खास तौर से भौगोलिक विषमताओं वाले यहां के पर्वतीय क्षेत्रों में मातृ एवं शिशुओं की देखभाल के सरकारी इंतजाम अति दयनीय दशा में हैं।पहाड़ के दुर्गम क्षेत्रों के हालात बद से भी बदतर हैं। यहां के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र स्वयं गम्भीर रूप से बीमार हैं। इन केन्द्रों मे पानी व बीजली जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं होने से ही अंदाजा लगाया जा सकता है ये केन्द्र किस तरह संचालित हो रहे होंगे। इन बीमार प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों व अस्पतालों पर आश्रित रोगी सिर्फ भगवान भरोसे ही हैं।
जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण बागेश्वर जनपद की काफलीगैर तहसील में बागेश्वर ब्लाॅक का सबसे अधिक जसंख्या वाला असों मल्लाकोट गांव है। इस गांव की जनसंख्या लगभग 2600 है और कहने को यहां एक एएनएम सैन्टर है लेकिन यहां नियुक्त एएनएम माह में एक या दो बार ही आती है। वह गांव में न रह कर जनपद मुख्यालय पर निवास करती हैं। एएनएम सैन्टर में न बिजली का संयोजन है ना पानी का। गांव के कुछ तोक मोटर सड़क से 4 से 5 किलोमीटर दूरी पर हैं। गम्भीर रोगियों को सड़क तक डोली में उठाकर लाते हैं। रास्ते इतने संकरे हैं कि जान जोखिम में डालकर लोग मुश्किल से एएनएम सैन्टर व सड़क तक पहुंचते हैं परन्तु एएनएम सैन्टर पहुंचने पर उन्हें अधिकतर वहां ताला ही दिखता है। ग्रामीणों का कहना है कि यहां एक फार्मासिस्ट आते तो हैं पर वे 11 बजे के बाद सैन्टर पर कभी भी मौजूद नहीं रहते। इनके विरुद्ध लोगों का यह भी कहना है कि ये शहर से नशीली चीजें लाकर यहां के युवाओं को बेचते हैं। इनके पास एक लाइसैंसी पिस्टल भी है।
एएनएम बबीता गोस्वामी से इस बावत बात करने पर उन्होंने बताया कि वे अधितर फील्ड में रहती हैंए उनके पास 5 गांव असों मल्लाकोटए तरमोलीए सीमतोली.2ए पाना व किसरोली की जिम्मेदारी है जिनमें उन्हें फील्ड वर्क करना होता है। इसी से वे एएनएम सैन्टर में नियमित नहीं बैठ सकती हैं। उनका आवास जनपद मुख्यालय में होने के कारण वे गांव में सायंकालीन व रात्रि सेवा नहीं दे पाती। वहीं ग्राम प्रधान नन्दन सिंह असवाल ने बताया कि उनके गांव में कई घर खाली हैं जहां वे स्वास्थ्यकर्मियों को आवास उपलब्ध कराने को तैयार हैं परतु फार्मास्टि व एएनएम गांव में रहने को तैयार नहीं हैं। इससे दोपहर बाद या रात को किसी भी गर्भवती महिला को किसी भी प्रकार की तकलीफ होने पर उन्हें गाड़ी बुक कर 38 किलोमीटर दूर जनपद मुख्यालय बागेश्वर जाना पड़ता है या 80 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा जाना पड़ता है।
इस तरह सरकारी स्तर पर भगवान भरोसे निर्भर पूरे इलाके में दायी मां के नाम से प्रसिद्ध जयंती देवी ही गर्भवती महिलाओं की आस है। जो पिछले 35 वर्षों से इस पूरे इलाके में दायी का काम करते हुए इस काम में दक्ष हो चुकी हैं। वे दिन.रात हर समय उपलब्ध रहकर गर्भवती महिलाओं की देखभाल व प्रसव का कार्य बड़ी कुशलता से कर रही हैं। यह एक बड़ी बिडम्बना है कि प्रशिक्षित एएनएमए डाॅक्टर व फार्मासिस्ट जिस कार्य का वेतन लेते हुए भी करने में असमर्थ हैंए उसी कार्य को दायी जयंती देवी अपना धर्म समझते हुए सेवाभाव से कर रही हैं।
जयंती देवी ने बताया कि वे अब तक असों मल्लाकोटए किसरौलीए सिरसोलीए तरमोलीए पाना व मयो गांव के लगभग 3500 से अधिक बच्चों का जन्म घर पर ही सफलतापूर्वक करा चुकी हैं और आज तक एक भी प्रसव कराने में असफलता नहीं मिली। जयंती ने बताया असम राइफल्स मणिपुर मेें सेवारत अपने पति मोहन सिंह मनकोटी के साथ रहने के दौरान उनके पड़ोस में रहने वाली एक नर्स ने उन्हें अपने साथ आर्मी अस्पताल में सहायिका के रूप में कार्य करना सिखाया। इस दौरान उन्होंने 10 वर्षों तक निरंतर आर्मी अस्पताल में प्रसव सम्बंधी कार्य सीखा और धीरे.धीरे इसमें निपुणता हासिल कर ली। पति के सेवानिवृत्त होने के बाद गांव में रहने पर उन्होंने गर्भवती महिलाओं की मदद करनी शुरू की। उन दिनों भी इस गांव में न सड़क थीए न बिजली थी और न ही एएनएम सैन्टर था। तब से लगातार जयंती देवी इस इलाके में दायी मां का कार्य कर रही हैं। श्रीमती जयंती ने बताया कि वे महिलाओं के अलावाए गायए भैंस व बकरी की भी डिलीवरी कराती हैं।
इस गांव से 15 किलोमीटर दूर बोहाला में मातृ एवं शिशु कल्याण केन्द्र में भी दांतों की डाॅक्टर के अलावा कोई अन्य डाॅक्टर नहीं है। हरियाणा निवासी वह दंत चिकित्सक भी अपना इस्तीफा देने को तैयार है। गांव से जुड़े दोक क्षेत्र के बीमार को डोली में ऊपर सड़क तक लाया जाता है और किसी तरह अल्मोड़ा या हल्द्वानी के अस्पतालों तक पहुंचाया जाता है। सामाजसेवी व राजकीय इण्टर कालेज के अध्यक्ष शंकर सिंह ने बताया कि क्षेत्र में कोई डाॅक्टर न होने से मामूली रोगों का उपचार करने के लिए भी लोगों को अन्यत्र जाना पड़ता है।
बोहाला के फार्मासिस्ट का कहना है कि असों गांव में एएनएम सैन्टर पर पानी व बिजली की व्यवस्था नहीं होने से प्रसव नहीं कराया जाता है। जिसके लिए उच्चाधिकारियों को कई बार पत्रचार करने के बाद विभाग द्वारा सर्वे भी कराया गया परन्तु कोई कार्य नहीं हुआ। आशा वर्कर गंगा असवाल का कहना है कि उसे गर्भवती महिलाओं को अल्ट्रासांउड करना होता है परन्तु जिले में एकमात्र अल्ट्रासाउंड मशीन हैए उसमें भी स्पेशलिस्ट यदा.कदा ही आते हैं और नम्बर लगाया जाता है जो कई दिनों के बाद का होता है। इससे बचने के लिए परिजन गर्भवती महिलाओं को अन्य जिलों में ले जाकर अल्ट्रासाउन्ड व अन्य जांच कराते हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि डाॅक्टर की व्यवस्था नहीं होने के चलते 2019 में 32 वर्षीया दीपा असवाल की घर पर ही डिलीवरी कराने पर बच्ची जन्म के कुछ ही घंटों में मर गयी और फिर दीपा की भी एक सप्ताह के भीतर मौत हो गयी।
उत्तराखड के पर्वतीय क्षेत्रों में जीवन कितना नारकीय हो गया है इसकी एक अन्य बानगी देखिये। पिथौरागढ़ जिले की गंगोलीहाट तहसील के गांव पिलखी निवासी तिनराम को इसी शनिवार देर रात सीने में तेज दर्द हुआ। परिजन उन्हें गंगोलीहाट ले गयेए जहां से उन्हें राजकीय अस्पताल हल्द्वानी के लिए रेफर कर दिया गया। इसके बाद तिनराम को टैक्सी बुक कर दर्द झेलते हुए लगभग साढ़े 6 घंटे की यात्रा कर 197 किण्मीण् दूर तराई स्थित हल्द्वानी के सुशीला तिवाड़ी राजकीय अस्पताल आना पड़ा। उनकी मुसीबत यहां आकर तब और बढ़ गईए जब उन्हें पता चला कि यह अस्पताल सिर्फ कोरोना मरीजों के इलाज के लिए आरक्षित है। गरीबी रेखा से नीचे किसी तरह जीवन.निर्वाह कर रहे परिजन घर से जल्दबाजी में बीपीएल कार्ड साथ लाना भूल गये थे लेकिन उन्हें थोड़ा संतोष जेब में रखे आयुष्मान कार्ड का था।
गरीब तिनराम के परिजनों ने अपने एक परिचित पुलिसकर्मी की मदद से हल्द्वानी के एक निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया। जहां पर उन्हें रविवार की रात भर आइसीयू में रखा और सुबह 70 हजार रुपये का बिल थमा दिया गया। यहां गरीबी की मार झेल रहे इस परिवार का आयुष्मान कार्ड भी काम नहीं आया। इस पर उक्त पुलिसकर्मी ने अपनी जान.पहचान के किसी व्यक्ति के माध्यम से सांसद अजय भट्ट से सम्पर्क कर उनके सिफारिशी पत्र के साथ तिनराम को किसी तरह ऋषिकेश स्थित एम्स भिजवाने की व्यवस्था की।
कुल मिलाकर उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में न ढंग के अस्पताल हैंए न डॉक्टर हैंए न चिकित्सा उपकरण हैं। पूरे जिले में हृदयए बच्चों के डाॅक्टर एक या दो ही हैं। ऐसी स्थिति में यहां के लोगों का जीवन बड़ा कठिनाइयों भरा है। इसी कारण हजारों गांवों के लोग पहाड़ छोड़कर नीचे मैदानी इलाकों में स्थाई रूप से बस चुके हैं। इससे तिब्बत ;चीनद्ध से लगा पूरा सीमांत इलाका बहुत तेजी से जनशून्य होता जा रहा है। यदि सरकार इस विशाल सीमा क्षेत्र में चिकित्साए स्वास्थ्यए शिक्षाए सड़कए संचार की अच्छी सेवाएं उपलब्ध नहीं कराती तो यह आगे चलकर निश्चित ही देश की सुरक्षा के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है।