बलाश शिष्य / हिमांशु युवा
15 वीं शताब्दी के अंत में यूरोप के दो लुटेरों के अमेरिका और भारत की भयंकर लूट के बाद से ही अगली दो सदियों में यूरोपवासियों ने अमेरिका और भारत से भारी मात्रा में संपत्ति और प्राकृतिक संसाधनों की बेहिसाब लूट की। जिसके नतीजों से यूरोप में 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति हुई। इस क्रांति ने यूरोपवासियों के हाथ में माप, बिजली की ऊर्जा और नयी-नयी मशीनें दी जिससे उनके कारखाने दिन रात चलने लगे इन कारखानों में सामान बनाने के लिए भारी मात्रा में कच्चे माल की जरूरत के कारण वह अपना बेड़ा उठाकर व्यापार के बहाने अफ्रीका व एशिया की ओर निकल पड़ें।लातिनी अमेरिका और उत्तरी अमेरिका में तो वह पहले से ही मौजूद थे। इसी नीति को बंदुक-नाव (गनबोट) नीति कहते हैं।उस नीति का भरपुर फायदा उठाकर वे व्यापार के बहाने अफ्रीका व एशिया के देशों में अपना साम्राज्य कायम करने में सफल हुए।जिससे वहां से कच्चा माल मिलने में मुश्किलें न आए। भारत, दक्षिण पुर्व एशिया व अफ्रीका में इंग्लैंड,फ्रांस, इटली, हॉलैंड,स्पेन, पुर्तगाल, और जर्मनी के उपनिवेश तेजी से बनते गए। इसे राज्य उपनिवेशवाद (स्टेट कॉलोनिज़्म) कहा जाता है।बीसवीं सदी के बीच तक राज्य उपनिवेशवाद दुनिया के अधिकांश भागों में केवल बंदूक और फौज के बल पर ही कायम हो पाया।
बीसवीं सदी के बीच में आते आते दुसरा विश्वयुद्ध हुआ जिसमें युरोप की उपनिवेशी ताकतें आपस में लड़ मरी और कमजोर हो गई।दुसरे, भारत जैसे उपनिवेशों में आज़ादी के लिए आंदोलन चले नतीजा ये हुआ की राज्य उपनिवेशवाद में सबसे पहले भारत को आजादी मिली और उसके 30-35 सालों में अन्य देशों ने भी मुक्ति पाई। लेकिन गुलामी का फंदा बदल गया ।
अब नई गुलामी के तौर-तरीके बदल गए हैं। अब विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियां और उनके साम्राज्य विस्तार को अंजाम देने के लिए विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व व्यापारी संगठन जैसी कुख्यात नापाक तिकड़ी अपने काले कारनामें और घातक समझौतों के तहत काम करते हैं।इसके जरीए नई गुलामी आ रही हैं। जो पिछली ब्रिटिश गुलामी से कहीं ज्यादा भयानक, खतरनाक व बहुआयामी हैं।
इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उदय के साथ-साथ सेना के क्षेत्र में भी इन कम्पनियों की दखलंदाजी बहुत तेजी से जोर पकड़ रही है।ये निजी युद्ध की फर्में अनियंत्रित है उनके लिए सारे नियम कानून न के बराबर और इनकी जांच पड़ताल भी नहीं की जा सकती। ये पुरी दुनिया के लिए ये एक खतरा बन गयी है जैसुईट पीठ द्वारा नियंत्रित व संचालित नई विश्व व्यवस्था (New World Order) के उद्देश्यों की पुर्ति में कार्यरत हैं।
