सरकारी नीतियों में खामी और अनदेखी के चलते टेक्सटाइल इंडस्ट्री बर्बादी के कगार पर. इसको लेकर अख़बार में विज्ञापन प्रकाशित हो रहे हैं.
बसंत कुमार
मंगलवार यानि 20 अगस्त की सुबह भारत में एक नई चीज सामने आई. शायद भारत के इतिहास में ऐसा पहली दफा हुआ है. आज तक अख़बारों में नौकरियों के लिए विज्ञापन छपते रहे हैं, लेकिन मंगलवार को ‘भारतीय कताई उद्योग गहरे संकट में, बड़े पैमाने पर जा रही नौकरियां’ शीर्षक से विज्ञापन प्रकाशित हुआ है.
नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन (एनआईटीएमए) द्वारा जारी इस विज्ञापन में बताया गया है कि भारतीय कताई उद्योग भारी मंदी से गुजर रहा है जिसकी वजह से काफी संख्या में लोगों की नौकरियां जा रही हैं. लगभग आधे पृष्ठ में छपे इस विज्ञापन में कताई उद्योग में आई मंदी के कारणों का भी जिक्र किया गया है. बुधवार यानि 21 अगस्त को एनआईटीएमए एक बार फिर से पूरे पृष्ठ का विज्ञापन देकर कताई उद्योग की स्थिति को कैसे बेहतर किया जा सकता है, इसके लिए सुझाव दिया है.
एनआईटीएमए, उत्तर भारत के सूती मिलों का संगठन है. इसका मुख्य कार्यालय चंडीगढ़ में स्थित है. अपने पहले विज्ञापन में एनआईटीएमए ने बताया है कि कताई उद्योग की स्थिति 2010-11 में आई बड़ी आर्थिक मंदी की तरह ही हो गई है. सूती धागे के निर्यात में लगातार गिरावट आ रही है. आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2018 में लगभग 24 अरब 11 करोड़ रुपए का सूती धागे का निर्यात हुआ था जो अप्रैल 2019 में घटकर लगभग 19 अरब रुपए तक आ गया. इस अवधि में 21 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई. गिरावट की प्रक्रिया मई और जून महीने में भी देखी गई. मई 2018 में लगभग 24 अरब रुपए के सूती धागे का निर्यात हुआ था जो इसी अवधि में साल 2019 में घटकर लगभग सवा 17 अरब रुपए रह गया. यानि इस अवधि में 30.8 प्रतिशत निर्यात का अंतर देखने को मिला. जून 2018 में करीब 27 अरब रुपए के सूती धागे का निर्यात हुआ था जो 2019 की इसी अवधि में साल घटकर लगभग 13.5 अरब रुपए रह गया. मतलब पूरे 50 प्रतिशत की कमी.
अब जब निर्यात में लगातार गिरावट आ रही है तो उत्पादन में कमी आएगी ही जिसका असर टेक्सटाइल मिलों पर देखने को मिल रहा है. एनआईटीएमए के उपाध्यक्ष मुकेश त्यागी न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं कि एक तिहाई मिलें बंद हो चुकी हैं. इससे लाखों परिवारों पर असर पड़ रहा है.’’
ऐसी स्थिति क्यों बनी
टेक्सटाइल उद्योग की बदहाली साल 2016 में मोदी सरकार द्वारा किए गए नोटबंदी के समय से ही शुरू हो गई. एनआईटीएमए से जुड़े एक वरिष्ट अधिकारी राजीव सक्सेना (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “नोटबंदी की वजह से जो बर्बाद हुए वे तो उठ ही नहीं पा रहे हैं. वे खत्म हो गए. नोटबंदी की वजह से तो काफी लोग बेरोजगार हुए. आपने देखा होगा कि गुजरात के सूरत और देश के कई राज्यों में काम करने वाले लाखों मजदूर बिहार-यूपी लौट गए. लेकिन ऐसा नहीं की आज जो स्थिति है उसकी वजह नोटबंदी ही है, लेकिन वो एक शुरुआत ज़रूर थी.”
