केशव भट्ट
अभी पिछले दिनों की बात है ये, शादी के बाद दुल्हा-दुल्हन तहसील में रजिस्ट्रार के आफिस में रजिस्ट्रेशन के लिए गए तो वहां निबंधक ने कोतवाल की सी टेढ़ी नजर से सभी को इस तरह से घूरा जैसे उन्होंने बहुत बड़ा अपराध किया हो. टेबल में उनके सामने कांगजात रखे तो उड़ती सी नजर ड़ाल उन्होंने उस पर दो-एक आपत्ति लगाकर किनारे को सरका दिया. हाईस्कूल का सार्टिफिकेट, उत्तराखंड का स्थायी निवास प्रमाण पत्र नहीं हैं..
आनन-फानन में उन्हें मेल से मंगाकर फिर से उनके सामने रखा तो, ‘शांदी दूसरे जिले में हुवी है.. इसका रजिस्ट्रेशन उसी जिले में होगा यहां नहीं..’ कह फार्म फिर से सरका दिया. उनका इस तरह से गुस्सा जायज भी था. उनके ‘शनिदेव मंदिर’ में कोई बकरे को लाए और फूल चढ़ाकर निकलने की बात कहे तो उनका पारा चढ़ना ही था. जबकि बीते सांय चढ़ावे में साढ़े तीन के चढ़ावे की बात तय हो गई थी. मोटे चढ़ावे के नाम पर रातभर बमुश्किल ही वो सो पाए थे. क्या-क्या सपने देख ड़ाले थे…. ‘कमाई भी कम होते जा रही है और घर से नए सामान की डिमांड आई है.. घरवाले भी समझते हैं नहीं कि अब जमीनों की रजिस्ट्ररी भी मंहगाई की वजह से कम हो गई है.. हर कोई साला नेतागिरी करने में लग जाता है.. उप्पर से रिटायमेंट के दिन भी नजदीक आ रहे हैं.. वो तो मेरा पुराना अनुभव हुवा, नहीं तो ये नए छोकरे कमा के दिखा दें जरा मेरे बराबर.. दो ही दिन में सस्पेंड हो जाएंगे..’
उस दिन साहब वक्त से पहले ही अपने ‘शनि मंदिर’ पहुंच बेसब्री से चढ़ावे का इंतजार कर रहे थे. बाहर गुनगुनी धूप का लालच भी उनके ईमान को डगमगा नहीं पा रहा था. और अब बकरा कत्थक कर जाने की बात कर रहा था तो उनका पारा आठवें आसमान पर जाना लाजमी ही था. उनके सपने छन्न हो मंदिर में बिखर से गए थे. ‘शनिदेव मंदिर’ के पुजारी की बेरूखी की बात जब सीडीओ साहब को पता चली तो उनका मानना था कि चढ़ावे के सांथ ही मंदिर के बड़े पुजारी को सूचित कर दोनों को सांथ-सांथ ‘शनिमंदिर’ भेज दिया जाए तो अच्छा निदान हो सकता है. लेकिन जैसे ही ये बात एसडीएम साहब को पता चली तो उन्होंने आनन-फानन में ‘हॉट-लाइन’ में ही पुजारी का ‘साप्ताहिक श्राद्व’ कर डाला. बड़े पुजारी के प्रवर्चनों के बाद ‘शनिदेव’ के पुजारी ने तुरंत ही दसेक मिनट में सारा काम निपटा, बकरेरूपी बला को विदा करने में ही अपनी भलाई समझी.
ये व्यंग नहीं बल्कि हमारे उन जनसेवकों की एक कड़वी सच्चाई है, जो अपनी तनख्वाह के वजाय बाहर की आमदनी को अपना जायज हक मान बैठे हैं और जनता को भ्रष्टाचार की उनकी इस कुव्यवस्था को झेलने के लिए मजबूर कर देते हैं. कुछेक हिम्मत कर शिकायत भी करते हैं तो उन्हें इतना परेशान कर दिया जाता है कि वो फिर कभी इसके खिलाफ आवाज उठा ही नहीं पाते हैं. अब एक छोटा सा उदाहरण ही ले लें.
