विनोद पांडे
नैनीताल के उत्तरी छोर पर स्थित एक इलाके का नाम सूखाताल होने के बाबजूद भी हमेशा पानी के मुद्दों को लेकर चर्चाओं में रहता है। कारण यह है कि “नेशनल इंस्टिट्यूट आफ हाइड्रोलाॅजी” का मानना है कि ये इलाका जो कि मानसून के दौरान एक झील में बदल जाता है, एक बहुत ही बड़ा भूमिगत बहता हुआ जल भंडार है, जो नैनीताल के तालाब में आने वाले जल प्रवाह का करीब 40 प्रतिशत भाग का योगदान करता है। अभी चर्चा का कारण यह है कि सरकार इसके “सौंदर्यीकरण” आधारित “पुर्नजीवन” के नाम पर करीब 27 करोड़ की एक परियोजना पर काम कर रही है। इसे जिला प्रशासन सरकार की पर्यटन विकास एक महत्वाकांक्षी योजना बताती है। नैनीताल के पर्यावरण के प्रति चिंतित रहने वाले लोगों को इस अवैज्ञानिक पुर्नजीवन के बारे में जानकारी तभी मिल पायी जब सूखाताल में भारी-भरकम जेसीबी मशीनों के साथ सीमेंट-सरिया आदि का सुबह से देर शाम तक काम होते दिखा। बाद में यह भी पता चला कि कई महीनों पहले प्रशासन ने एक बैठक करके नगर के कतिपय गणमान्य लोगों के साथ बैठक करके इस परियेाजना पर उनकी “सहमति” की खानापूरी कर ली थी। लेकिन आम जनता में इस परियोजना की कोई भनक तक नहीं थी। इसलिए निर्माण कार्य शुरू होने के बाद शहर में नैनीताल के अस्तित्व को लेकर कई आशंकाऐं व्यक्त की जाने लगी। अंततः इन लोगों ने इस संबध में प्रशासन से विचार विमर्श की मांग की गई और पर्यावरण एनजीओ “सीडार” की पहल पर प्रशासन ने 14 जुलाय को एक सिविल सोसायटी की बैठक कर इस संबध में परियोजना के बारे में बताया। इस सभा में भारी संख्या में स्थानीय लोगों ने भाग लिया जो यह दर्शाता है कि वास्तव में लोग इस परियोजना को लेकर चिंतित हैं।
इस बैठक व अन्य चर्चाओं से सूखाताल के बारे में कई तथ्य व अति महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आयीं-
1. प्रशासन का मानना है कि नैनीताल में पर्यटकों के आकर्षण स्थलों को बढ़ाये जाने की आवश्यकता है। ताकि पर्यटक नैनीताल में अधिक समय रुक सकें। जबकि तथ्य यह है कि नैनीताल में पर्यटकों की भीड़ और उनसे जनित ट्रेफिक कई सालों से नैनीताल की आम जनता और पुलिस प्रशासन के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है।
2. इस परियोजना में सूखाताल में वर्षों से गिराये जा रहे मलुवे को जो उस मौसमी ताल के जल अवशोषण के लिए बाधक बन रहा है को हटाये जाने (डेजिंग) की कोई व्यवस्था नहीं है।
3. पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए दो कृत्रिम सदाबहार ताल बनाये जा रहे हैं और इन दो तालों के बीच में घूमने के लिए एक पैदल चलने का मार्ग होगा। एक किनारे पर एक फूड प्लाजा होगा और कुछ हस्तशिल्प की दुकानें होगीं, आदि आदि। बांकी बची जमीन में वृक्षारोपण किया जायेगा।
4. उपरी तालाब के तल में पानी को रोकने के लिए टाईलों का प्रयोग किया जायेगा। विशेषज्ञों का मत है कि तालाब का तल कृत्रिम होने के कारण उसका पानी सड़ जाता है, इस तरह का निर्माण पूरी तरह इस ताल को कृत्रिम ताल में बदल देगा और निश्चित रूप से इसके परिणाम आने वाले सालों में खतरनाक हो सकते हैं।
