्ट में चले गए,इस समय पेड़ों से चलने वाली ठंडी-ठंडी हवा के थपेड़ों की आवाज़ सुनकर ऐसा लग रहा था,मानो तेज़ बारिश हो रही हो ।साँय-साँय की उस आवाज़ में उस रात मुझे बहुत गहरी नींद आई ।
हमारे ड्राइवर ने सुबह ठीक आठ बजे तैयार रहने के लिए कहा था,इसलिए सुबह जल्दी उठकर ,नहा धोकर हमने साढ़े सात बजे ही होटल में कॉम्प्लिमेंट्री नाश्ता किया । राघव को सीरियल में चॉकोज खाने थे ,तो विपिन भैया ने हाज़िर कर दिए,फिर तो राघव की उससे बहुत दोस्ती हो गई । ठीक आठ बजे शाजी ने हमसे चलने के लिए कहा और हम टी प्लान्टेशन देखने निकल गए ।हमने देखा,रास्ते भर जंगलों के बीच-बीच में रिजॉर्ट्स बने हैं और उनके चारों ओर हर्बल मसालों के फ़ार्म्स । मार्ग में अनेक चर्च भी हमने देखे ।उस दिन उनका कोई उत्सव चल रहा था , तो चारों ओर मेले का सा माहौल था।रंग बिरंगी पोशाकों में सजे हुए ईसाई भाई-बहन चर्च में एकत्रित होने के लिए तेज़ गति से आगे बढ़ रहे थे ।कुहासा और हरियाली से घिरे हुए,घुमावदार रास्तों वाले इस पहाड़ी स्थान को देख कर मन प्रसन्न हो गया ।धीरे-धीरे चाय के बाग़ान दिखाई देने लगे। हमारे ड्राइवर ने बताया कि मुन्नार केरल के ईड्डुक्कि ज़िले में आता है।बारह हज़ार हेक्टेयर में फैले हुए ये खूबसूरत चाय के बाग़ान यहाँ की ख़ासियत हैं ।उसने बताया कि यहाँ का चाय संग्रहालय और टी प्रोसेसिंग टाटा टी द्वारा संचालित किया जाता है ।इस संग्रहालय में १८८० से मुन्नार में चाय उत्पादन की शुरुआत से जुड़ी निशानियाँ रखी गई हैं ।हम चाय बाग़ान देखने टैक्सी से उतर गए ।बहुत विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए ये बाग़ान वहाँ के निवासियों के लिए रोज़गार के प्रबल साधन हैं ।टाटा के द्वारा चाय बाग़ान में काम करने वाले लोगों के लिए सुविधाजनक घर तथा उनके बच्चों के लिए स्कूल भी बनवाए गए हैं ।पूरा इलाक़ा बहुत साफ़ सुथरा है।
चाय बाग़ान देखने के बाद उससे थोड़ी ही दूरी पर स्थित रोज़ गार्डन देखने गए ।एक साथ इतने प्रकार के फूलों के पौधे,बेलें,कैक्टस व गुलाब मैंने इससे पहले कभी नहीं देखे थे ।उन्हें देखकर मैं ठगी-सी खड़ी रह गई ।क्या देखें ? क्या छोड़ें?ये सोचकर हमने अपना कैमरा राघव को पकड़ा दिया कि सबकी फ़ोटो ले डालो ।ज़िम्मेदारी का अहसास होते ही वहाँ उसका मन लग गया ।फिर हमने पूरे गार्डन का अवलोकन किया ।वहाँ के मेडिस्नल प्लान्ट्स प्रोसेसिंग हाउस में गये ।शुद्ध चंदन और अनेक प्रकार की दवाइयों के पावडर व तेल ख़रीद लिए ।वहाँ से लौटने का मन ही नहीं कर रहा था ,लेकिन हमारा समय बँधा हुआ था,दोपहर के भोजन का समय भी हो गया था । ड्राइवर हमें एक साफ़ सुथरे रेस्टोरेन्ट में ले गया, वहाँ का खाना बहुत स्वादिष्ट था ।खाने के बाद वहीं थोड़ा आराम किया । लौटते समय रास्ते में कहीं पर मेला लगा हुआ था लाउडस्पीकर में उद्घोषक मलयाली भाषा में ज़ोर शोर से चीख रहा था,हमारे कुछ भी समझ में नहीं आया,लेकिन हम मेले में घूमते रहे, कुछ सामान ख़रीदा, नारियल पानी पिया, फिर वापस रिजॉर्ट आ गये ।नहा-धोकर कुछ देर इंडोर गेम्स खेले । उस रात विपिन ने हमें बहुत स्वादिष्ट भोजन कराया ।
