‘सन्नाटा इतना घना है कि घरों के भीतर से ड्रोन के पंखों की आवाज़ सुनी जा सकती है’
राहुल कोटियाल
शुक्रवार का दिन है. श्रीनगर एयरपोर्ट पर दोपहर की नमाज़ पढ़ी जा रही है. इसमें अधिकतर एयरपोर्ट के कर्मचारी और कुछ यात्री शामिल हैं. इनसे कुछ ही दूरी पर दर्जनों लोग अपने सामान के साथ वैसे ही बैठे हुए है जैसे अक्सर हम देश के तमाम रेलवे स्टेशनों पर देखते आए हैं. इसमें से ज्यादतर गैरकश्मीरी लोग हैं जो जल्द से जल्द कश्मीर से बाहर जाना चाह रहे हैं. आज पांचवां दिन है जब कश्मीर का सम्पर्क बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ है. इंटरनेट, मोबाईल और लैंडलाइन सब ठप पड़े हुए है. एयरपोर्ट पर जो लोग किसी अपने का इंतजार कर रहे हैं वो आने वाले यात्रियों से पूछ रहे है कि आपकी फ्लाइट दिल्ली से कितने बजे निकली थी. इससे वे अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके लोग कश्मीर कितनी देर में पहुंच रहे होंगे.
इस आकलन के अलावा यहां के लोगों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है कि वो अपने परिजनों, रिश्तेदारों से सम्पर्क साध सके. उन्हें बस इतना पता है कि वे जिनको लेने आए है वो अमुख फ्लाइट से आने वाला था. ये सूचना उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति से मिली है जो एक-दो दिन पहले ही वहां से लौटा है जहां से इनके लोग आज लौट रहे हैं.
कश्मीर से निकल रहे लोगों के एयर टिकट बुक करने का एक मात्र तरीका विमान कंपनियों के दो काउन्टर हैं जो एयरपोर्ट पर खुले हैं. यहां पर टिकट सिर्फ नकद पैसे लेकर बुक हो रही है. कैशलेस भारत के इस हिस्से में फ़िलहाल बिना कैश के कुछ भी संभव नहीं है और कैश बहुत तेजी से खत्म हो रहा है. लेकिन एयरपोर्ट पर लगी एक एटीएम से फिलहाल कैश निकल रहा है और यहां मौजूद लोगों के लिए यह एक बड़ी राहत की बात है.
एयरपोर्ट के भीतर की ये चहल पहल बाहर निकलते ही पूरी तरह थम जाती है. एयरपोर्ट परिसर से निकलते ही वो छवि आंखों से सामने दिखती है जो कर्फ्यू का नाम सुनते के बाद किसी के भी दिमाग में बनती है. खाली सड़कें, बंद दुकानें, दूर तक फैला सन्नाटा और चप्पे-चप्पे पर तैनात सुरक्षा बल. बंदूक ताने एक जवान की दूसरे जवान के बीच की दूरी बमुश्किल 20 फीट है और ये जवान सड़क के दोनों ही तरफ तैनात हैं. ऐसे कई जवानों को पार करने पर इक्का दुक्का गाड़ियां सड़क पर नज़र आती है.
एयरपोर्ट से थोड़ा ही आगे बढ़ने पर ये तनाव और बढ़ता नजर आता है. यह हैदरपुरा है, यहां सुरक्षा बल ज्यादा संख्या में तैनात किए गए हैं. सड़क से लगती गलियों को कटीली तारों से बंद कर दिया गया है और ऐसी हर गली के बाहर सुरक्षा बलों के बंकर बनाए गए है. यह जुमे का दिन है लिहाजा दोपहर के नमाज़ के लिए इक्का दुक्का लोग मस्जिदों में पहुंचे हैं. लेकिन ये वही लोग हैं जिनके घर मस्जिदों से बेहद करीब हैं. मस्जिद वाली कुछ गलियों से पत्थरबाजी भी हो रही है लिहाजा यहां किसी भी गाड़ी को रुकने की अनुमति नहीं है.
