नवीन बिष्ट
अल्मोड़ा। जंगलों को बचाए बिना मानव जीवन बचाया नहीं जा सकता है। जंगलों को सबसे बड़ा खतरा आग से हो रहा है। वनाग्नि के कारण जल श्रोत निरंतर सूख रहे हैं, वहीं वन्य जीव व मानव के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। तमाम कारणों से ग्लोबल वार्मिगं खतरे रूप में हमारे सामने आ रही है। यह बात स्याही देवी विकास मंच के संथापक संयोजक गजेन्द्र पाठक ने कही। वह यहां पत्रकारों से ”औण दिवस” की तैयारी को लेकर बात कर रहे थे। प्रति वर्ष 1 अप्रेल को औण दिवस का आयोजन किया जा रहा है। पाठक ने कहा कि ”जंगल बचाओ जीवन बचाओ” अभियान के तहत जन जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। विषेश तौर पर ग्रामीणो को जागरूक किया जा रहा है ताकि आने वाले भविश्य को सुरक्षित करने की दिशा में सघन प्रयास किए जा सके।
गजेन्द्र पाठक ने कहा कि वन और पर्यावरणीय असंतुलन को लेकर पिछले बीस वर्शों से निरंतर हमारी संस्था काम कर रही है। इन वर्षों के अनुभवों आधार पर कह सकते हैं कि वनों को जो सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है तो उसमें आग सबसे बड़ा कारण है। वनों की आग बुझाने के लिए वन विभाग के पास पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं। स्वयं सेवी संस्थाओं के वालंटियर जिन्हें कोई सरकारी इमदाद नहीं मिलती, कोई सुरक्षा के साधन नहीं मिल पाते। बावजूद इसके आग से उसी प्रकार जूझते हैं जैसे सीमा पर हमारे सैनिक दुश्मन फौज से लड़ते हैं। वनाग्नि से लड़ते हुए कई फायर फायटर की जान चली जाती है। लेकिन उनका कोई सम्मान न वन विभाग करता और ना ही सरकार । उन्होंने कहा कि हमारी संस्था ने मांग की है कि वनों की आग बुझाने में प्राण गवाने वाले फायर फायटर को शहीद सैनिक की भांति सम्मान मिलना चाहिए। उनका 15 से 20 लाख का बीमा होना चाहिए ताकि उनके आश्रितों को सम्मानजनक राशि मिल सके। सरकार को मानव और वनो के रिष्तों की संवेदनशीलता को समझते हुए नियमों में संशोधन या परिमार्जन करना चाहिए। देखा जा रहा है कि वन्य जीवों व मानव के बीच निरन्तर संघर्श बढ़ रहा है, यह गम्भीर चिन्ता का विषय है। इस सबके पीछे वनों में बढ़ती आग की घटनाएं हैं। आग के कारण वन्य जीवों का भोजन समाप्त हो रहा है, वनस्पति नष्ट हो रही है।
पाठक ने कहा कि जिस प्रकार वनों में आग की घटनाएं बढ़ रही है उस अनुपात में बचाव के संसाधानों पर काम नहीं हो रहा है। दूसरी सबसे बड़ी चिन्ता इस बात की है कि ग्लेशियर निरंतर घट रहे हैं जिसका कारण ग्लोबल वार्मिंग है। घटते वनों के कारण वर्षा कम हो रही है। अध्ययन से पता चलता है कि इन तमाम कारणों से ऋतु चक्र बदल रहा है। धरती के बढ़ते ताप और बदलते ऋतु चक्र के चलते आने वाले दिनों में पूरे भारत को अन्न देने वाले प्रदशों की उपज घटती जाएगी। एक समय ऐसा आएगा जब अन्न का अभाव हो जाएगा। यह बात स्पष्ट है कि जब ग्लेशियर नहीं बचेंगे तो नदियों का जल कहां से मिलेगा । जल ही नहीं होगा तो जीवन की कल्पना भी नहीं कि जा सकती है। बहरहाल इस सबको देखते हुए लाजमी है कि वनां की सुरक्षा आग से की जाए। इस मौके पर नरेन्द्र सिंह बिष्ट, नवीन टम्टा, आर डी जोशी और मनोज सनवाल मौजूद रहे।
फोटो इंटरनेट से साभार