One Comment

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    Abhay Pant

    इस तरह के व्यावहारिक संरक्षणात्मक आवश्यकताओं से सरकारों को न जाने क्यों परहेज होता है- महोदय, क्या आप नहीं जानते? पूंजीवाद न सिर्फ देश की नीतियों में है, बल्कि नेताओं में भी। 1991 की आर्थिक नीतियों के बाद, एक जंगल क्या, पूरा देश ही बिकने को तैयार है। 1991 में आर्थिक नीतियां बदली ही इसके लिए गई थीं। तब की, देश की (कृत्रिम रूप से निर्मित की गई) बदहाली तो इसके (और पूंजीपतियों द्वारा इसी तरह अन्य देशों के) संसाधनों का बंदरबांट करने के लिए, केवल बहाना मात्र थी। कृषि में हर तरह से सम्पन्न देश आखिर आर्थिक रूप से तंगहाल कैसे हो गया?

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