कुछ आगे बढ़ने पर सड़क किनारे ऐसी गाड़ियां खड़ी दिखती हैं जिनमें सब्जी लादकर लाई गई है. ऐसी ही कुछ गाड़ियों में भेड़ें भी भरकर लाई गई हैं क्योंकि तीन दिन बाद ही ईद का त्यौहार आने वाला है. लेकिन इन गाड़ियों के आसपास ग्राहक नज़र नहीं आए, और सुरक्षा बल बेहद ज्यादा. इसी हाई-वे पर कुछ आगे बढ़ने पर पारिमपोरा क्रॉसिंग आती है, यहां से एक सड़क लाल चौक को कटती है जबकि एक सड़क सोपोर, बारामुला और उरी की तरफ निकलती है. अमूमन श्रीनगर से बारामुला तक का किराया सौ रुपया प्रति सवारी होता है, लेकिन आज एयरपोर्ट से क्रासिंग तक का किराया ही तीन सौ रुपए प्रति व्यक्ति वसूला जा रहा है. इस पर स्थानीय निवासी टैक्सी वालों को कोस भी रहे है कि इन हालात में भी टैक्सीवाले अपने ही लोगों को लूटने से बाज नहीं आ रहे हैं.
इस क्रॉसिंग से बारामुला की तरफ जाने वाले लोग बेहद कम हैं और गाड़ियां उनसे भी कम. यहां मौजूद लोग एक टैक्सी वाले को बारामुला चलने के लिए मना रहे हैं. काफी देर मनाने के बाद सात सौ रुपए प्रति सवारी के किराए पर टैक्सी वाला सौदा तय करता है लेकिन साथ भी वो ये शर्त भी रखता है कि वो किसी भी हाल में सोपोर नहीं जाएगा क्योंकि वहां हालात कभी भी ख़राब हो सकते हैं.
एयरपोर्ट से अब तक किसी भी सुरक्षा बल ने गाड़ियों को रोका नहीं है. बारामुला की तरफ बढ़ते ही पहली बार हमें रोक लिया जाता है. एयर टिकट दिखाने पर सुरक्षा बल ज्यादा सवाल नहीं करते और आगे जाने का रास्ता खोल देते हैं लेकिन यहां से बारामुला तक रास्ते में बार-बार इसी तरह हमारी गाड़ी को रोका जाता है.
इस हाई-वे पर इक्का दुक्का दुकानें खुली दिखती हैं. जिसके नजदीक सुरक्षा बलों की संख्या काफी ज्यादा है. लेकिन बारामुला पहुंचते ही सन्नाटा फिर अपनी जगह तैनात दिखता है. बाज़ार पूरी तरह बंद हैं. सड़कें खाली हैं और आम शहरियों से कई-कई गुना ज्यादा फौजी लश्कर यहां मौजूद है. एसएसपी ऑफिस बारामुला में कुछ हलचल दिखती है. यहां पुलिस के साथ-साथ कुछ स्थानीय लोग भी मौजूद हैं. उनमें से एक है मंज़ूर हसन बुखारी. इनके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई हैं और माथे पर पसीना है. मंज़ूर जम्मू कश्मीर सरकार में तीस साल की नौकरी के बाद अब रिटायर हो चुके हैं. थोड़ी देर पहले एसएसपी ऑफिस का एक अरदली उन्हें उनके घर से बुलाकर लाया है. मंज़ूर हसन समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्होंने ऐसा क्या किया कि उन्हें इस कर्फ्यू के दौरान घर से यहां बुला लिया गया है.
मंज़ूर के दो बेटे हैं और दोनों ही विदेश में रहते हैं. कश्मीर के हालात की कोई जानकारी न मिलने पर उनके बेटों ने किसी तरह एसएसपी बारामुला से संपर्क किया. ताकि वो अपने पिता का हाल जान सके. मंज़ूर को यही जानकारी देने और उनके बेटों से बात कराने के लिए एसएसपी ने उन्हें अपने दफ्तर बुलवाया था. लेकिन कर्फ्यू के इस हालत में पुलिस का बुलावा आना मंज़ूर को तब तक परेशान रखता है जब तक पुलिस उनको आश्वस्त नहीं करती की सब कुछ ठीक है. बेटों की फोन की ख़बर मिलने के बाद मंज़ूर को वापस घर लौट जाने की जल्दी है क्योंकि उनके पीछे उनकी पत्नी और बेटी भी उनके मुताबिक परेशान हो रही होंगी कि पुलिस न जाने क्यों साथ ले गई.
बारामुला में ऐसी कई गिरफ्तारियां बीते तीन चार दिनों में हो चुकी हैं जहां सुरक्षा व्यवस्था का हवाला देकर लोगों को पुलिस ने उठा लिया है. एसएसपी बारामुला के पीए वाहिद अजीज बताते हैं, ‘‘कश्मीर के आम लोगों का सम्पर्क बाहर के लोगों से पूरी तरह कटा हुआ है. इस जिले में अब तक हिंसा की कोई घटना नहीं हुई है. सब नियंत्रण में है लेकिन जो कश्मीर से बाहर हैं वे अभी काफी परेशान हो रहे हैं. हमारे पास न जाने कितने फोन आ रहे हैं. क्योंकि कोई भी अपने रिश्तेदार से बात नहीं कर पा रहा है.’’