2003 में ब्रुकलिंग संस्थान में राष्ट्रीय सुरक्षा फेलो रहे “पीटर डब्लू सिंगर” की एक पुस्तक प्रकाशित हुई जिसका नाम था “कारपोरेट वैरियर- द राइस ऑफ प्राईवेटाईज्ड मिलिट्री इंडस्ट्री” जिसमें लेखक ने प्राईवेट सेनाओं का खासतौर से इराक में कार्यरत विशेष अध्ययन में बताया की इराक की जमीन पर प्राईवेट मिलिट्री फर्म बहुत व्यापक भूमिका निभा रही हैं।इराक की जमीन पर लगभग 100000 प्राईवेट मिलिट्री ठेकेदार काम कर रहे हैं। 2004 में “नई आजादी उद्घोष” में छपे “अंतर्राष्ट्रीय गणितज्ञ एवं आजादी बचाओ आंदोलन के संस्थापक प्रो. बनवारी लाल शर्मा” के लेख “हिंसा के ज्वालामुखी पर बैठी दुनिया: बहुराष्ट्रीय सेनाओं का उदय” से जानकारी मिली है की ये ठेकेदार फोर्स बहुराष्ट्रीय है। इनमें पुराने अमेरिकी फौज के पुराने सैनिक,ब्रिटेन के पुराने सैनिक,साऊथ अफ्रिका के लोग,युक्रेन, चिली, और रूस-भारत के सैनिक शामिल हैं।यह सब देखते हुए लगता है कि वह दिन दुर नहीं जब बहुराष्ट्रीय फौजें अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में छा जाएगी और दुसरो को हटा देगी।ऐसा लगता है मध्य युग कि तरह प्राईवेट सेनाएं जगह जगह बनेगी।आज 18वर्ष बाद डा.शर्मा की दूरदृष्टा भविष्यवाणी भारत ही नहीं बल्की विश्व पटल पर सच साबित हुई।
पी एम सी यानी प्राईवेट मिलिट्री कॉरपोरेशन जो की एक निजी सैन्य कंपनी ( पीएमसी ) है।जो आर्थिक (वित्तीय) लाभ के लिए सशस्त्र युद्ध या सुरक्षा सेवाएं प्रदान करती है। पीएमसी अपने कर्मियों को ” सुरक्षा ठेकेदार ” या ” निजी सैन्य ठेकेदार ” के रूप में जानते हैं।
कम्पनी जिस देश में जाती है सबसे पहले सर्वाधिकार सुरक्षित करती है ताकी भविष्य में सैन्य बल की ताकत से राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक हस्तक्षेप मजबूती से कर सकें। 1971 में कम्पनी द्वारा लीबिया के कर्नल मुअम्मर गद्दाफी के तख्ता पलट का असफल प्रयास कर चुकी है।इसके बाद कम्पनी के मुख्य संचालको ने 1972 में असहमति जताने के बाद पद से इस्तिफा दे दिया। 1995 में प्राईवेट मिलिट्री ने उग्रवादी संगठन रिवोल्यूशनरी युनाइटेड फ्रंट को सहयोग दिया जिसने द. अफ्रीका के हजारों अपहृत लड़कों और लड़कियों को सैनिकों या वेश्याओं के रूप में सेवा करने के लिए मजबूर किया गया और जिन्हें लड़ाकों के रूप में चुना गया उन्हें कभी-कभी अपने माता-पिता की हत्या करने के लिए मजबूर किया जाता था।
अग्निपथ स्कीम (स्कैम) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिमाग की उपज नहीं बल्की जैसुईट पीठ द्वारा नियंत्रित एक गुप्त एजेंडा है जो की बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों और गुप्त संगठनों के दबाव में लिया गया फैसला है। जिसकी पुष्टि दिनांक 4 सितम्बर 2020 को Indian Defence Review की साईट पर “ब्रिगेडियर प्रदीप शर्मा” के लेख “द इंडियन आर्मी कॉन्ट्रैक्ट विद प्राईवेट मिलिट्री कम्पनीज़:वाय फॉरवर्ड” से होती है।
प्रचंड बहुमत वाली केंद्र सरकार ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सामने घुटने टेक कर जता दिया है की भारत बहुराष्ट्रीय गुलामी के कालचक्र में बड़ी तेजी से फंसता जा रहा है और देश की सत्ता पर आसीन चेहरे आज उनके लिए वायसराय की भुमिका में काम कर रहे हैं।
