डॉ. अतुल शर्मा
शहरों मे पड़ी दरारें
सुरंग मे फसे मज़दूर
खाली हो चुके गांव
सड़को और रेलों के लिए कटे हुए पेड़ों
आती हुई सड़क
और जाते हुए लोग
नदी की तरह
प्रतीक्षा मे हैं
आंखें
गिर रहे पेड़ों और उठ रही आवाज़ों के बीच
आऊंगा मै
ओ मेरे पहाडो़
तुम ही हो न…. लोकगीतों के घर
आऊंगा
घर
इस बार