विवेकानंद माथने
टॉलस्टॉय ने एक सुंदर कहानी लिखी है। एक युद्धखोर राजा युद्ध की पूरी तैयारी के साथ अपनी सैनिकों की बडी फौज लेकर एक समृद्ध प्रदेश पर कब्जा करने की मंशा से आक्रमण करने के लिये सरहद पर खडा होता है और प्रतिपक्ष के राजा को युद्ध के लिये चुनौती देता है। तब उस सुंदर, समृद्ध प्रदेश का राजा और प्रजा, जो हमेशा अपने काम में मग्न रहते है, जिन्होंने खेती में पसीना बहाकर अपने प्रदेश को समृद्ध किया है। जो मानते है कि जहां भी रहेंगे श्रम की रोटी खायेंगे। जिन्होंने भय से मुक्ति प्राप्त की है। वह अपना दिन का काम पूरा होते ही आक्रमणकारी राजा और उनके थके भागे सैनिकों के लिये चिंता व्यक्त करते हुये उन सबके लिये पीने का पानी और भोजन लेकर नम्र भावसे हाथ जोडकर स्वागत करने के लिये सरहद पर पहुंचते है और उन्हे अपने राज्य में आमंत्रित करते हुये कहते है कि यह सब आपका ही है। तब आक्रमणकारी राजा और उनके सैनिक खुद से ही पूछते है कि वह आखिर किस लिये युद्ध करना चाहते है। उस सुंदर प्रदेश पर जीत पाकर भी वह उन लोगों को नही जीत सकते, जिनके मनमें युद्ध करने आये प्रतिपक्ष के प्रति थोडी भी नफरत नही है। तब उनके अंदर का मनुष्य जागता है। उनका युद्ध का इरादा गल जाता है। वह भावविभोर होते है और केवल अपना युद्ध करने का इरादाही नही बल्कि दिग्विजयी बनने की अपनी राक्षसी महत्वाकांक्षा को भी त्याग देते है। यह कहानी शायद युद्धखोर लोगों को अहिंसा का पक्ष समझाने के लिये टॉलस्टॉय ने रची होगी।
आज भारत पाकिस्तान एक दूसरे को युद्ध के लिये चुनौती दे रहे है। दोनों कसमें खाकर युद्ध के लिये आमने सामने खडे है। यह जानते हुये भी कि युद्ध तबाही के सिवाय कुछ नही दे सकता। वह युद्ध करना चाहते है। तब हमें यह विचार करने की जरुरत है कि हम आखिर युद्ध किससे करना चाहते है? क्यों करना चाहते है? युद्ध से हम क्या हासिल कर पायेंगे?
भारत में 90 प्रतिशत आत्महत्याऐं गरीबी, अशिक्षा और असुरक्षित रोजगार के कारण होती है। प्रतिदिन 34 किसान आत्महत्या कर रहे है। किसान परिवार मे प्रतिदिन 174 लोग आत्महत्या करते है। हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। आधी आबादी गरीबी की जिंदगी जिनेके लिये मजबूर है। बेरोजगारों की कतारें लगी है। महिलाओं पर अत्याचार बढ रहे है। बच्चों को अश्लीलता परोसी जा रही है। केवल धन जूटाने के लिये समाज में शराब और नशा परोसी जा रही है। देश में सर्वत्र हिंसा व्याप्त है। किसानों की जमीन छीनी जा रही है। लाखों आदिवासीयों जंगल से अधिकार छीना जा रहा है। किसानों को मेहनत का मूल्य देने के लिये धन नही है। सारा धन चंद धनवानों के पास पहुंच रहा है। पाकिस्तान की हालत इससे भी बदतर है। अपने रोजाना के खर्च करने के लिये भी उनके पास धन नही है। लेकिन जनहित की योजनाओं मे कटौती करनी पडे या कर्ज की भीख मांगनी पडे, युद्ध से दोनों पिछे हटना नही चाहते।
युद्ध के लिये दोनों देश बडी राशि खर्च करते है। भारत सरकार का वार्षिक बजट 27 लाख करोड का है। जिसमें 3 लाख करोड रुपयों का रक्षा बजट है। पाकिस्तान सरकार का वार्षिक बजट 5 लाख करोड के आसपास है। जिसमें 1.10 लाख करोड रुपये रक्षा बजट है। इसके अलावा दोनों देश युद्ध सामग्री के लिये अतिरिक्त खर्च करते है। व्यवस्था पर होनेवाला कुछ खर्चा भी इसमें जोडा जा सकता है। यह इतनी बडी राशि है की दोनों देश गरीबी, भूखमरी, कुपोषण और बेरोजगारी से लढते तो अबतक इनपर विजय प्राप्त कर चुके होते और अपने देशको समृद्ध बना चुके होते।
युद्ध का इतिहास यही बताता है कि उसने हुकूमतों को मजबूत किया है और साम्राज्यवाद को फैलाया है। लोगों के श्रम का शोषण, प्राकृतिक संसाधनों की लूट या युद्ध सामग्री का व्यापार बढाने के लिये ही युद्ध किया जाता रहा है। युद्ध ने समाज और देश को हमेशा तबाही ही दी है। युद्ध हमेशा एक साजिश के तहत लादा जाता रहा है। युद्धभूमि पर आम जनता के बेटों को ही राष्ट्रभक्ति की नशा पिलाकर मरवाया जाता है। उसके लिये कट्टरपंथियों द्वारा संकुचित राष्ट्रवाद और अपने ही देश के श्रमिकों का शोषण करके मौज करनेवाले पाखंडी राष्ट्रप्रेमियों द्वारा उन्माद पैदाकर युद्ध की भूमिका तैयार की जाती रही है।