दूसरी सुबह साढ़े सात बजे नाश्ता करने के बाद हम ऐल्लपि के लिए निकले ।निकलने से पहले विपिन से मिलकर उसका फ़ोन नंबर लिया और अपना फ़ोन नंबर उसे दिया ।फ़ोन करने का वादा लेकर हमने होटल छोड़ा ।ये पाँच घंटे की बहुत ही उबाऊ व कठिन यात्रा थी ।मुन्नार से ऐल्लपि के लिए पहाड़ी रास्ता होने के कारण बहुत से मोड़ हैं । सड़कें बिलकुल टूटी फूटी हैं ।हिचकोले खाते हुए पाँच घंटे में हम ऐल्लपि पहुँच गए ।ऐल्लपि में सरकार द्वारा अरब सागर और केरल के समुद्री तट के बीच के बैक वाटर में एक हज़ार से भी अधिक हाउस बोट उतारी गई हैं, हमारे ट्रैवलिंग एजेंट ने उन्हीं में से ‘हरिनन्दनम ‘नामक एक हाउस बोट,जोकि ‘रिवरलेंड ‘कम्पनी की थी,हमारे लिए बुक की थी ।हाउस बोट में पहुँचते ही कष्ट प्रद यात्रा की सारी थकान मिट गई । हाउस बोट के प्रतिनिधि ने हमारा परिचय वहाँ के तीनों कर्मचारियों से करवाया । उन्होंने हमारा भव्य स्वागत किया ।हाउस बोट को ख़ूबसूरती से सजाया गया था,समझ लीजिए मानो पाँच सितारा होटल का कोई विशेष कमरा हो । पहुँचते ही उन्होंने लस्सी व जूस से हमारा स्वागत किया,थोड़ी देर बाद फल काटकर दिए ।उनमें से एक बोट चालक,दूसरा प्रमुख ख़ानसामा और तीसरा उसका मददगार था।किन्तु तीनों मिल-जुलकर काम कर रहे थे ।पूरे दिन बैक वाटर में बोट इधर से उधर तैरती रही, साथ में खाना -पीना भी चलता रहा ।
केरल में बहुत ही शानदार वाटर वे, खाड़ियाँ, झीलें,नहरें व नदियाँ हैं, यहाँ पानी का इतना बड़ा इंटर लॉकिंग नेटवर्क है कि हाउस बोट के द्वारा आराम से यात्रा की जा सकती है ।हाउस बोट की यात्रा करते समय बैकवाटर के किनारे लगे हुए पत्तेदार पौधे,झाड़ियाँ,पानी के बीच तैरते छोटे-छोटे फूलदार पौधे,किनारे-किनारे लगे खजूर के पेड़ पूरे माहौल को ख़ूबसूरती प्रदान कर रहे थे, सब कुछ हरा भरा था ,जिससे पानी का रंग भी तेज़ हरा दिखाई दे रहा था ।पानी के बीच बीच में पेड़ों के ठूँठ या झाड़ियों के बीच बैठे पक्षी एक लुभावना ही दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे । पूरे समुद्र में हाउस बोट ही हाउस बोट नज़र आ रहे थे ।यहाँ पर विदेशी पर्यटक बहुत बड़ी संख्या में दिखाई दे रहे थे ,जो अपने हाउस बोट के बरामदे में संगीत की धुन पर थिरक रहे थे ।हम सब हाथ हिलाकर एक दूसरे का अभिनन्दन कर रहे थे ।रात का अंधकार होते ही हाउस बोट रोक कर बाँध दी गई ।तब चालक ने हमें बताया कि अब मछुआरों के मछली पकड़ने का समय है, इसलिए हाउस बोट नहीं चल सकती ।रात के भोजन के लिए हमने शुद्ध शाकाहारी भोजन की माँग की, तो हमें तीन तरह की सूखी सब्ज़ियाँ,दाल ,रोटी ,चावल और सलाद परोसा गया, जो बहुत स्वादिष्ट बना था । रसोइये ने हमें बताया कि जो मांसाहारी होते हैं,उन्हें सब तरह का तटीय भोजन परोसा जाता है ।तटीय भोजन खाने वालों के लिए तो केरल स्वर्ग है ।