पहला संकट,अग्निवीर की बड़े स्तर पर रिटायरमेंट के बाद देश में अस्थिरता का माहौल पैदा होगा।चुंकि कम्पनियों की मंशा यही है इसलिए हजारों देशी-विदेशी कम्पनियां अनुबंध के आधार तैयार अग्निवीरों को अपनी निजी सैन्यबल के रूप में तैनात करेगी।जो आम जन के संघर्षों और अधिकारों की लड़ाई को कुचलने का काम करेगी। जैसे आज भी भारत में तैनात हैं और छोटे-छोटे स्तर पर निजी कम्पनियों को संरक्षण दे रहे है।कुख्यात कम्पनी के दम पर चलने वाली स्कीम अग्निपथ अगर सफल हुई तो कम्पनियों के दोहरे चरित्र वाले कारनामों और लूट आधारित व्यवस्था को रोकना आसान नहीं होगा।
दुसरा संकट,जिन नौजवानों को इन निजी कम्पनियों में जगह नहीं मिल सकेगी वह हथियार चलाने में माहीर नौजवान इसी पीएमसी के तले उग्रवादी, गुरिल्ला व आतंकी संगठनों का न केवल हिस्सा बनेंगे बल्की देश के भीतर एक आपराधिक माहौल भी खड़ा करेंगे और देश में सामाजिक टकराव की स्थिति तैयार होगी और इसी टकराव से महा गृहयुद्ध जैसी बडी घटना का जन्म होगा।
तीसरा संकट, देशी विदेशी कम्पनियों द्वारा पिछली सदियों से प्राकृतिक संसाधनों की लूट का सिलसिला जारी है। आजादी बचाओ आंदोलन कई वर्षों से प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय जन की मिल्कियत स्थापित करने पर काम कर रहा है और कई स्थानों पर जनसमुदायों की संसाधनों पर मालकियत स्थापित भी करवाई गई है। संसाधनों पर जनसमुदाय की मिल्कियत स्थापित न हो पाए और बड़े स्तर पर जल,जंगल,जमीन,लघु और मुख्य खनिज पर कम्पनियों की लूट और पकड़ कायम रहे इसी उद्देश्य से भारत पर दबाव के तहत इस स्कीम(स्कैम) को बेरोजगारी से जोड़ कर कामयाब करने में सरकार और पीएमसी अपने निजी फायदों को साकार करने की खतरनाक मंशा पाल रही है।
सरकारें व अदालतें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सामने समर्पण करती जा रही है। एक-एक करके सारे सैक्टर देशी-विदेशी कम्पनियों के हवाले व सरकारी व्यवस्था के सारे अंगों में देशी-विदेशी घुसपैठ बढ़ती जा रही है।अदालतों में भी ऐसी होड़ मची है की वे भी निजीकरण, भूमंडलीकरण और उदारीकरण की नीतियों के पक्ष में फैसले और सरकारें एक-एक करके अपनी जिम्मेदारीयों से हाथ खिंचती जा रही है। सब कुछ निजी हाथों या बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पास जा रहा है।यह लोकतंत्र के लिए अशुभ लक्षण है।जरूरत है कि देश के लोग जनांदोलन के लिए कमर कसे सिविल नाफरमानी का ही रास्ता अब आमजन के पास बचा है।अब चिप्पिकारी-पच्चिकारी, लीपापोती से काम नहीं चलेगा। समय आ गया है इन सैकड़ों स्थानीय संघर्षों को देशभर के लोगों का सक्रिय समर्थन और सहयोग मिले और कारपोरेटो को खदेड़ने के लिए राष्ट्र व्यापी आंदोलन खड़ा हो।
आप देश के जागरूक नागरिक हो आप से अपील है की आप इस आंदोलन में आगे आयें और जैसुईट पीठ,विश्वबैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व व्यापार संगठन वह गुप्त संस्थाओं के नापाक इरादों को नेस्तानाबूद करने की लड़ाई में आगे आएं क्योंकि जब तक पेड़ की जड़ पर वार नहीं होगा तब तक जहरीला पेड़ धराशाही नहीं होगा।
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