जम्मू कश्मीर एक प्रकृति से समृद्ध प्रदेश है। भारत उसे अपना बनाये रखने के लिये और पाकिस्तान उसको उकसाने के लिये वहां हिंसा करते आये है। वहां की जनता हिंसा से मुक्ति चाहती है। लेकिन उसके लिये उन्होंने भी हिंसा का ही रास्ता अपनाया है। दुनिया की साम्रज्यवादी ताकतें कट्टरपंथीयों के माध्यम से इन तीनों को इस्तेमाल प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध 1.25 करोड आबादी वाले प्रदेश को तबाह करने और भारत और पाकिस्तान की जनता को लूटने के लिये कर रही है।
कट्टरपंथी सोच मानवता के लिये एक अभिशाप है। वह हमेशा दूसरों के इशारों पर समाज में विघटन करने का काम करती है। उन्होंने पूरी दुनिया को तबाह कर दिया है। झूठे राष्ट्रवाद और सांप्रदायिक कट्टरता को आधार बनाकर यह ताकतें पनपती है। साम्राज्यवादी ताकतें इन अविचारी, अहंकारी और महत्वाकांक्षी लोगोंको धन देकर उनकी शक्ति बढाने का काम करती है और उन्हे अपना हथियार बनाकर इस्तेमाल करती है। कट्टरपंथी और कारपोरेट मीडिया बेलगाम होकर लूट से ध्यान भटकाने और युद्ध के लिये लोगों में जहर भरने और उन्माद पैदा करने का काम करते रहते है।
हम अपने देश को युद्ध की नशा और उन्माद चढे लोगों के भरोसे नही छोड सकते। आखिर यह देश हमारा भी है। आज गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण और भूखमरी से लढने की आवश्यकता है। शोषणमुक्त समाज निर्माण के लिये सब मिलकर शोषणकारी ताकतों से, कारपोरेटी साम्राज्यवाद से लढने की आवश्यकता है। साथ ही अपने अंदर के हिंसा के विरुद्ध लढने की भी आवश्यकता है।
सवाल हिंसा या अहिंसा के चयन का है। युद्ध के लिये आमने सामने खडी दोनों राज्यसत्ता और कट्टरपंथी विचारधारा हिंसा के पक्ष में ही खडी है। हिंसा के चयन का अर्थ श्रमिकों का शोषण, प्रकृति का दोहन और लूट की व्यवस्था का संस्थाकरण को स्वीकृति देना है। साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा पूरे दुनिया के लोगों में डर पैदा करके उन्हे गुलाम बनाने और खून की होली खेलकर और युद्ध के माध्यम से साम्राज्यवादी व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिये स्वीकृति देना है।
अहिंसा के चयन का अर्थ इस बात को मान्यता है कि हर मनुष्य के अंदर एक ही तत्व है। जो जड और चेतन में या सभी मे ईश्वर को देखते है। इस बात का पुरस्कार है कि सबकी भलाई में मेरी भलाई है और जनसेवा ही ईश्वर सेवा है। जिसमें दूसरों के अधिकार छीनकर भौतिक सुख के लिये जिने को नकार है। जिसमें किसी भी आधार पर मनुष्य में भेद मंजूर नही है। खुद को प्रकृति का हिस्सा बनाकर जीना और प्रकृति का संरक्षण करना, हर मनुष्य के जीने के अधिकार का सन्मान करना आदी शोषण मुक्त व्यवस्था की रचना निहीत है। पूंजी और राज्यसत्ता के नियंत्रण और हस्तक्षेप की जगह लोकशक्ति द्वारा समस्याओं का समाधान को स्वीकृति है।
साम्राज्यवाद हिंसा के द्वारा डर पैदा करके शोषण और लूट करता है। वह लिंग, रंग, जाती, धर्म, भाषा, श्रम, अस्मिता के आधार बटे हुये समाज को विद्वेश पैदा कर लडाता है या संकुचित राष्ट्रवाद को उकसाकर युद्ध करवाता है। साम्राज्यवाद का आधार हिंसा है। हमे समझना होगा कि हिंसा का जवाब हिंसा से देकर साम्राज्यवाद को परास्त नही किया जा सकता।
साम्राज्यवाद से मुक्ति अहिंसा से ही संभव है। जिसमें प्रतिपक्ष के प्रति विद्वेश, घृणा, वैर के लिये भी कोई स्थान नही है। सब के कल्याण की शुभकामना है। लेकिन शोषण और लूट को समाप्त करने के लिये मर मिटने की प्रतिज्ञा है। उसके लिये केवल नीति नही, अहिंसा में निष्ठा होनी चाहिये। ऐसे अहिंसा पर निष्ठा रखने वाले भारत के सभी नागरिकों को शांति सेना का निर्माण कर शांति और न्याय के लिये पहल करनी होगी। अहिंसा के रास्ते ही दुनिया में शांति और न्याय संभव है।