गोविन्द पंत ‘राजू’
अखिल भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा जहूर आलम को सम्मानित किए जाने से समूचे उत्तराखंड के रंग कर्म को एक नई ऊर्जा मिली है क्योंकि ज़हूर आलम का सम्मान एक व्यक्ति का सम्मान नहीं बल्कि एक संस्था का सम्मान है। ऐसा इसलिए कि ज़हूर आलम संस्कृति कर्मी के रूप में अब एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्था बन चुके हैं। एक ऐसी संस्था जो निरंतर नए-नए रंग कर्मियों की पाठशाला बनी हुई है, संस्कृति, साहित्य और लोक को जानने के आतुर युवाओं की सजीव पौंधशाला है तथा समाज के अंतरविरोधों को जान और समझ कर लड़ाई लड़ने के लिए तैयार होने वाले जांबाजों का स्कूल है।
ज़हूर को हम लोग 50 साल से भी अधिक समय से जानते हैं। उस समय मल्ली ताल में एम हनीफ एंड संस के नाम से ज़हूर के परिवार की एक नामचीन टेलरिंग शॉप हुआ करती थी और ज़हूर सी आर एस टी इंटर कॉलेज में पढ़ाई किया करता था। रंगकर्म के बीज ज़हूर के भीतर स्कूली पढ़ाई के दिनों में ही अंकुरित होने लगे थे और अपने अनेक सहपाठियों के साथ वह स्कूल स्तर पर ही रंग कर्म में एक पहचान बनाने लगा था। बाद में डीएसबी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान कॉलेज में होने वाला इंटर डिपार्टमेंटल थिएटर फेस्टिवल जहूर के रंग कर्म को और विकसित करने का माध्यम बना। नैनीताल में शारदा संघ की गतिविधियां, गीत एवं नाट्य प्रभाव की सक्रियता और ‘नगाड़े खामोश हैं’ जैसे प्रयोगधर्मी नाटक का मंचन आदि ऐसी अनेक घटनाएं थीं जिन्होंने जहूर को रंग कर्म की बारीकियां को जानने और समझने का अवसर दिया। यह वह दौर था जब नैनीताल में शरदोत्सव के दौरान अखिल भारतीय नाट्य प्रतियोगिता होती थी और इस प्रतियोगिता में देश भर के चुनिंदा रंगकर्मी अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। नैनीताल के अनेक दूसरे उदीयमान रंग कर्मियों की तरह ज़हूर के लिए भी यह प्रतियोगिता रंगमंच को सीखने समझने का एक बहुत बड़ा अवसर बनती रही।
एक रंगकर्मी के रूप में ज़हूर के विकास का दूसरा दौर युगमंच के पुनर्जीवन के साथ ही शुरू हुआ। अपनी पहली पारी में युगमंच ने नैनीताल के थिएटर जगत में जो हलचल मचाई थी उसके बाद के सन्नाटे ने एक बड़ा बिखराव पैदा कर दिया था। लेकिन इस बिखराव को खत्म करने के लिए जहूर और उस वक्त के अनेक समर्पित रंगगर्मियों ने युग मंच को पुनरस्थापित करके एक बड़ी पहल की।
लंबी तैयारी के बाद ‘इडीपस’ नाटक का सफल मंचन करके युगमंच ने अपनी जिस दूसरी पारी को शुरू किया उसने जहूर और युगमंच को एक दूसरे का पर्याय बना दिया। चालीस साल से भी ज्यादा पुराने इस रिश्ते ने जहां युगमंच को नई ऊंचाइयां दीं वहीं इसने एक कवि, जन पक्षधर इंसान, संस्कृति कर्मी, अभिनेता, रंगनिर्देशक और एक टीम लीडर के रूप में ज़हूर के व्यक्तित्व का भी समग्र विकास किया। युगमंच की इस यात्रा ने देश को 50 से भी अधिक उच्च कोटि के अभिनेता, लेखक, निर्देशक, संगीत मर्मज्ञ और समर्पित कलाकार दिए, जो राष्ट्रीय स्तर पर थिएटर, टेलीविजन और सिनेमा में अपना योगदान दे रहे हैं। स्वयं युगमंच की खुद की उपलब्धियां इतनी अधिक हैं कि उन्हें गिनाने के लिए समय कम पड़ सकता है। लेकिन युगमंच, उसके रंगकर्म और सांस्कृतिक योगदान की चमक के पीछे युग मंच की टीम के सैकड़ों लोगों के योगदान के साथ ही साथ जिस अकेले व्यक्ति का सबसे अधिक योगदान है, वह है हम सब का प्यारा ज़हूर आलम।