रात के भोजन के बाद चारों ओर जब घुप्प अँधेरा हो गया,तब हमने बैठक में रखे टीवी पर एक भूत वाली फ़िल्म लगाई ।धीरे-धीरे पहले राघव फिर स्मिता और फिर शालिनी वहाँ से उठकर अपने कमरे में जाकर बातें करने लगे ,लेकिन हम दोनों ने पूरी फ़िल्म देखी ।समुद्र के किनारे होने पर भी यहाँ बहुत गर्मी थी ।ए .सी .व पंखे रात भर चलते रहे ।समुद्र के पानी के थपेड़े व किनारे के पेड़ों की साँय- साँय एक भयावह संगीत प्रस्तुत कर रहे थे । सुबह के छह बजे हाउस बोट खुलकर फिर से समुद्र के चक्कर लगाने लगे ।हम लोगों ने उठकर दो -दो ग्लास गर्म पानी पिया,फिर नहा-धोकर तैयार हुए,तब तक अदरक की चाय तैयार हो चुकी थी, पहले ही दिन हमने रसोइये को अदरक की चाय के बारे में बता दिया था ।हम सबने एक साथ बैठ कर चाय पी । सुबह के नाश्ते में हमें तट्टे इडली ( बड़े आकार की इडली) , साम्भर और चटनी परोसी गई ।बाद में कॉफी प्रस्तुत की गई । नौ बजे हमें ‘कुमार कोम ‘के लिए निकलना था । उन तीनों कर्मचारियों को बुलाकर हमने उनका धन्यवाद किया, फिर मेरे पति ने उनके हाथ में टिप रखी ।पहले वे लेने को तैयार नहीं हो रहे थे, तो हमने उन्हें समझाया कि जाते समय हाथ में चुंगी रखना हमारे वहाँ का रिवाज है ,तो वे मान गये ।
ठीक नौ बजे हमारा ड्राइवर शाजी हमें लेने आ गया । हाउस बोट के तीनों कर्मचारी हमारा सामान लेकर टैक्सी तक छोड़ ने आए ,उनसे बिछुड़ते हुए हमें ऐसा लग रहा था,मानो अपनों से बिछुड़ रहे हों । ऐल्लपि से कुमारकोम केवल डेढ़ घंटे का ही रास्ता है,किन्तु सड़कें इतनी टूटी फूटी और ऊबड़ खाबड़ हैं कि थोड़ी ही देर में हम सब पस्त हो गए । केवल राघव हमारा मनोरंजन करता रहा ।उसके द्वारा बनाया गया एक रैप “ओऽऽऽ नारायणा, वासुदेवा ,गगनम कृष्णा “सुनते हुए हम कुमारकोम के ‘लेक साँग ‘ रिजॉर्ट पहुँच गए ।बेम्बानद झील के शांत किनारे पर बसा हुआ कुमारकोम एक छोटा सा क़स्बा है , बैक वाटर का जो सबसे चौड़ा हिस्सा है,यह इसी के किनारे में है ।यहाँ पर पहुँचते ही हमारा स्वागत बिलकुल भारतीय पद्धति से,माथे पर चंदन लगा कर किया गया ।यहाँ पर अधिकतर सैलानी विदेशी थे ,जो ग्रुप्स में आ -जा रहे थे ।हम लोग सुबह के साढ़े दस बजे ही रिजॉर्ट में पहुँच गए थे,इस लिए होटल में चैक इन करने के लिए बारह बजे तक रुकना पड़ा ।तब तक उन्होंने हमारे लिए शानदार स्वागत कक्ष खोल दिया ,किन्तु वहाँ बैठने से अच्छा हमने समुद्र के किनारे टहलना अधिक उचित समझा,वहाँ की ठंडी हवा ने हमारा स्वागत किया ।
मीलों दूर तक फैले समुद्री पानी रिजॉर्ट्स के किनारे खड़े ताड़ के पेड़ वातावरण को सुरम्य वना रहे थे ।वहाँ हमने कुछ देर ठंडी हवा का आनंद लिया,फिर राघव को लेकर बच्चों के पार्क में समय बिताया ,तब जाकर होटल की पहली मंज़िल के दो कमरे हमें रहने को मिले ।हमने दिन का भोजन कमरे में ही मँगवाया,भोजन के बाद थोड़ी देर आराम करके बच्चे लोग स्विमिंग के लिए निकले,हम लोगों ने पूल के किनारे बैठ कर स्विमिंग,बोटिंग,फ़िशिंग और साइट सिइंग का आनन्द उठाया ।वहाँ से लौटते समय हम अपना कैमरा स्विमिंग पूल में ही भूल आए ।शाम का समय हो चला था,तभी मुझे ध्यान आया कि यहाँ का सूर्यास्त बहुत सुंदर होता है,क्यों न सूर्यास्त की फ़ोटो ली जाए,देखा तो कमरे में कैमरा तो है ही नहीं,हम दोनों ही स्विमिंग पूल की ओर दौड़ पड़े,तब तक देखा कि एक गुजराती परिवार,जिनके बच्चों के साथ राघव स्विमिंग करते हुए बॉल खेल रहा था, हमारा कैमरा होटल के ऑफिस में जमा करवा रहा था, हमें देखते ही उन्होंने कैमरा हमें पकड़ाया ,उन्हें धन्यवाद देकर हम सूर्यास्त देखने समुद्र (बैक वाटर) के किनारे दौड़े।मेरी बड़ी बेटी स्मिता ‘शिरोधारा ‘ के लिए गई थी ।( यह केरल का एक प्रसिद्ध मसाज होता है, जो सर के ऊपर एक मटके से तेल टपकाकर किया जाता है ।