सूचना क्रन्ति के इस दौर में जब लोग सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल देखते हैं. और रात को सोते हुए आखिरी गुड नाईट भी मोबाइल पर ही टाइप करते हैं, ऐसे में इतने दिनों तक सूचना के सभी माध्यमों से पूरी तरह कट जाना कई तरह की परेशानियां उन लोगों के लिए पैदा कर रहा है जिन्हें अब आज़ाद बुलाया जा रहा है.
बारामुला में आवाजाही के दौरान हमने पाया कि स्कूल कॉलेज और कई सरकारी दफ्तर अभी पूरी तरह से बंद हैं. कुछ विभाग आंशिक तौर पर खुले हैं. जहां कुछ कर्मचारी और अधिकारी जैसे-तैसे पहुंचकर ज़रूरी काम निपटा रहे हैं. इसमें स्वास्थ्य विभाग भी शामिल है. जहां कुछ कर्मचारी और डॉक्टर पहुंचकर और अपना दायित्व निभा रहे हैं. अपना काम निपटाकर लौट रहे एक डॉक्टर, जो अपना नाम नहीं छापने की गुजारिश करते हैं, मौजूदा हालात के बारे में कहते हैं, ‘‘भारत कश्मीर को अपना कहता है लेकिन क्या उसने अपनों के जैसा बर्ताव किया है. कोई बच्चा अगर हाथ में टॉफी पकड़े हुए चॉकलेट की जिद करता है तो क्या उस बच्चे को चुप कराने के लिए उसके पिता को उसके हाथ में पड़ी टॉफी भी छीन लेनी चाहिए? ऐसा वही पिता कर सकता है जो क्रूर हो, बच्चे से प्यार न करता हो या फिर उसका बेटा सौतेला हो. भारत ने 370 छीनकर कश्मीर के साथ ऐसा ही किया है.’’
डबडबाई आंखों और रुंधे हुए गले के साथ डॉक्टर आगे कहते हैं, “मैं ज्यादा कुछ बोलना नहीं चाहता. क्योंकि यहां जिसने भी ज्यादा बोला है वो फिर कभी बोल नहीं पाया. आस पास तैनात बंदूकें आप देख ही रहे हैं. ये इतनी है कि अभी गिना भी नहीं जा सकता है. ऐसे में कोई कैसे बोलेगा कि उसे क्या महसूस हो रहा है. लेकिन इन फिजाओं में जो डर है उसे आप भी महसूस कर सकते है. अब हमें इसी डर के साये में जिंदगी गुजारनी है. मुझे इसी महीने के आखिर में पेपर प्रजेंट करने स्पेन जाना था लेकिन इस हालात में घर वालों को छोड़कर कैसे जाऊं. कई बार मन होता है कि कश्मीर छोड़कर विदेश जाकर बस जाऊं लेकिन फिर पिताजी-चाचा का ख्याल आता है. मैं तो विदेश जाकर बसने में सक्षम हूं लेकिन मेरे बाकी लोग क्या करेंगे. अब जो भी है हम एक-दूसरे के साथ रहकर झेलना चाहते हैं.’’
शाम के छह बजे तक बारामुला बाज़ार की तस्वीर में थोड़ा सा बदलाव दिखता है. लोगों के बाहर निकलने पर थोड़ी ढील दी गई है और कुछ दुकानें भी अब खुलने लगी है. इनमें मुख्यत: बेकरी हैं जो आने वाली ईद के कारण खुल रही है. बेकरी मालिकों ने सामान ईद को ध्यान में रखकर खरीदा था जिसके ख़राब होने की स्थिति अब बन गई है. यही लोग दुकानें खोल रहे हैं ताकि होने वाले नुकसान को कुछ हद तक ही सही कम किया जा सके. इन दुकानों के बाहर कुछ स्थानीय लोग भी इकठ्ठा हो गए है जो 370 के हटने पर चर्चा कर रहे हैं. इनमें से रियाज नागो भी है जो एक सरेंडर कर चुके मिलिटेंट हैं लेकिन पिछले तीन सालों से सक्रिय राजनीति में हैं. रियाज कुछ समय पहले बारामुला में मेयर भी रह चुके हैं. इस चर्चा में वे कहते हैं, ‘‘भाजपा का ये कदम कश्मीर के लिए ही नहीं बल्कि भारत के लिए है. उन्हें यहां से कोई मतलब नहीं बाकी जगह चुनाव जीतने से मतलब है. वो भी जानते है कि इस कदम से यहां अलगाव बढ़ेगा लेकिन उन्हें इसकी फ़िक्र नहीं है. ये भी हो सकता है कि अभी सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को निरस्त कर दिया जाए ऐसे में बीजेपी का काम फंस जाए तब भी वो कह सकती है कि देखो हमने तो अपना वादा पूरा कर दिया था लेकिन कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया.’’
