डॉ. अतुल शर्मा
पवित्र यमनोत्री धाम में सूर्य सुता की गोद से अविरल बहती यमुना जब पहाड़ों से नीचे उतरती है तो दिल्ली पहुंचते—पहुंचते प्रदूषित हो जाती है। मथुरा में कृष्ण जी की श्यामल पावन यमुना आज किस हाल में है और क्यों? उद्योगों द्वारा प्रदूषण दिल्ली में यमुना का जो हाल करता है उसे देखकर और महसूस कर मन दु:ख से द्रवित हो उठता है।
दिल्ली में यमुना पल्ला से होती हुई आती है और वजीराबाद से 50 किलोमीटर का रास्ता तय करती है। वजीराबाद से ओखला तक 22 किलोमीटर का रास्ता तय करती है जो यमुना का 2 ०/० हिस्सा है और इसी में 8 ०/० प्रदूषण रहता है।
यमुना सिकुड़ती जा रही है। इसके पानी मे BOD बायोलोजिकल आक्सीजन डिज़ाल्व बढ़ता है तो पानी मे आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। जिससे नदी में पलने वाले जीवों पर बुरा असर पड़ता है। पूजे जाने वाली यमुना प्रदूषित हो चुकी है। सिकुड़ती जा रही है। जिन्होंने पहले यमुना को अच्छा और साफ सुथरे रुप में देखा है वह बताते हैं कि इसका रुप रंग और स्वच्छता देखते ही बनती थी जो अब नहीं है।
प्रयास हुए पर आज भी यमुना प्रदूषित है। नदियों के प्रदूषित होने के दुष्परिणाम बहुत गम्भीर हैं। पहले सभ्यताओं का विकसित होना नदियों के किनारे ही शुरू हुआ था। पर अब तो नदियों के स्वरूप और गुणवत्ता पर सोचना पड़ रहा है। यह यमुना नदी प्रयागराज में गंगा से मिलती है।
यमुना का सांस्कृतिक परंपरागत और पर्यावरणीय महत्वपूर्ण रहा है। अविरल बहती यमुना में प्रदूषण बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
कोरोना काल में जब सब थम गया था तब यमुना साफ सुथरी दिखाई पड़ने लगी थी। पर अब फिर पहले जैसी हो चुकी है। यदि नदियों का अवैज्ञानिक दोहन न हो और उसमें कारखानों आदि का गन्दा न डाला जाये, सीवर न जाये तो यमुना अपने मूल स्वरूप में वापस आने लगेगी।
मेरी एक कविता जिसे प्रसिद्ध पर्यावरणविद् मेधा पाटकर ने अपने अभियानों में प्रयोग किया वह याद आ रही है — पर्वत की चिट्ठी ले जाना, तू सागर की ओर, नदी तू बहती रहना. “यह देश में विभिन्न जगह जनचेतना जगा रहा है।
वहीं जन पुरुष मैग्सेसे पुरुस्कार प्राप्त राजेन्द्र सिंह जी ने राजस्थान में नदियों को पुनर्जीवित किया है और दूसरी ओर लोग नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं। राजेन्द्र सिंह मेरे एक गीत का साथ देते रहे है— ” अब नदियों पर संकट है, सारे गांव इकट्ठा हों, अब सदियों पर संकट है, सारे गांव इकट्ठा हों”। यह जन गीत मातली की एक कार्यशाला में मैंने लिखा था जब पर्यावरणविद् सुरेश भाई, राधा भट्ट, रवि चोपड़ा आदि नदियों को बचाने का अभियान चला रहे थे।
यमुना की पुकार सबको सुननी चाहिए।
फोटो इंटरनेट से साभार