योगेश धस्माना
गढ़वाल का एक शिक्षित एवं जागृति गांव सुमाड़ी कुमाऊँ अचंल की तरह प्रगतिशील प्रतिभाओं की एक आदर्श नर्सरी के रूप में रहा है। लोक जीवन की इसी माटी में श्री राम काला ने सन् 1892 गोविंद राम काला को जन्म दिया। गोविन्द राम के अन्य भाइयों में केवल राम, हरिराम, मुकन्दराम, मनीराम के बाद पॉचवे नम्बर में सबसे छोटे थे। मात्र 8 वर्ष की आयु में पिता के असामयिक निधन के बाद सगे सम्बन्धियों की मदद से इन्होंने प्राथमिक शिक्षा सुमाड़ी जूनियर हाई स्कूल श्रीनगर और इण्टर परीक्षा देहरादून से उत्तीर्ण करने के बाद 1911 में नौकरी की तलाश शुरू की। इस प्रयास में गांव के डॉ. भोला दत्त काला के सहयोग से इनकी भेंट तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर वी.एस स्टौवल से पौड़ी में हुई। इनका अंग्रेजी ज्ञान और प्रतिभा से डिप्टी कमिश्नर ने प्रभावित हो कर क्लर्क की नौकरी देने की पेशकश की। जिसे इन्होंने अस्वीकार कर दिया। इसके बाद इन्होंने लखनऊ जा कर जूनियर टीचर ट्रैनिंग शिक्षा प्राप्त की।
इस बीच पौड़़ी में नव नियुक्त डिप्टी कमिश्नर विढंम ने इनकी प्रतिभा को देकर नायब तहसीलदारी के लिए उपयुक्त मान कर नैनीताल में घुडसवारी प्रशिक्षण के लिए भेजा परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इनके आवेदन को कमिश्नर की संस्तुति के लिए भेजा गया। किन्तु नियुक्ति में देरी देखते हुए इन्होंने चन्दोसी मुरादाबाद में इस बीच कालेज में अध्ययन शुरू कर दिया। इस प्रकार कुछ समय बाद कुमाऊँ कमिश्नर ने इन्हें नायब तहसीलदार पद पर नियुक्त किया। अंग्रेज अधिकारियों ने अल्मोड़ा और कुमाऊँ की तराई में राजस्व प्रबन्ध और उसकी नियमावली तैयार करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी। इस कार्य में इनकी निपुणता कौशल और अंग्रेजी की ड्रॉफ्टिंग को देखते हुए कमिश्नर ने इन्हें तहसीलदारी पद दे दिया। इनसे पूर्व तब केवल जोध सिंह नेगी (1908) और गोविन्द प्रसाद घिल्डियाल सहित हरिराम धस्माना ही तहसीलदारी के पद पर पहुंचे थे।
इस तरह 1911 से 1945 तक अपनी सेवाएं देने के बाद गोविन्द राम काला डिप्टी कलैक्टर (डिप्टी साहब) के पद से सेवानिवृत्त हुए। सुमाड़ी के प्रबुद्व व्यक्ति डी.सी. काला और विमल काला के अनुसार सुमाड़ी में तीन व्यक्ति महेशानन्द बहुगुणा (प्रथम विश्व में सुबेदार पद से यूरोप जाने वाले सैनिक) डॉ. भोला दत्त काला (1856) और गोविन्द राम काला, तीन ऐसी विभूतियां रही जिन्होंने सरकारी सेवा से अवकाश लेकर गांव सुमाड़ी में विशाल भवनों का निर्माण कर रिवर्स पलायन की बुनियाद रखी थी। इनमें गोविन्द राम काला ने गांव में मिडिल स्कूल बना कर बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने का जिम्मा संभाला। इन्ही सगंठित प्रयासों के कारण सुमाड़ी गांव की समस्त 14 जातियों (सवर्ण और शिल्पकार) ने प्रशासनिक सेवा से सैन्य अधिकारी बनने तक सुमाड़ी के गौरव को बढ़ाया।
सेवा निवृत्ति के बाद गोविन्द काला ने अपने जीवन और प्रशासनिक अनुभवों को लिपिवद्व करते हुए 1974 में लखनऊ से ‘मैमोआर्स आफ दि ब्रिटिश राज’ पुस्तक का प्रकाशन किया। गोविन्द राम काला जी का विवाह नन्दप्रयाग के प्रतिस्थित – गोविन्द प्रसाद नौटियाल, पत्रकार के परिवार की कन्या लीलावती से हुआ था। पर्यावरण और वृक्षारोपण के प्रति संवेदनशील हो कर इन्होंने सुमाड़ी में बगीचा लगाया था। जिसे आज भी डिप्टीयाणी के नाम से जाना जाता है।
इनमें पँच पुत्रों में श्यामा चरण काला (टाइम्स आफ इण्डिया के दिल्ली-लखनऊ में प्रमुख रहे थे) लेखक और विचारक दुर्गाचरण काला, (जिम कार्वेट पुस्तक के प्रसिद्व लेखक) श्री चरण (पत्रकार और प्रसिद्व वकील लखनऊ उमा चरण (मर्चेन्ट नेवी में कैप्टिन कमाण्डर) और सबसे छोटे कालीचरण काला पौड़ी में जीवन प्रर्यत्न अधिवक्ता के रूप में काम करते रहे। अब सभी दिवगंत है। गोविन्द राम काला जी की दो पुत्रियां भी थी। इनमें एक नाती निर्मल ढौडियाल बिहार पुलिस के महानिदेशक भी रहे थे। दूसरे विमल मेजर जनरल के पद से सेवा निवृत्त हुए।
इस शानदार और यादगार परिवार को नीव देने वाले गोविन्द प्रसाद काला का निधन 1986 में सुमाड़ी में ही हुआ था।इनके पौत्र और दौहित्र जन आज भी अपनी गांवों की जड़ों से जुड़ कर, गौरवशाली स्मृतियों को जिन्दा रखे हुए है।