अनुच्छेद 370 के हटने से बाहरी लोग कश्मीर में आकर बस जाएंगे, इसकी चिंता चर्चा में शामिल किसी भी व्यक्ति को नहीं है. बारामुला कोर्ट में कार्यरत एक कर्मचारी ये सवाल उठाने पर कहते हैं, ‘‘यहां हम लोग ही सुरक्षित नहीं है. पता नहीं कब गोली चल जाए और ब्लास्ट हो जाए. ऐसे में कोई बाहर वाला यहां आकर क्यों बसेगा. बाहर वालों को जमीन खरीदने का अधिकार अब मिला होगा लेकिन जम्मू वालों को तो ये अधिकार पहले से था. मैंने अपने जीवन में आजतक किसी जम्मूवाले यहां कश्मीर में जमीन लेते या बसते नहीं देखा है. यहां डर और बंदूक के महौल में आखिर कौन आकर रहना चाहेगा.’’
बाज़ार में बतकही कर रही ऐसी दो-तीन टुकडियां नज़र आती हैं लेकिन सुरक्षा बलों की तैनाती में अब भी कोई कमी नहीं आई है. सैकड़ों हथियारबंद जवान बाज़ारों में घूम रहे हैं. दिलचस्प ये भी है कि जम्मू कश्मीर पुलिस के जवानों को हथियार नहीं दिए गए हैं. उनके पास सिर्फ लाठियां हैं जबकि सीआरपीएफ और अन्य सुरक्षाबल के जवान ऑटोमेटिक बंदूक लटकाए हुए है. ऐसे में पुलिस के जवानों का मुख्य काम हथियारबंद जवानों को इलाके की ख़बर देना ही रह गया है. इसकी एक वजह देखी जा रही है उस एहतियाती उपाय में जिसके मुताबिक 370 हटाने की घोषणा के बाद अंदरूनी तौर पर आशंका थी कि जम्मू कश्मीर पुलिस के कुछ लोग विद्रोह कर सकते हैं.
सुरक्षा बलों की एक ऐसी भी गाड़ी बाज़ार में घूम रही है जिसके छत से बाहर निकलकर एक सिपाही हर उस दुकान का वीडियो बना रहा है जो अभी खुली हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि ये सब सरकार की इशारे पर हो रहा है ताकि दुनिया को दिखाए की कश्मीर के हालात समान्य हो गए हैं.
अंधेरा होने के साथ ही बारामुला में हल्की बारिश शुरू हो गई है. इस बारिश में सड़क किनारे खड़े एक ट्रक के ऊपर दो लोग जल्दी-जल्दी तिरपाल कस रहे हैं और इस ट्रक के पीछे दस बारह लोग सवार हैं. इन लोगों में अधिकतर चौदह-पन्द्रह साल के बच्चे हैं. ये लोग हर साल ईद के मौके पर पंजाब से यहां गुब्बारे और अन्य प्लास्टिक का समान बेचने आते हैं इस बार भी यही सोचकर आए थे लेकिन हालात ख़राब होने के कारण अब लौट रहे हैं. लौटने के लिए सार्वजनिक यातायात उपलब्ध नहीं है लेकिन किसी तरह से ये ट्रक इन्हें मिल गया हैं. ये ट्रक सिंघारा सिंह का है. सिंघारा सिंह पंजाब के होशियारपुर के रहने वाले हैं. और अक्सर माल लेकर कश्मीर आते रहते हैं. इस बार भी अपने ट्रक में वे कुरकुरे भरकर लाए थे. लेकिन जिस रात वे बारामुला पहुंचे उसी रात कर्फ्यू लागू हो गया और सारा नेटवर्क ठप हो गया. ऐसे में सिंघारा सिंह के पिछले पांच दिन उस व्यापारी को खोजने में ही गुजर गए जिसके गोदाम पर उन्हें माल पहुंचाना था. आज सुबह किसी तरह उन्हें उस व्यापारी का पता मिला तब उन्होंने माल उतारा. लेकिन उन्हें अपने माल के पैसे अभी तक नहीं मिले हैं क्योंकि व्यापारी ने कैश नहीं होने की बात कही है. और अन्य किसी माध्यम से फिलहाल पैसे ट्रांसफर हो नहीं सकते हैं.
