बी. डी. सुयाल
क्रोकोडाइल यानि मगरमच्छ एक डरावने सरीसृप हैं| इनके दर्शन मात्र से ही शरीर में सिहरन होने लगती है| ये डायनासोर के जमाने से पृथ्वी पर मौजूद हैं| जाहिर है मगरमच्छ 240 मिलियन वर्ष पुरानी प्रजाति है| इसके अंगों की विशिष्ट बनावट इसे जल और जमीन दोनों में सफलता पूर्वक जीवित रहने के लिए सक्षम बनाती है, यही इसकी लम्बी अवधि तक मौजूदगी का कारण है| मगरमच्छ शीत रक्त जीव हैं जो अपने शरीर के तापमान को बनाये रखने के लिए बाहरी ऊर्जा का प्रयोग करते हैं| अक्सर इसलिए ये नदी के किनारे रेत या जमीन पर धूप सेकते नजर आते हैं |
ये 30 से 70 साल तक जीवित रह सकते हैं | मादा 10- 60 अण्डे देती है लेकिन 90 फीसद बच्चे शिकारी जीवों के शिकार हो जाते हैं| इसलिए इनका संरक्षण एक बड़ी चुनौती रहती है| मगरमच्छ को पारिस्थितिकी तंत्र में ऊचे पायदान पर रखा गया है,ये नदी नालो, तालाबों से प्रदूषण दूर करने के साथ साथ जलीय जीवों की आवादी पर भी नियंत्रण रखते हैं| ये उत्तम दर्जे के शिकारी हैं| इनके जबड़े में 24 तीखे दांत होते हैं जो शिकार पकड़ने के काम आते हैं| एक बार इसके जबड़े में फसने पर बच निकलना लगभग नामुमकिन होता है| शिकार बगैर चबाये पूरा निगल लिया जाता है | उत्तराखंड में मगरमच्छ कार्बेट, नानकमत्ता, राजाजी तधा अन्य क्षेत्रों में पाये जाते हैं लेकिन इनके संरक्षण के लिए कोई बिशेष योजना प्रदेश में कहीं भी नहीं है| वर्ष 2021 में तराई पूर्व के वन मण्डल अधिकारी श्री संदीप कुमार की पहल पर खटीमा से 12 किमी दूर ककरा नाले में एक क्रोकोडाइल ट्रेल का निर्माण किया गया है| ककरा नाले के लगभग 1300 मीटर पर इंटरलिक चेन से बाढ़ बन्दी की गयी है ताकि वहाँ मौजूद मगरमच्छों को जैविक दबाव से मुक्त कर उनका संरक्षण किया जा सके| शैलानियौं की सुविधा के लिए वाच टावर, बैठने के लिए बैन्च व जानकारी के लिए इंटरप्रिटेशन केन्द्र बनाये गये हैं| पिछले दो वर्षों के प्रयास के काफी सकारात्मक नतीजे सामने आये हैं| पूरा इलाका प्लास्टिक तथा अन्य किस्म के प्रदूषण से मुक्त हो चुका है | मगरमच्छों की संख्या बढ़ कर 219 के करीब पहुँच गयी है| इतने मगरमच्छों का इस छोटी जगह में मौजूद होना एक अद्भुत संयोग है| भविष्य में इनका घनत्व चंबल नदी के मगरमच्छों के घनत्व से भी अधिक हो जाने की प्रबल संभावना है| ककरा नाले के किनारे वन गुज्जरों के डेरे हैं | वे वनों पर आधारित पशु पालन से अपना गुजरवसर करते हैं | बाढ बन्दी की वजह से वे भी अब काफी सुरक्षित महसूस कर रहे हैं| शैलानी काफी संख्या में रेत के ऊपर लेटे मगरमच्छों का लुत्फ़ उठाते हैं और साथ ही गुज्जरों के जीवन व उनके रहन सहन के वारे में भी जानकारी प्राप्त करते हैं| वन विभाग के इस प्रयास की जितनी तारीफ की जाय कम है| मुझे इस प्रयास को काफी नजदीक से देखने का अवसर मिला और काफी प्रभावित हुआ | उत्तराखंड में सरीसृप संरक्षण के क्षेत्र में यह पहला कदम है जिसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है| आने वाले समय में यह क्षेत्र प्रकृति प्रेमियों, जीववैज्ञानिकों के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र बनेगा|