यहाँ का सूर्यास्त बहुत ही खूबसूरत था ।उस समय होटल के सारे पर्यटक होटल के लॉन में सूर्यास्त देखने के लिए एकत्रित थे ।वहाँ हमारी दोस्ती एक चीनी परिवार से हो गई ।वह चीनी महिला दिल्ली में चीनी दूतावास में काम करती हैं ।उनका परिवार बीजिंग में रहता है ।हम लोगों ने एक दूसरे के परिवारों की बहुत सी फ़ोटो खींचीं । राघव को चीनी भाषा आती है ,इसलिए उनके बच्चों के साथ उसकी दोस्ती हो गई ।रात्रि भोजन के लिए हम सब साथ ही भोजन कक्ष में एकत्रित हुए,कॉन्टिनेंटल भोजन था ,सबने उसका खूब आनंद उठाया,लेकिन हम शाकाहारियों के लिए कुछ ख़ास नहीं था ,क्योंकि यहाँ भी तटीय व्यंजन अधिक मात्रा में थे ।भोजन के बाद रात के दस बजे तक समुद्र के किनारे घूमते रहे ।सुबह कॉम्प्लिमेंट्री नाश्ता करे दस बजे कोच्चि के लिए रवाना हुए ।टैक्सी से पूरे तीन घंटे का रास्ता था ।
कोच्चि का पुराना नाम कोचीन है यह मध्य केरल में ब्रिटिश,डच व पुर्तगाली संस्कृति का मिश्रण है ।यह दुनिया के बेहतरीन बंदरगाहों में से एक है ।इसे अरब सागर की रानी के रूप में भी जाना जाता है ।यहाँ से हमें ख़रीदारी करनी थी। शाजी हमें वहाँ की मशहूर हैन्डलूम साड़ी की दुकान में ले गये ।वहाँ से हमने प्रसिद्ध केरल साड़ियाँ तथा कुछ मर्दानी धोतियाँ ख़रीदीं । केरल की एक प्रसिद्ध मिठाई की दुकान से वहाँ के प्रसिद्ध केले के चिप्स,मिठाइयाँ,केरल हल्वा,गुड़ की चिक्की और अन्य खाने की चीजें ख़रीदीं ।लगभग तीन बजे हम हवाई अड्डे पहुँचे ।शाजी को अच्छी टिप देकर विदा किया ।हवाई अड्डे में ही दिन का भोजन किया । हमारी फ़्लाइट चार बजे की थी। सब लोग थक गए थे ,इसलिए विमान में बैठते ही सो गये ।किन्तु मुझे नींद नहीं आई ।
मैं केरल के बारे में ही सोचती रही कि इतने प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण इस ख़ूबसूरत प्रदेश के युवा इतने पलायन वादी क्यों हो गये हैं ? यह प्रश्न बार बार उठकर मेरे मन को उद्वेलित करने लगा ।पूरे केरल में हम,जहाँ-जहाँ भी घूमे, अधिक भीड़ भाड़ नहीं दिखाई दी ।युवा चेहरे ख़ासकर युवक कम दिखाई दिये ,क्योंकि वे अधिकतर नौकरी करने के लिये खाड़ी देशों की ओर पलायन कर रहे हैं ।राज्य सरकार का दायित्व है कि वह इन युवाओं को अपने प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों की ओर ध्यान आकर्षित करके इनको व्यापार करने के लिए प्रेरित करे और इनका पलायन रोकने में अहम भूमिका निभायें । नहीं तो इतना सुन्दर और समृद्ध राज्य कहीं युवा विहीन न हो जाए ।यही सब सोचते-सोचते मुझे भी नींद ने आ घेरा ।अब सोचती हूँ कि प्रकृति के बीच में रहकर जो पल हमने वहाँ बिताए, वे हमेशा याद रहेंगे ।यह एक यादगार व खूबसूरत यात्रा थी और कभी मौक़ा मिला तो मैं फिर से ये यात्रा करूँगी ,क्योंकि किसी ने सच ही कहा है कि हम जितना प्रकृति के क़रीब रहते हैं, उतना ही अपनीं संस्कृति व जड़ों से जुड़े रहते हैं और जितना हम प्रकृति से कटते हैं,उतना ही हम ख़ुद से और अपनी संस्कृति से दूर हो जाते हैं ।
फोटो इंटरनेट से साभार