विवेक मिश्रा
देश में टनल पार्किंग जैसी सुविधा पहाड़ों पर विकसित करने की शुरुआत उत्तराखंड से हो रही है। इसका मतलब होगा कि ऊंची पहाड़ियों के बीच ऐसी सुरंगें बनाई जाएगी जहां वाहनों को खड़ा किया जा सकेगा। पर्यावरणविद आगाह कर रहे हैं कि हिमालय की संवेदनशील जगहों पर पहाड़ों को खोदकर सुरंग बनाने का काम त्रासदी में बदल सकता है।
उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट ने बीते सप्ताह ही टनल पार्किंग प्रस्ताव को मंजूरी दी है। हालांकि इस परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी की कसरत अभी बाकी है। पर्यावरण मंजूरी के प्रस्ताव में परियोजना से होने वाले नुकसान का आकलन सरकार को बताना होगा। हालांकि, पर्यावरणविद इस टनल की खुदाई से निकलने वाले मलबे को एक्विफर और पारिस्थितिकी के लिए बड़ा नुकसान मान रहे हैं।
उत्तराखंड सरकार का कहना है कि सैलानियों की बढ़ती संख्या के कारण पहाड़ों पर वाहनों का लंबा जाम लगता है ऐसे में टनल पार्किंग इस समस्या का एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
गंगा आह्वान की मल्लिका भनोत ने डाउन टू अर्थ से बताया कि सरकार यदि टनल पार्किंग जैसे कदम उठाएगी तो निश्चित ही पर्यटकों की संख्या में बढोत्तरी होगी जबकि सैलानियों की बढ़ती संख्या नाजुक हिमालय के लिए खतरनाक है। सरकार को सबसे पहले पर्यटकों को रेग्युलेट करने पर ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि टनल पार्किंग से जुड़ा कोई भी सरकारी दस्तावेज अभी सार्वजनिक नहीं है। यह भी नहीं पता कि किन-किन स्थानों को चिन्हित किया गया है। यह सब सामने आने के बाद स्पष्ट तौर पर अंदाजा मिलेगा कि यह परियोजना कितनी संवेदनशील होगी। आम तौर पर पहाड़ अस्थिर हैं और वहां टनल निर्माण न सिर्फ त्रासदीपूर्ण हो सकता है बल्कि पहाड़ों पर तो फूंक-फूंक कर कदम रखने होंगे।
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में सरकार के हवाले से दावा किया गया है कि लोक निर्माण विभाग ने राज्य में 180 स्थानों को चिन्हित किया है और पहले चरण में पौड़ी और गढवाल में 12 टनल पार्किंग स्थानों पर काम होगा। इस काम को एनएचआईडीसीएल, टीएचडीसी, यूजीवीएनएल और आरवीएनएल मिलकर एग्जीक्यूट कराएंगी।
बीते वर्ष ही अगस्त, 2021 में मीडिया रिपोर्ट्स में उत्तराखंड सरकार ने टनल पार्किंग बनाने की अपनी परियोजना की मंशा को जाहिर किया था। लोक निर्माण विभाग ने अपने बयान में कहा था कि इस विकल्प पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और इसकी संभावनाएं तलाशी जाएंगी। इनमें अल्मोड़ा, रामनगर, धारचूला, भीमताल, रानीखेत, अगस्त्यमुनि, श्रीनगर, उत्तरकाशी, चंबा, चमोली, गोपेश्वर, मसूरी, नैनीताल, पौड़ी, छमियाला और गुप्तकाशी में टनल पार्किंग की संभावनाएं ताली जानी थीं।
चारधाम परियोजना हो या फिर पनबिजली परियोजनाएं सभी जगह मलबे की अवैध डंपिंग एक बड़ा मुद्दा रहा है। ऐसे में यदि पहाड़ों को खोदकर सुरंगे बनाई जाएंगी तो निश्चित ही मलबा का प्रबंधन एक बड़ी चुनौती होगी साथ ही वह उस जगह को अस्थिर भी बना सकते हैं।
‘डाउन टू अर्थ’ से साभार