राजीव सक्सेना टेक्सटाइल उद्योग की बदहाली का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘‘विज्ञापन में तो हमने लगभग सब कुछ लिख ही दिया है. पहले विज्ञापन में हमने डेटा के साथ सरकार को बताया कि निर्यात में लगातार गिरावट आ रही है. भारतीय कॉटन के दामों में लगातार वृद्धि हो रही है. पहले लोग मिल्स सिर्फ रविवार को बंद करते थे, लेकिन अब ज्यादातर जगहों पर शनिवार को भी बंद करने लगे हैं. इस स्थिति का असर इस उद्योग से जुड़े तमाम लोगों पर सीधे पड़ रहा है. हम सिर्फ नॉर्दर्न इंडिया की बात कर सकते हैं, लेकिन ये स्थिति पूरे देश की है.’’
राजीव आगे कहते हैं, ‘‘लेकिन अभी जो स्थिति है उसके कई कारण हैं. एक बड़ा कारण चीन और अमेरिका के बीच चल रहा व्यापारिक युद्ध है. चीन एक बड़ा निर्यातक देश है. जो भारत से निर्यात करके अमेरिका में बेचता था. वो हमसे काफी धागा लेता था, लेकिन अब जब वो खुद अमेरिका में अपनी चीजे नहीं बेच पा रहा तो वो हमसे निर्यात करना बंद कर दिया. चीन हमसे जो धागे लेता था उसमें 40 से 50 प्रतिशत की कमी आ गई है.”
दूसरा सबसे बड़ा कारण ये है, ‘‘केंद्र सरकार ने चार साल पहले कह दिया कि हम धागा बनाने के लिए मिल्स को सब्सिडी नहीं देंगे. पहले ज्यादा मात्रा में धागा तैयार करने के लिए सरकार सब्सिडी देती थी, लेकिन बाद में सरकार का कहना था कि अभी यहां धागा बनाने की क्षमता ज्यादा है इसलिए हम सब्सिडी बंद कर रहे हैं. लेकिन इसके बाद गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगना जैसे राज्य की सरकारों ने अपने यहां अलग-अलग रूप में सब्सिडी देना शुरू कर दिया. जिस वजह से मार्केट तबाह हो गया. यहां जो उत्पाद तैयार होता था वो उन राज्यों, जहां सब्सिडी नहीं मिलती उनके बनिस्बत सस्ता मिलता था. क्योंकि उनको लागत कम आ रही थी. मुझे लगता है कि इसके लिए कोई राष्ट्रीय नीति होनी चाहिए जो है नहीं.’’
राजीव आगे कहते हैं, ‘‘आज देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है. लेकिन हर जगह पर ऑटोमोबाइल या दूसरे क्षेत्र की बात हो रही है. टेक्सटाइल उद्योग की तो कोई बात ही नहीं कर रहा है. जबकि ये रोटी कपड़ा मकान से जुड़ा है. हम इसके लिए लगातार सरकार के लोगों से मिलते रहे. उनके सामने प्रेजेंटेशन दिया. लेकिन कुछ हो नहीं रहा था. स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी तो जल्दी से इस पर नजर जाए इसलिए हमें ये निर्णय लेना पड़ा.’’
कपास की खेती करने वाले किसानों पर असर
भारत में पैदा होने वाले कॉटन की कीमत काफी ज्यादा है. जिसका जिक्र अखबार में प्रकाशित विज्ञापन में भी किया गया है. ज्यादा कीमत होने के कारण मिल उन्हें खरीदने की स्थिति में नहीं हैं. अगर ये सिलसिला जारी रहा और लगातार टेक्सटाइल उद्योग हानि में रहा तो इसका असर किसानों पर भी पड़ेगा.
किसानों पर होने वाले असर के बारे में राजीव कहते हैं, ‘‘अगर भारतीय किसानों की कॉटन 25 प्रतिशत महंगी है तो जिसको मिल चलानी है वो बाहर से कॉटन मंगाएगा क्योंकि बाहर से सस्ता में मिल जाएगा. फिर यहां के कॉटन का क्या होगा? कोई नहीं खरीदेगा, सरकार ही खरीदेगी. सरकार जो खरीदेगी उसको अपने पास तो रखेगी नहीं. उसे भी वो बाहर भेजने की कोशिश करेगी, जिसे कोई खरीद नहीं सकता है. क्योंकि बाहर इससे सस्ता है. तो ऐसे में जो टैक्सपेयर हैं उनका ही नुकसान होगा. सरकार ने अगर किसान के उस बेटे को सुरक्षित किया जो कंपनी में काम कर रहा है तो किसान को मार पड़ेगी और अगर किसान को सुरक्षित किया तो उसके बेटे को मार पड़ेगी.’’