सिंघारा सिंह बताते हैं कि कश्मीर से लौटते हुए वे अक्सर चेरी या अन्य फल आदि ले जाते थे जिससे उनका काम चलता था लेकिन इस बार सब कुछ बंद है. वे अपना ट्रक बाहर निकाल कर ले जाना भी एक चुनौती समझ रहे है. चार दिन तक उनका ट्रक खड़ा रहा जब वो व्यापारी को तलाश रहे थे और अभी भी वे नहीं जानते कि कश्मीर से निकलने में उन्हें कितने दिन और लग सकते है. बारामुला से पंजाब माल ले जाने का वे 30 हज़ार रुपए लेते हैं. इस बार वो फल की जगह गुब्बारे बेचने वाले पन्द्रह लोगों को भरकर ले जा रहे हैं. जिनसे उनका सौदा दस हज़ार में तय हुआ है.
अंधेरा होने पर सड़कों पर गाड़ियों की संख्या कुछ बढ़ गई है. लेकिन ये सभी निजी गाड़ियां हैं. सार्वजनिक वाहनों की सड़कों पर संख्या अब भी शून्य है. हर गाड़ी वाले को केबिन के अंदर की लाइट लगातार ऑन रखने के सख्त निर्देश दिए गए है. जमीन में तैनात जवान ही नहीं बल्कि आसमान से उड़ने वाले यंत्र भी कश्मीर की निगरानी में मुस्तैद हैं. दोपहर में जहां बेहद नीचे उड़ान भरते हेलीकॉप्टरों से निगरानी की जा रही थी, वहीं अब ये काम ड्रोन कैमरों की मदद से किया जा रहा है. नाईट विजन वाले ड्रोन कैमरे लगभग हर मुहल्ले का चक्कर लगा रहे हैं. रात के दस बजे तक महौल वापस वैसा ही हो चुका है जैसा दोपहर में था. कर्फ्यू में दी गई ढील वापस ली जा चुकी है. सड़कें, गलियां फिर से सुनसान हो गई हैं. वैसे थोड़ी चहल पहल शाम के वक़्त हुई थी वो भी सिर्फ मुख्य बाज़ार, हाई-वे और पॉश कोलोनियों तक ही सीमित थी. ओल्ड टाउन बारामुला जिसे काफी संवेदनशील माना जाता है, वहां इस तरह की कोई रियायत नहीं दी गई.
ईद के आसपास बारामुला का बाज़ार देर रात तक गुलजार रहा करता था. लेकिन आज यहां महौल में इतना सन्नाटा पसरा गया है कि ड्रोन कैमरों में लगे छोटे-छोटे पंखों की आवाज़ भी आसानी से घरों के भीतर सुनी जा सकती है. चर्चा है कि ईद के चलते कल कर्फ्यू में थोड़ी रियायत मिलेगी और बाज़ार कुछ ज्यादा देर तक खुल सकेगा. कल शायद यहां के निवासियों के पास अपने ही शहर में निकलने की आज़ादी थोड़ी ज्यादा होगी, ईद की तैयारी का मौका थोड़ा ज्यादा मिलेगा. और सब कुछ ठीक रहा तो ईद का जश्न भी मानाने दिया जाएगा. लेकिन ये सब होगा बंदूक के साये में ही.
पब्लिक टेलीफोन बूथ बन गया है बारामुला पुलिस थाना
एहतियाती गिरफ्तारियों के बीच डेढ़ हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ कश्मीर के बाहर अपनों से बात करने के लिए बारामुला थाने में जमा हुई.
पूरे देश में ईद की तैयारियां चल रही हैं, लेकिन यहां कश्मीर में यह तैयारियां अभी शुरू होने को हैं. कश्मीर के लोगों को यह मौका ईद से एक दिन पहले मिला है की वे खुल कर बाज़ार में निकल सकें. आज (रविवार को) सुबह से ही कर्फ्यू में रियायत है, बाज़ार में रौनक नज़र आ रही है. हालांकि 80 प्रतिशत दुकानें आज भी बंद हैं. जो खुली हैं उनमें लोगों का सैलाब उमड़ रहा है. बारामुला शहर में सुरक्षाबलों की संख्या बीते दिनों के मुकाबले कम दिख रही है, और ट्रैफिक बहुत ज़्यादा. नेटवर्क पूरी तरह से ठप्प है लिहाजा मोबाइल या टेलीफोन कुछ भी काम नहीं कर रहा है.