हिंदुस्तान के हर कोने-कोने का विकास हो इसके लिए केन्द्र सरकार ने लगभग 135 से ज्यादा सरकारी योजनाएं लागू की हैं. कुछ योजनाएं वर्तमान सरकार ने शुरू की हैं और कुछेक पुरानी सरकार की बंद-चालू योजनाओं को नाम बदलकर दोबारा से शुरू किया गया है. इन योजनाओं की सफलता के बारे में प्रिंट समेत इलैक्ट्रानिक मीडिया इस तरह से बखान करता है कि जैसे हिंदुस्तान में अब हर कोई सुख-चैन से रह रहा है. भूख, गरीबी, बेरोजगारी सहित अन्य जरूरी मुद्दे सब सुलझ गए हैं, कुछेक रह गए हैं तो वो भी जल्द ही सुलझ जाएंगे. उसके बाद हर जगह अमन-चैन हो जाएगा और भारत विश्वगुरू बन जाएगा.
प्रधानमंत्री आवास योजना, मुद्रा योजना, जन धन योजना, उज्ज्वला योजना, अटल पेंशन योजना, स्टार्टअप इंडिया और प्रधानमंत्री कौशल विकास सहित सैकड़ो ऐसी योजनाएं हैं जिना सीधा-सीधा लाभ भारत की जनता को मिलने लगा है. अभी डिजिटल ग्राम योजना पर काम चल रहा है. इस अभियान का मकसद भारत को एक इलेक्ट्रॉनिक अर्थव्यवस्था में बदलना है. और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके तहत देश के सभी गांवों और ग्रामीण इलाकों को इंटरनेट नेटवर्क से जोड़ना है. ताकि सभी सरकारी विभाग और भारत की जनता एक दूसरे से डिजिटल रूप से या इलेक्ट्रॉनिक तौर पर जुड़ जाएं तो प्रभावी प्रशासन चलाया जा सके और लाल फीताशाही खत्म हो जाएगी.
डिजिटल ग्राम योजना के तहत आजकल गांवों में आप्टिकल फाइबर बिछाने का काम चल रहा है. इसके लिए ब्राड बैंड निगम लिमिटेड सरकारी कंपनी काम करा रही है. इसके लिए कुमाउं में ही लगभग एक अरब के टेंडरों पर तीन कंपनियां काम कर रही हैं. बीएसएनएल को केबिल का, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज को इक्यूप्मेंट का तथा रेलवे को फाइबर केबल को अंडर ग्राउंड करने का ठेका दिया गया है. तीनों कंपनियों में उच्चस्तर से लेकर नीचले स्तर तक कमीशन के लिए मारामार हो रही है. ज्यादातर उपकरण इतनी निम्न गुणवत्ता के लगाए जा रहे हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि यह योजना शुरू होने के कुछेक दिनों बाद ही औंधे मुंह गिर जाएगी.
वैसा ही कुछ ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत गांवों की सीमा के बाहर लगे बोर्ड ‘शौचालय मुक्त गांव’ की तस्वीर गांव के अंदर जाने के बाद ही पता चलती है, जब गांव वालों से टॉयलट किधर है पूछने पर वो दाएं-बाएं खेतों के किनारों की ओर ईशारा कर देते हैं. ग्रामीण विद्युतीकरण के नाम पर पिंडरघाटी के दर्जनों गांवों में बिजली के पोल खड़े हैं लेकिन बिजली है कि आज तक आई ही नहीं.
अब चाहे वो उज्ज्वला योजना हो, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना हो, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना हो इन जैसी सैकड़ों योजनाओं में हर जगह कमीशन के खेल में फर्जी नामों के नाम पर लाखों-करोड़ों के वारे-न्यारे हो रहे हैं. सिस्टम में जो ईमानदार बनने की कोशिश करता है उसे ऐसी जगह पटक दिया जाता है जहां कोई काम ही नहीं हो. कमीशन के इस खेल में राजनीतिज्ञों के सांथ ही समूचा सिस्टम जुटा पड़ा है. और दोनों सिस्टम बखूबी कबीर की बात अपने अर्थों में सच साबित कर जनता को पीसने की होड़ में जुटे पड़े हैं…
चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोए.
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए.