राजीव लोचन साह
उत्तराखंड को लेकर एक चिन्ताजनक समाचार है। यहाँ जल विद्युत परियोजनाओं द्वारा बार-बार किये जा रहे विनाश के बावजूद भारत सरकार गंगा एवं इसकी सहायक नदियों पर सात जल विद्युत परियोजनायें बनाने को उतावली हो गई है। याद रहे कि वर्ष 2013 में हुए भीषण विनाश, जिसमें केदारनाथ हादसे में पाँच हजार से अधिक लोगों ने अपने प्राण गँवाये थे और उत्तराखंड में अन्यत्र भी जान-माल की भारी क्षति हुई थी, सर्वोच्च न्यायालय ने यहाँ जल विद्युत परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी। उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने डॉ. रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित की, जिसने पर्याप्त जाँच-पड़ताल के बाद वर्ष 2014 में दी गई अपनी रिपोर्ट में यह निष्कर्ष दिया कि आपदा पैदा करने में गंगा एवं सहायक नदियों पर बन रही जल विद्युत परियोजनाओं का बहुत बड़ा हाथ है। केन्द्र सरकार ने तब इस रिपोर्ट को स्वीकार कर दो दर्जन परियोजनाओं को रोक दिया था। मगर उत्तराखंड सरकार इस निर्णय से असहज हो गई और लगातार कोशिश करती रही कि यह रोक किसी तरह हटे। अब केन्द्र सरकार ने भी अपना रुख बदला है और ऊर्जा एवं जल शक्ति मंत्रालयों के साथ आपसी सहमति बना कर सर्वोच्च न्यायालय में एक शपथपत्र दिया है कि सात जल विद्युत परियोनायें बन सकती हैं। ताज्जुब की बात यह है कि इन परियोजनाओं में इसी साल फरवरी में धौलीगंगा में बाढ़ से बही एन.टी.पी.सी. की तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना भी शामिल है। अन्य परियोजनायें हैं 1000 मेगावाट की टिहरी (दूसरा चरण), 444 मेगावाट की विष्णुगाड़ पीपलकोटी, 99 मेगावाट की सिगोली भटवाड़ी, 76 मेगावाट की फाटा ब्योंग, 15 मेगावाट की मदमहेश्वर ओर 4.5 मेगावाट की कालीगंगा (दो)। यदि सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार की बात मान ली तो इन सातों के साथ लगभग बीस अन्य परियोजनाओं के बनने का रास्ता खुल जायेगा। उत्तराखंड के लिये यह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण होगा।