इंटरनेट बंद होने के कारण सारा व्यापार नगद लेन-देन पर ही आ टिका है. इसलिए एटीएम के बाहर ठीक वैसी ही कतारें लगी हुई है जैसे नोटबंदी के दिनों में पूरे देश में देखने को मिलती थीं. यह कतारें इसलिए भी लम्बी हैं क्योंकि शहर के चंद एटीएम ही काम कर रहे हैं. पेट्रोल पम्प का नज़ारा भी कुछ ऐसा ही है जहां गाड़ियों की कतार करीब एक किलोमीटर लम्बी हो चुकी है. अधिकतर दुकानों के शटर आज भी गिरे हुए हैं, लेकिन बाज़ार में इतने लोग मौजूद हैं की उन्हें भीड़ कहा जा सकता है. जिन दुकानों में भीड़ सबसे ज्यादा है उनमें मुख्यतः गोश्त की दुकानें, बेकरी और कपड़ों की दुकानें हैं. फलों की रेहड़ियां और गिफ्ट आइटम के स्टाल सड़क किनारे बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं.
हाथों में एके-47 लिए जवान आज लोगों को ज्यादा नहीं अखर रहे हैं क्योंकि इनकी संख्या आम लोगों से ज्यादा नहीं है. ऐसे ट्रक भी सड़कों से गुज़र रहे हैं जिनकी छतों पर बंदूक ताने एक या दो जवान लोगों पर नज़र बनाए हुए हैं. ऐसे ही एक ट्रक पर सवार जवान को जब एक स्थानीय बच्ची मुस्कुरा कर हाथ हिलाती है तो वह जवान तुरंत ही बंदूक नीचे कर उसकी ओर हाथ हिलाता है और लगभग उस बच्ची सी ही मासूम मुस्कराहट जवान के चेहरे पर बिखर जाती है. मुश्किल से 5 सेकेण्ड में घटी यह घटना कश्मीर की सबसे खूबसूरत तस्वीर लगती है.
ऐसा ही नज़ारा आज बारामुला पुलिस स्टेशन के अन्दर दाखिल होने पर भी दिखा. पुलिस स्टेशन के बाहर सैकड़ों लोग मौजूद हैं और एक सिपाही उनके नाम सूची में लिख रहा है. सूची में दर्ज नामों के क्रम में सिपाही एक-एक कर लोगों को एसएचओ मोहम्मद इकबाल के कार्यालय में भेज रहा है. उनका कार्यालय आज एक पब्लिक टेलीफोन बूथ बना हुआ है. कार्यालय के अन्दर ही डीएसपी फैजान भी मौजूद हैं और उनके फोन का इस्तेमाल आम लोग कर रहे हैं. एसएचओ मोहम्मद इकबाल बताते हैं, “सुबह से अब तक हम दोनों के फोन से लगभग डेढ़ हज़ार लोग अपने रिश्तेदारों को फोन कर चुके हैं. हम सिर्फ इस काम में लगे हुए हैं की लोगों की उनके रिश्तेदारों से बात हो सके.”
फोन करने के लिए यहां पहुंचे लोगों की संख्या इतनी ज्यादा है कि प्रति व्यक्ति एक मिनट देना भी अधिकारियों के लिए चुनौती बन गया है. लेकिन इस एक मिनट की बात का मौका देने के लिए भी स्थानीय लोग पुलिस का शुक्रिया अदा कर रहे हैं. इस वक्त भावनाएं उभार पर हैं. अपनों से बात करने के बाद कुछ की आंखों में आंसू आ गए . कुछ के चेहरे पर संतोष और प्रसन्नता का भाव उभर आया है.
फोन करने पहुंचे लोगों में जितनी संख्या कश्मीरी लोगों की है उतनी ही गैर कश्मीरी लोगों की भी है. पश्चिम बंगाल में रहने वाले फारुख़ भी इनमें से एक हैं. वह करीब 12 साल से यहां रह रहे हैं, लेकिन आज कल काफी परेशान हैं. फारुख़ बताते हैं, “आज पूरे एक हफ्ते बाद मैंने अपने बीवी से बात की है. वह परेशान थी कि मैं जिंदा हूं या नहीं. वह चाहती है कि मैं तुरंत वापस लौट आऊं. मैं हालात ख़राब होते ही चला गया होता, लेकिन मेरा पैसा अटका हुआ है. मेरा भुगतान हो जाए तो मैं यहां से चला जाऊं.”
भीड़ ज्यादा होने के चलते फारुख़ को भी बमुश्किल एक मिनट के लिए ही फोन मिला था मगर परेशान भाव और भीगी आंखों से जब उसने अपनी मां से बात करने की गुहार लगाई तो डीएसपी फैजान ने खुद ही अपना फोन उसकी तरफ बढ़ा दिया. फारुख़ की ही तरह फोन करके लौटने वाले हर व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान है और वो एक दूसरे को ईद की बधाई दे रहे हैं.
लेकिन इस थाने के अन्दर कश्मीर जितना खुश नज़र आता है बाहर उतना नहीं है. ये ईद कई लोगों के लिए दुःख, दर्द, डर और आशंकाएं भी लेकर आई है. 19 साल के बिलाल अहमद शेख के पिता पिछले कई दिनों से कभी कोर्ट तो कभी पुलिस थाने के चक्कर काट रहे हैं. उनके बेटे को पुलिस उठा कर ले गई है. वो कहते हैं, “मेरे बेटे के ऊपर कोई एफआईआर नहीं है, उस पर आज तक कोई आरोप नहीं लगा है, लेकिन पुलिस न जाने क्यों उसे उठा कर ले गई है. मुझे दो बार पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत बंद किया जा चुका है. मुझे पुलिस ले जाती तो भी बात समझ में आती, मगर मेरा बेटा तो मासूम है, उसने कुछ नहीं किया. मुझे यह भी नहीं मालूम की वो कहां है.”
बिलाल अहमद के पिता के जैसी ही हालत यहां रहने वाले कई लोगों की है. शिवी क्षेत्र के शाल्टेन में रहने वाले वसीम अहमद मल्लाह को पुलिस ने बीते 5 अगस्त को शिवी थाने में बुलाया था, तब से वसीम वापस नहीं लौटे हैं. वसीम की पत्नी मसरत बताती हैं, “5 अगस्त को जब वसीम रात को घर नहीं लौटे तो मैं थाने गई. वहां मुझे बताया गया की इन्हें आज यहीं रखा जाएगा. अगले दिन से फोन चलने बंद हो गए और कर्फ्यू लग गया. मैं फिर भी थाने गई, लेकिन उन्होंने वसीम को नहीं छोड़ा. उन्होंने उसे 3 दिन तक थाने में रखा और फिर कहीं बाहर ले गए. अब बोल रहे हैं की उसे आगरा भेज दिया गया है.”
वसीम अहमद पर पीएसए लगा दी गई है. पीएसए यानि जम्मू एंड कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट, 1978. ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि उनके खिलाफ सन 2013 और 2016 में पत्थरबाजी करने का आरोप लगा था. 5 अगस्त को थाने ले जाने के बाद 9 अगस्त को पुलिस वाले घर आए और मुझे वह कागज़ दे गए जिसमें लिखा था की उन्हें पीएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया है.
ऐसा ही दारुल उलूम कॉलोनी में रहने वाले आमिर परवेज़ के साथ भी हुआ. आमिर की मां अज़ीना बेगम बताती हैं, “5 अगस्त को पुलिस आई और आमिर को उठा कर ले गई. उसे पूरा दिन रखने के बाद शाम को छोड़ दिया गया, लेकिन 6 अगस्त को पुलिस फिर से आई और उठा कर ले गई. अब वो कहां है हमें नहीं पता. कोई कहता है उसे श्रीनगर ले गये, कोई कहता है उसे जम्मू ले गये तो कोई कहता है उसे आगरा भेज दिया गया है.”
वह आगे कहती हैं, “आमिर के पिता की मौत साल 2004 में हो चुकी है. उस वक़्त उरी में जो धमाका हुआ था उसी में वो मारे गये थे उनके बाद आमिर के अलावा कोई भी मर्द हमारे घर में नहीं है. मैं, मेरी बेटी और आमिर की पत्नी ही है. फिर भी पुलिस के जवान जब चाहे तब घर में दाखिल हो जाते हैं और परेशान करते हैं. आमिर ऑटो चलाने का काम करता था. जब बुरहान (वानी) की मौत के बाद पूरे घाटी के हालत ख़राब हुए थे तब भी वह पत्थरबाजी में शामिल नहीं हुआ था. पुलिस उसे बेवजह उठा कर ले गई है.”
सिर्फ शीवी थाना क्षेत्र से ही पुलिस ने बीते दिनों में 14 लोगों को हिरासत में लिया है. इनमें से 3 लोगों पर गिरफ्तारी के बाद पीएसए लगा चुकी है. शीवी थाना क्षेत्र के एसएचओ बताते हैं, “जिनको भी गिरफ्तार किया है वह सभी पत्थरबाजी में शामिल रहे हैं. इनमें से किस पर पीएसए लगनी है यह थाने से नहीं बल्कि जिला कलेक्टर के ऑफिस से तय होता है.” आमिर की गिरफ्तारी के बारे में सवाल करने पर वह कहते हैं, “आमिर सिर्फ पत्थरबाजी में ही नहीं बल्कि ड्रग्स सप्लाई करने के मामले में भी शामिल रहा है.” यह पूछने पर कि क्या कभी ड्रग्स सप्लाई के मामले में आमिर पर एफआईआर या पुलिस शिकायत दर्ज हुई है, एसएचओ कहते हैं, “नहीं… एफआईआर इसलिए कभी नहीं हुई क्योंकि वह कभी पकड़ा नहीं गया. लेकिन हमें सूचना है की वह ऐसा करता है.”
