अभिषेक अग्रवाल
नवीन जोशी की कहानियों का यह तीसरा संग्रह है। ‘अपने मोर्चे पर’ (1992) और ‘राजधानी की शिकार कथा’ (2004) के बाद बहुत लम्बे अंतराल से यह कहानी संकलन प्रकाशित हो रहा है। वे बहुत कम कहानियां लिखते हैं लेकिन अपने समय और समाज पर उनकी पैनी निगाह बनी रहती है। इस बीच आए उनके तीन उपन्यासों- ‘दावानल’ (2006), ‘टिकटशुदा रुक्का’ (2020) और ‘देवभूमि डेवलपर्स’ (2022) का अच्छा स्वागत हुआ। विशेष रूप से उत्तराखण्ड में 1970 के दशक में चले प्रसिद्ध जन आंदोलन ‘चिपको’ (वन बचाओ) की अन्दरूनी त्रासद कथा और पर्वतीय इलाकों से प्रवास की विकट स्थितियों को हिंदी पाठकों के सामने पहली बार एवं बड़ी साफगोई से रखने वाला ‘दावानल’ उपन्यास काफी चर्चित रहा। ‘देवभूमि डेवलपर्स’ आज के उत्तराखण्ड का जीवंत चित्रण है।
नवीन जोशी पर्वतीय जन-जीवन की विकट परिस्थितियों, हर्ष-उल्ल्लास एवं विभिन्न स्तरों पर उसके संघर्ष को बड़ी सम्वेदनशीलता और गम्भीरता से उकेरने वाले कथाकार हैं। उनके पहले संग्रहों की अधिकसंख्य कहानियों और तीनों उपन्यासों में उत्तराखण्ड के भूगोल, इतिहास, संगठन, समाज और उसकी स्थितियाँ एवं संघर्ष, विशेष रूप से महिलाओं की पहाड़-सी ज़िंदगी से पाठकों का साक्षात्कार होता है। इस संग्रह की शीर्षक कथा ‘बाघैन’ पलायन के कारण भुतहा होते गांवों की मार्मिक दास्तान है। बाघ यहां खूंखार जंगली जानवर से अधिक मानव विरोधी विकास का सर्वभक्षी प्रतीक है। निरंतर अमानवीय और अकेले होते महानगरी जीवन के त्रासद पक्ष पर भी नवीन जोशी की बारीक नज़र जाती है। ‘पड़ोसी का मकान’ और ‘शायद वही’, ‘दुर्गंध’, ‘सरवाइवल’, ‘स्वच्छ भारत में गोकरन’ जैसी कहानियां हमारे दैनंदिन जीवन का खुरदरा यथार्थ सामने रखती हैं। ‘दही बाबा’ कहानी बताती है कि इस सबके बावजूद मानवीय रिश्तों की नमी और सुगंध समाज में बची हुई है।
इन कहानियों को पढ़ना जीवन के कटु यथार्थ से गुजरना है लेकिन एक उम्मीद के साथ।