5. मानसून के बाद जब कृत्रिम तालाब के पानी का तल कम हो जायेगा तो उसे सदानीरा रखने के लिए भूमिगत जल को पंपों की सहायता से निकाल कर तालाब को फिर भर दिया जायेगा।
6. सूखाताल का क्षेत्रफल करीब 22000 वर्गमी0 था जो अतिक्रमण के कारण घटकर अब इसका आधा रह गया है। इसलिए प्रशासन दबी जुबान में इस “सौंदर्यीकरण” को संभावित अतिक्रमण से बचाने का उपाय समझता है।
7. भूगर्भवेत्ता सी.सी.पंत के अनुसार सूखाताल ताल क्षेत्र के ठीक बीच से नैनीताल की फाॅल्ट लाइन गुजरती है। भूगर्भ में फाॅल्ट लाइन का अर्थ भूगर्भीय दरार होता है। ये दरार यहां से होकर बलियानाला से गुजर कर काठगोदाम तक जाती है। इस दरार के कारण पूरा नैनीताल भंयकर रूप से संवेदनशील माना जाता है। भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार सूखाताल की उत्पत्ति इसी दरार के धंसने के कारण हुई है। इसलिए इसके उपर किसी किस्म का निर्माण और छेड़छाड़ देर-सबेर खतरनाक हो सकती है।
8. सूखाताल से 18 से 20 मिलियन लीटर प्रतिदिन यानी 7.3 मिलियन घनमीटर पानी प्रति वर्ष 60 मीटर गहरे पंपों की मदद से किया जाता है। जो नैनी झील के संपूर्ण आयतन के बराबर है।
9. सूखाताल की संरचना डोलोमाइट और लाइमस्टोन चट्टानों की है, इस तरह की भूमिगत संरचनाऐं जल संरक्षण और जल प्रवाह के लिए आदर्श माध्यम माने जाते हैं। सूखाताल की भूमि में जल शोषण क्षमता हिमालयी क्षेत्रों के अन्य स्रोतों के मुकाबले सर्वाधिक है। इन कारणों से सूखाताल के नीचे एक गतिमान जल भंडार है, जो नैनीताल की झील व अन्य जल स्रोतों को साल भर जल आपूर्ति करता है। इसलिए सूखाताल जलग्रहण के लिए भी एक विशिष्ट संरचना है।
10. “सीडार” की एक रिर्पोट के अनुसार सूखाताल में मलुवा भर जाने से इसकी जल धारण क्षमता इतनी घट गयी है कि कम वर्षात वाले सालों में भी इसकी झील भर जाती है। बिना डेजिंग किये और कुछ अतिरिक्त निर्माण से संभवतः इस ताल की जल संग्रहण क्षमता और न घट जाय।
11. सूखाताल में गिरने वाले चार बर्षाती नाले को कहीं और मोड़ दिया गया था। प्रशासन का कहना है कि अब ठीक कर दिया है पर पता चला है कि इनमें से एक नाले से सीवर आता है।
12. नैनीताल के वैटलैंड होने के प्रश्न पर प्रो0 अजय रावत ने बताया कि उत्तराखण्ड में कोई भी वैटलैंड क्षेत्र अभी तक चिन्हित नहीं किया गया है। जब कि अभिलेखों के अनुसार इन तालाबों को वैटलैंड के रूप में चिन्हित किया गया है। इस बैठक में इस कानूनी पहलू पर कोई चर्चा नहीं की गई।
13. कुछ लोगों का विचार था कि प्रस्तावित निर्माणाधीन झील के तल को टाइलों के बजाय एक खास किस्म की मिट्टी से बनाया जाय ताकि पानी का भूमिगत प्रवाह जारी रहे।
14. इस परियोजना के इंजीनियरों ने बताया कि सूखाताल से प्राकृतिक रूप से भूमि में रिसने वाले पानी को अब कृत्रिम रूप से दक्षिणी छोर से छेद बनाकर जमीन में अवशोषित कराया जायेगा।
15. प्रशासन का तर्क है कि सूखाताल में पर्यटन से रोजगार के अवसरों की वृद्धि होगी।