इन गिरफ्तारियों के बारे में फ़तहगढ़ के डिप्टी सरपंच ज़ियाउल इस्लाम कहते हैं, “भारत सरकार चाहे तो कश्मीर में हमेशा के लिए फौजी शासन लागू कर दे मगर पुलिस द्वारा की जा रही इन गिरफ्तारियों पर रोक लगनी चाहिए. इसमें इतनी मनमानी होती है कि इसे जंगलराज कहना चाहिए. जिसकी राजनीतिक पकड़ मजबूत है उसके खिलाफ कोई एफआईआर नहीं होती भले ही वह पत्थरबाजी में शामिल हो और जिसका कोई राजनीतिक माई-बाप नहीं है उन्हें पकड़ के जेल में डाल दिया जाता है.”
अपनी कहानी बयां करते हुए ज़िया आगे कहते हैं, “सन 2008 में मैं खुद 13 महीने 15 दिन पीएसए लगने के कारण जेल में रहा हूं. मैं जानता हूं वहां कैसी यातनाएं दी जाती हैं. तब मेरी उम्र 16 साल थी. कश्मीर की लड़ाई में इतने लोग मारे जा चुके हैं की अब हमारे पास अपने लोगों को दफनाने के लिए ज़मीन भी नहीं बची है. अब मैं मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हूं और इस कारण कई बार अपने ही लोगों द्वारा गद्दार पुकारा जाता हूं. मैंने 2018 का वह पंचायत चुनाव लड़ा था जिसे सभी मुख्यधारा की पार्टियों ने बायकॉट किया था, सिर्फ इस व्यवस्था पर भरोसा करते हुए. जिस तानशाही रवैये के साथ धारा 370 हटा दी गई और उसके बाद जिस तरह से गिरफ्तारियों का सिलसिला चल रहा है, ऐसे में हमारा विश्वास व्यवस्था पर कैसे होगा.”
पूरे कश्मीर में इन दिनों सैकड़ों लोगों को जेल में बंद किया गया है. हालांकि कुछ थाने ऐसे ज़रूर हैं जहां से गिरफ्तार किए गए लोगों को रिहाई मिल रही है, लेकिन यह स्थाई नहीं कही जा सकती. बारामुला में ही कुल 44 लोगों को गिरफ्तार किया गया था जिन्हें 3 या 4 दिन हिरासत में रखने के बाद छोड़ दिया गया है.
इन लोगों के लिए ईद के मौके पर मिली यह रिहाई बहुत बड़ी बात है और बिना किसी लिखा-पढ़ी के क़ैद कर लेना बहुत छोटी बात. गिरफ्तार हुए इन लोगों के अलावा कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनको भले ही पुलिस अपने साथ ना ले गई हो मगर उन्हें घरों में ही कैद कर दिया गया है.
जम्मू और कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, “तमाम विधायक विधान परिषद् के सदस्य और यहां तक की काउंसलर तक को घर में कैद करके रखा गया है. अब असल परीक्षा ईद है. ईद पर और उसके अगले दिन यदि सबकुछ नियंत्रण में रहा तो शायद हालत नियंत्रण में आ जाएं. ईद पर यदि हालत बिगड़ेंगे तो यह कब सुधरेंगे यह कोई नहीं जानता.”
बारामुला में रविवार को जो ढील दी गई वह पूरे कश्मीर की तस्वीर नहीं कही जा सकती. श्रीनगर में ही हालत आज इस कदर बिगड़े की दोपहर एक बजे कर्फ्यू दोबारा लगा दिया गया जो पूरी रात कायम रहा. साऊथ कश्मीर में हालत नार्थ कश्मीर से कहीं ज्यादा तनावपूर्ण बने हुए हैं. हफ्ते भर घरों में कैद रहने और दुनिया से पूरी तरह कटे रहने के बाद आज भले ही कश्मीरी लोग घरों से बाहर निकले हैं मगर सबके ज़ेहन में एक अनकहा डर तैर रहा है, इसकी पुष्टि सुरक्षाबल और प्रशासन अधिकारी ही ज्यादा कर रहे हैं.
हिन्दी वैब पत्रिका ‘न्यूज लॉड्री’ से साभार