सरकार से क्या है मांग
एनआईटीएमए के उपाध्यक्ष मुकेश त्यागी न्यूज़लॉन्ड्री से बताते हैं, ‘‘सरकार से हमारी तीन मांगे हैं. अगर सरकार इसे मान जाती है तो टेक्सटाइल उद्योग शायद ठीक से सांस ले पाएगा. पहला हम चाहते हैं कि भारत में कच्चे माल की कीमत बाज़ार भाव के बराबर हो जोकि अभी काफी ज्यादा है. दूसरा ब्याज दर में कमी की जाए. तीसरा जीएसटी के साथ जोड़कर जो हमसे टैक्स लिया जा रहा है, जैसे की पेट्रोलियम पर टैक्स, मंडी टैक्स और बिजली पर एक्स्ट्रा लिया जाता है, वो ना लिया जाए. टेक्सटाइल उद्योग में बिजली की खपत काफी ज्यादा है. एक किलो धागा बनाने में तीन चार यूनिट बिजली का खर्च आता है. इन तमाम चीजों में रियायत दी जाए.’’
एनआईटीएमए ने बुधवार को जारी अपने दूसरे विज्ञापन में सरकार को चार सुझाव दिया है.
. केंद्रीय और राज्य कर के उन्मूलन की योजना में सूत और मिश्रित धागे को भी शामिल किया जाय.
. सूत के निर्यात को ब्याजमुक्त किया जाए.
. सरकार किसानों को कपास के एमएसपी और बाज़ार भाव के बीच के अंतर का भुगतान करे. सीधे बैंक ट्रांसफर के जरिए ऐसा कर सकते हैं. सीसीआई और नाफेड कपास के बीज एमएसपी के हिसाब से खरीदते हैं नतीजतन शोधित कपास की कीमत बढ़ जाती है, इसके चलते विश्व बाजार की तुलना में कच्चे माल की कीमत बढ़ जाती है. इसलिए इस व्यवस्था को किसान के हाथ में सीधे पैसा ट्रांसफर करके बदलना चाहिए.
. कताई उद्योग को तत्काल प्रभाव से उनके बैंक लोन की किस्तें अदा करने से अगले दो साल तक के लिए राहत दी जाय.
मुकेश त्यागी कहते हैं, ‘‘सरकार के लोगों इस मामले पर बात हो रही है, लेकिन हम चाहते है की सरकार इसे और ज्यादा गंभीरता से ले और हमारे लिए कुछ बेहतर करे.’’
सरकार की नाराजगी का डर नहीं
केंद्र सरकार बेरोजगारी के आंकडें छुपा रही है. लोकसभा चुनाव 2014 के प्रचार के दौरान हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने की बात करने वाली बीजेपी सत्ता में दूसरी दफा आने के बाद भी नहीं बता रही है कि अपने अब तक के शासन काल में सरकार ने कितने लोगों को रोजगार दिया है.
सरकार बेरोजगारी को स्वीकार नहीं कर रही ऐसे में विज्ञापन छापकर आपने सरकार से नाराजगी मोल ले ली है. इस सवाल के जवाब में मुकेश त्यागी कहते हैं, ‘‘हमने अपने विज्ञापन के जरिए सरकार को सच बताने की कोशिश की और उनसे स्थिति को बेहतर करने की अपील की है. इसमें सरकार से डरने की क्या बात है. हम चाहते हैं कि हम भी जिंदा रहे हैं और हमारे यहां काम कर रहे मजदूर भी जिंदा रहे. सारे बैंकों के पैसे लुटाकर हम सरकार के पास जाएं तो क्या फायदा होगा. हम चाहते हैं कि मिल चलें ताकि लोगों को रोजगार भी मिलता रहे और बैंकों का पैसा भी सुरक्षित रहे. इसमें कुछ गलत नहीं है. हमारा मकसद सिर्फ और सिर्फ टेक्सटाइल उद्योग को बचाना है. कोई राजनीतिक मंशा नहीं है.’’
हिन्दी वैब पत्रिका ‘न्यूज लॉड्री’ से साभार