महीपाल सिंह नेगी
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने एनटीपीसी को 58 लाख रुपए का जुर्माना जमा करने का आदेश दिया है। यह जुर्माना उत्तराखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गत वर्ष तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना में धौली गंगा घाटी में प्रदूषण फैलाने और बेतरतीब ढंग से मलवा निस्तारण पर लगाया था। जिसके खिलाफ एनटीपीसी ने हरित प्राधिकरण में अपील की थी
गत दिवस 18 फरवरी को हरित न्यायाधिकरण ने आदेश पारित किया कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा एनटीपीसी पर उचित ही जुर्माना लगाया गया है। क्योंकि उसने मलवा निस्तारण के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया और मनमानी की। यहां तक कि न्यायाधिकरण में खुद ही स्वीकार कर दिया कि उससे गड़बड़ी हुई है। एनटीपीसी ने मलवा प्रबंधन के लिए एक चार्ट हरित प्राधिकरण के सम्मुख प्रस्तुत किया।
पूरे मामले को इस तरह से समझते हैं – जिस तपोवन विष्णु गाड परियोजना में इसी माह ऋषि गंगा की बाढ़ से भारी तबाही हुई। अनेक लोग सुरंगों में दफन हो गए, का काम एनटीपीसी द्वारा किया जा रहा है। शिकायतें सामने आने पर गत वर्ष राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम ने 29 जून 2020 और फिर 23 – 24 अक्टूबर 2020 को परियोजना स्थल का निरीक्षण किया था और पाया कि एनटीपीसी सुरंग और अन्य स्थानों से निकले मलबे का बेतरतीब ढंग से डंपिंग कर रहा है।
निर्धारित गाइडलाइन का पालन न करने पर बोर्ड ने एनटीपीसी को प्रदूषण फैलाने और मलवा निस्तारण में मनमानी का दोषी पाया और 7 दिसंबर 2020 को 57 लाख 86 हजार का जुर्माना लगा दिया। मलवा निस्तारण सुधारने की बजाय, बोर्ड के इस आदेश के खिलाफ एनटीपीसी राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में अपील लेकर गई। जहां एनटीपीसी ने स्वयं ही मान लिया कि मलवा निस्तारण में उसके स्तर पर लापरवाही हुई है। इसे समयबद्ध ठीक करने के लिए एक चार्ट उसने हरित प्राधिकरण में प्रस्तुत किया और कहा कि मई से अगस्त 2021 के बीच वह मलवा निस्तारण को व्यवस्थित कर देगा।
आप जानते ही हैं कि इस बीच एनटीपीसी की इसी परियोजना में इसी माह 7 तारीख को भारी तबाही हो गई। 18 फरवरी को न्यायाधिकरण ने आदेश पारित किया और एनटीपीसी की अपील संख्या 5 /2021 को खारिज करते हुए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में जुर्माना जमा करने का आदेश कर दिया। इस जुर्माने से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तपोवन विष्णुगाड घाटी में परियोजना के मलवा डंपिंग को दुरुस्त करेगा। आदेश न्यायाधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदेश कुमार गोयल व सदस्य एस के सिंह तथा डॉ नागिन नंदा ने पारित किया है।
इस आदेश से यह साबित होता है कि बांध बनाने वाली कंपनियां किस तरह की मनमानी करती हैं। सुरंगों और साइट डेवलेपमेंट से निकले मलवे को बेतरतीब कहीं भी लुढ़का देते हैं, खासकर नदियों में उड़ेल देते हैं। यही मलवा आपदा के समय और भी कयामत लेकर आता है। केदारनाथ आपदा के समय भी यही सब हुआ लेकिन जानलेवा अपराधिक लापरवाही लगातार जारी है।