16. सिविल सोसायटी की ओर से कहा गया है कि नैनीताल जैसे संवेदनशील स्थानों पर होने वाले किसी भी परियोजना में पारिस्थिकी (ईकोलोजी) को शीर्ष प्राथमिकता मिलनी चाहिये। लेकिन इस परियोजना में कहीं पर भी पारिस्थिकी के किसी भी आयाम पर ध्यान नहीं दिया गया है।
इस बैठक में बहुत अधिक संख्या में नागरिकों का भाग लेने से यह स्पष्ट है कि नैनीताल के नागरिक नैनीताल के अस्तित्व को लेकर चिंतित हैं। नैनीताल में जब भी संरक्षण के लिए पैसा आता है तो सरकार जगह जगह पर सौंदर्यीकरण के नाम पर भारी भरकम निर्माण कार्य करवा देती है। आमतौर पर प्रकृति के बीच में ऐसा तथाकथित सौंदर्यीकरण आंखों में चुभने लगता है। पर प्रशासन को इस बात से कोई मतलब नहीं होता है कि निर्माण कार्य के परिणाम क्या होते हैं, न ही इन निरर्थक और बेहूदे कामों के लिए किसी की जिम्मेदारी तय की जाती है। नैनीताल में न पार्किंग की पर्याप्त व्यवस्था है न ही कूड़ा निस्तारण की व्यवहारिक व्यवस्था। जिसके कारण यहां के पर्यावरण में प्रदूषण बुरी तरह बढ़ रहा है। इसलिए नैनीताल का पर्यटन अनियंत्रित श्रेणी में है। हर काम केवल इंजीनियरिंग की दृष्टि से ही किया जाता है और कभी भी पारिस्थिकीय बारीकियों पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया गया है। सौंदर्यीकरण का अर्थ कृत्रिम कंक्रीट की संरचनाऐं मान लिया गया है। आमतौर पर सिविल सोसायटी या पर्यावरण के नाम पर प्रशासन की तरफदारी करने वाले कुछ लोगों की सहमति लेकर खानापूरी कर ली जाती है। प्रदूषण का सबसे बुरा परिणाम यह है कि नैनी झील जो कि यहां के आकर्षण का आधार है, बीमार है, उसे तक “एरियेसन” के जरिये बचाया गया है।
सौंदर्यीकरण के धंधे की नजर अब नैनीझील की गंगोत्री सूखाताल पर पड़ गयी है। जिसमें पारिस्थिकीय पहलुओं की जानबूझ कर उपेक्षा की जा रही है। जिसके दुष्परिणाम रातों रात तो सामने नहीं आयेंगे बल्कि लंबे समय के बाद दिखेंगे। तब तक कहीं ये छेड़ाखानी सहने की सीमाओं से बाहर न हो जाय। इसलिए जानकार व जागरूक नागरिकों को अभी इसके लिए कोशिश करनी चाहिये। इस बात की संभावना नहीं है कि सरकार बैठकों, विचार-विमर्शों से अपने इरादों और निर्णय को बदल दे। जाहिर है इसके लिए न्यायिक उपायों तक सोचना होगा।
यदि सरकार सूखाताल को “पुर्नजीवित” करने के प्रति वास्तव में गंभीर है तो क्यों नहीं ईकोलाॅजी और प्रकृति आधारित सस्ती और व्यवहारिक तकनीकों से पुर्नजीवन और सौंदर्यीकरण को करे। जिसमें सीमेंट-कंक्रीट न हो, सदाबहार ताल और फूड प्लाजा जैसी चमक-धमक भले ही न हो पर निश्चित रूप से नैनी झील और सूखाताल के जल भंडारों को संरक्षित करने का वैज्ञानिक प्रयास हो।
नैनीताल की हर चीज को पर्यटन से जोड़ देना कितना उचित और सार्थक है इस पर बहस की जरूरत है क्योंकि प्रकृति के सबसे समृद्ध स्थल राष्ट्रीय पार्क और अभयारणयों में भी संवेदनशील इलाके कोर क्षेत्र के रूप में सुरक्षित किये जाते हैं। निश्चित रूप से समय आ गया है जब यह निर्णय लिया जाना चाहिये कि पहाड़ों में विशेषकर नैनीताल में कैसा पर्यटन होना चाहिये, भीड़भाड़ वाला या साफ सुथरा।