स्कूली पढ़ाई के बाद जब आजीविका के लिए कुछ करने की बात आई तो ज़हूर ने पुश्तैनी कारोबार के बजाय कपड़े का कारोबार शुरू करने की ठानी। ठिया बना पिछाड़ी, बाजार गाड़ी पड़ाव के पास ‘इंतखाब’। लेकिन इस अड्डे ने जहूर की रोजी-रोटी से ज्यादा इंतखाब में रोजाना पहुंचने वाले कलाकारों, संस्कृति कर्मियों, आंदोलनकारियों, अड्डेबाजों, बुद्धिजीवियों और दोस्तों के लिए मिलन स्थल के रूप में अधिक बड़ी भूमिका निभाई। इंतखाब की आय का बड़ा हिस्सा आस पास की चाय दुकानों के हिस्से जाता रहा है और अब तक देश दुनिया के अड्डेबाज इंतखाब में आकर कई लाख चाय गटक चुके हैं। बहुतों के हिस्से तो बंद मक्खन और समोसे आदि भी आते रहे हैं।जहूर इसी को अपनी असल कमाई मानता है क्योंकि कुछ मित्रों का तो यह भी मानना है कि यदि मुन्नी भाभी की नौकरी न होती तो शायद ज़हूर के लिए दाल रोटी का इंतजाम भी कर पाना बहुत मुश्किल होता। बहरहाल इंतखाब के अड्डे पर नैनीताल आने वाले देश भर के तमाम कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों और समाज के अन्य जागरूक लोगों का आना-जाना लगभग हर रोज ही होता था और यह सिलसिला अब भी बदस्तूर जारी है। नैनीताल के अनेक अक्खड़ों और फक्कड़ों के लिये ज़हूर का इंतखाब उनका स्थाई पता होता था। कैमरे, कलम और घुम्मकड़ी के जादूगर कमल जोशी, सुघड़, अलमस्त कल्पनाकार विनोद तिवारी, अद्भुत भाषाविद और दार्शनिक अवस्थी मास्साब,विलक्षण प्रतिभाशाली यारों के यार सुदर्शन जुयाल और शब्दों, भावों तथा जानकारियों के गोमुख अशोक पांडे आदि आदि ऐसे अनेक लोग हैं जिन्होंने युगमंच और ज़हूर से बहुत कुछ सीखा भी और इन दोनों को बहुत कुछ सिखाया भी।
ज़हूर का समर्पण सिर्फ थिएटर तक ही नहीं रहा था बल्कि उसने नैनीताल में नुक्कड़ नाटकों की नियमित प्रतियोगिता को शुरू करने के साथ-साथ उत्तराखंड के दूर दराज के गांवों तक सीमित होती जा रही खड़ी होलियों को नैनीताल के लोगों के सामने प्रस्तुत करवाने के लिए होली महोत्सव के रूप में भी एक बहुत बड़ा बीड़ा उठाया था जो आज भी जारी है। प्रतिरोध का सिनेमा और जनसंस्कृति मंच से भी जहूर का गहरा जुड़ाव रहा है। युगमंच की बाल रंगमंच कार्यशालाएं नई पौंध को थिएटर की तरफ आकर्षित करने में अहम योगदान देती रही हैं और हाल के वर्षों में जहूर के नेतृत्व में युगमंच के कलाकार उत्तराखंड की स्कूली शिक्षा में थिएटर के जरिए व्यक्तित्व विकास के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। हालांकि संगीत नाटक अकादमी के सम्मान ने उत्तराखंड के संस्कृति कर्मियों की बड़ी हौसला अफजाई की है लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए ज़हूर आलम को बहुत पापड़ बेलने पड़े, अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा, अनेक बार कटुता पूर्ण टिप्पणियों को भी झेलना पड़ा। आर्थिक संकट तो रहे ही, कलाकारों के चयन की समस्या, रिहर्सल की निरंतरता की समस्या और टीम को एकजुट रखने की समस्या, अनुशासन आदि आदि अन्य कई तरह की समस्याओं को भी झेलना पड़ा। कोई और होता तो शायद इन विपरीत परिस्थितियों में कब का टूट जाता, सब छोड़-छाड़ देता लेकिन अपना ज़हूर किसी और ही मिट्टी का बना हुआ था। हर मुश्किल में उसने जिम्मेदारी से किनारा करने के बजाय समाधान ढूंढने की कोशिश की। ज़हूर के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खूबी शायद उसकी सहजता,विनम्रता और निर्लिप्तता है। उसने कभी सफलताओं का श्रेय लेने की चाहत नहीं की और हमेशा टीम भावना को सबसे आगे रखा। पारिवारिक जिम्मेदारियों, खराब स्वास्थ्य, घुटनों और कमर की भीषण तकलीफ के बाद भी ज़हूर का रंगकर्म जारी है और जारी रहेगा। यह सम्मान ज़हूर एवम युगमंच को बार-बार इस बात के लिए प्रेरणा देता रहेगा कि नाटक जारी रहना चाहिए क्योंकि समाज की बेहतरी के लिए,समाज को जिंदा बनाए रखने के लिए नाटक जरूरी है ।युगमंच जिंदाबाद,थिएटर जिंदाबाद और हर दिल अजीज जहूर को ढेर सारी बधाइयां।
फोटो इंटरनेट से साभार