कल 15 अगस्त 2021 को ‘नैनीताल समाचार’ ने अपने निरंतर प्रकाशन के 44 वर्ष पूरे किए। इस मौके पर शेखरदा (प्रो शेखर पाठक) ने सम्पादक राजीव लोचन साह को यह मेल भेजी- नवीन जोशी
कभी कभी विश्वास नहीं होता कि हम लोग 1977 में नैनीताल समाचार को जन्म लेते हुए देख रहे थे। हम सबके जीवन कुछ और होते नैनीताल समाचार के बिना। कितने सारे लोग याद आ रहे हैं। जो नैस के लेखक और सहयोगी रहे, अतिथि संपादक और अनुवादक रहे और चुपचाप मदद देने वाले रहे।
बाबा नागार्जुन, पहाड़ी, नित्यानंद मिश्रा, शिव प्रसाद डबराल, सखा दाज्यू , शेखर जोशी, शैलेश मटियानी, देवेन मेवारी, बटरोही, पुष्पेश पंत, विजय मोहन खाती, सुरेंद्र पुंडीर, देवेंद्र उपाधयाय, शमशेर बिष्ट, ताराचंद्र त्रिपाठी, चंद्रेश शास्त्री, वीरेन डंगवाल, कमल जोशी, अजय रावत, चंडी प्रसाद भट्ट, कवीन्द्र शेखर उप्रेती, सुंदरलाल बहुगुणा, राधा भट्ट, बृजेन्द्र शाह, मोहन उप्रेती, मदन भट्ट, प्रयाग जोशी, नरेंद्र नेगी, शेरसिंह पांगती, हेम चंद्र पाण्डे, कुंवर प्रसून, राजेंद्र धस्माना, दयानन्द अनंत, प्रताप शिखर, दिवा भट्ट, यशोधर मठपाल, यशवंत कटोच, सुरेंद्र शंकु, रमेश पहाड़ी, विजय जरधारी, चारुचंद्र पाण्डे, जिज्ञाशु, प्रभात उप्रेती, उमा भट्ट, धर्मानंद उनियाल पथिक, ॐ प्रकाश भट्ट, राजीब नयन बहुगुणा, रघुबीर चंद, पुरुषोत्तम असनोड़ा, नन्द किशोर हटवाल, आशुतोष उपाध्याय, अरुण कुकसाल, चंद्र शेखर तिवारी, गिरिजा पाण्डे, हीरा भाकुनी, नवीन जुयाल, केशव भट्ट, शम्भु राणा, रमेश कृषक, जहाँगीर, बी आर पंत, योगेश धस्माना, केवल ढल, अनिल कार्की आदि कितनों ने इसमें लिखा, रिपोर्टिंग की, फील्ड में गए। पता नहीं कितने सारे और नाम अभी जहन में नहीं आ रहे हैं। अनेक मित्र अपने खर्चे से रिपोर्टिंग को चले जाते थे। अनेक मित्र अपने मित्रों को सदस्यता उपहार देते थे। कभी कभी रात में समाचार के दफ्तर में रह कर भी लेख पूरे किये गए।
हरीश पंत, पवन राकेश, गिर्दा, गोविन्द राजू, नन्द किशोर भगत, देवेंद्र नैनवाल, आनंद उप्रेती, पलाश विश्वास, नवीन जोशी, राजेंद्र रावत, उमेश डोवाल, कपिलेश भोज, रमदा, दिनेश जोशी, पूरन बिष्ट , महेश जोशी, विनीता यशस्वी, मैडम सनवाल, नौटियाल, -कुछ लगातार और कुछ अलग अलग दौरों में जुड़े रहे। सबने अपनी भूमिका को वखूबी निभाया। सबने यहाँ से सीखा और अपना रोल अदा किया। नैनीताल समाचार और राजहंस प्रेस को धड़कन देने वालों में प्रेस कर्मचारी और विशेष रूप से आनंद मस्साप और बहुत सारे साथी याद आते है। दफ्तर को सबसे ज्यादा जीवंत किया हरीश पंत, गोविन्द और महेश जोशी ने। भगत दा, गिर्दा, नैनवाल जी और हम सभी कर्मचारी थे। सच कहो तो हमको भी अपनी गुलामी यहाँ आकर कम होती हुई लगती थी। गिर्दा और चंद्रेश कहा करते थे कि इस दफ्तर में हमारा सबसे ज्यादा बौद्धिक विकास हुआ। सच तो कहा।
नैनीताल समाचार ने अपनी स्वायत्तता बनाये रखी। संपादक और सहयोगियों के आंदोलनकारी बनने के बाद यह मुश्किल हो जाता है। पर नैनीताल समाचार ने बड़ी सीमा तक यह किया। असहमति की सदा जगह रही। कुछ लोगों को कम लग सकती है। 1978 -80 की याद जिनको होगी वे याद रखे होंगे कि किसी लेख पर कितनी बहस हो सकती थी। एक दौर ऐसा भी आया की पहले के अस्वीकृत लेख भी छपने लगे। पर नई सृजनात्मक लहरें लगातार और बार बार आती रही।
नैनीताल समाचार ने अलग से एक नागरिक समाज बनाने में भी योग दिया। इसे अधिकांश महानुभाव भूल ही जाते हैं। होली, निवंध प्रतियोगिता, उत्तराखंड बुलेटिन जैसे अनोखे प्रयोग किये। नैनीताल समाचार के पोस्टर, कैलेंडर भी नए प्रयोग थे। अकेले हरेले या होली अंक का विचार सभी को द्रवित कर जाता है। उत्तराखंड बुलेटिन इतना अधिक स्पष्ट और आक्रामक था की कांग्रेस और बीजेपी दोनों के स्थानीय नेताओं ने पुलिस से शिकायत की। वे इसके निरंतर पाठक भी थे।
नैनीताल समाचार अपना आर्थिक आधार नहीं खोज पाया। इतने शुभ चिंतकों के होने पर भी वह एक बीज राशि नहीं इकठा कर पाया। न साप्ताहिक का रूप ले सका और नहीं नया पाठक वर्ग जुटा पाया। नए ज़माने में वह नई जुम्बिश तो कर रहा है। नई पीढ़ी के कुछ ज्यादा लोग शायद इसको नया रूप दे सकें। सम्भावनायें अभी भी अनंत हैं। सच में आर्थिक कारणों से अख़बार बंद नहीं होते पर बहुत अधिक गति भी नहीं पकड़ पाते।
एक बार नैनीताल समाचार के साथियों और शुभ चिंतकों को मंथन करना चाहिए। अर्ध शताब्दी से पहले नैनीताल समाचार नए रूप में प्रकट होना चाहिए और उसकी तयारी करनी चाहिए। पता नहीं तब तक हम टेक्नॉलजी के कितने गुलाम हो चुके होंगे। एक साथ राजनैतिक, कॉर्पोरेट और तकनिकी नेताओं को झेल रहे होंगे। पर मानव प्रतिरोध की भट्टी कोई माई का लाल बुझा नहीं पाया है।
पुनः बधाई और शुभकामनायें
आजादी और अख़बार की सालगिरह सबको मुबारक।
आपका
शेपा