अनिल अश्विनी शर्मा
इला भट्ट नहीं रहीं। यह खबर सुनते ही दिमाग में बात आई “सेवा” वाली इला भट्ट। एक स्त्री की अस्थि-मज्जा जब गांधीमय हो जाती है तो उसका नाम इला भट्ट ही हो सकता है।
महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने सामुदायिकता के सेनानी तैयार करने का जो वैचारिक स्कूल खड़ा किया था, इला भट्ट को उसकी अव्वल विद्यार्थी माना जा सकता है। बा और बापू सामुदायिकता के जरिए भारतीय अर्थव्यवस्था को जो रूप देना चाहते थे इला भट्ट ने अपने स्तर पर उसे “सेल्फ एंप्लायड वूमेन एसोसिएशन” के रूप में खड़ा किया जिसे “सेवा” के रूप में पहचान मिली।
इला भट्ट से वो मुलाकात खासी जीवंत थी। आईआईटी मद्रास के परिसर में मैं उस नाम से अपनी पहचान बताने में हिचक रहा था। लग रहा था कि इतने बड़े कार्यक्रम में शिरकत कर रही मेहमान से अचानक से बातचीत कैसे शुरू कर दूं।
उन्होंने मेरी तरफ देखा। वो इला भट्ट थीं। मैंने उन्हें अपने पत्रकार होने का परिचय देते हुए कहा कि क्या वो कार्यक्रम के बाद दो मिनट मुझसे बात करने के लिए वक्त निकाल लेंगी। उन्होंने कहा कि जरूर।
कार्यक्रम की आयोजक को मेरा उनसे साक्षात्कार लेना पसंद नहीं आया और वे बीच में हस्तपक्षेप करने लगीं। इससे नाराज होकर इला भट्ट ने आयोजक से कहा कि यह ठीक है कि आपने मुझे यहां बुलाया है, लेकिन आपके मेहमान होने के बाद मैं और मेरे विचार आपके बंधक नहीं हो गए हैं।
आपके यहां कुल जमा बीस श्रोता थे और वे उच्च अकादमिक पृष्ठभूमि के हैं। मेरी बातें उनके लिए कितने महत्व की हैं ये तो नहीं पता, लेकिन इस क्षेत्रीय अखबार में, क्षेत्रीय भाषा में छपी मेरी बात को बहुत लोग पढ़ भी लेंगे और समझ भी लेंगे।
इसके बाद उन्होंने मेरी ओर प्यार से देखते हुए और हल्की सी झिड़की देते हुए कहा कि जैसा मैं बोल रही हूं, वैसा ही लिखना, तोड़-मरोड़ मत देना। मैंने सफाई देते हुए कहा कि मैं आपकी बात को रिकार्ड कर रहा हूं ताकि गलती की कोई गुंजाइश नहीं रहे। इस पर वे जोर से हंसने लगीं।
मैंने इला भट्ट से पूछा कि क्या आपको अपने सेवा-कार्य को और विस्तार देने की जरूरत नहीं है? इस पर उन्होंने कहा-इसके लिए संसाधन भी चाहिए। अब तक तो हम देश के 18 राज्यों में काम कर ही रहे हैं।
मेरा दूसरा सवाल था कि आप एक गांधीवादी हैं, देश में लाखों ऐसे लोग हैं जो गांधी को मानते हैं लेकिन उनका काम जमीन पर क्यों नहीं दिखता? महात्मा गांधी ने तो आजादी के आंदोलन में पूरी भारत की महिलाओं को जोड़ लिया था लेकिन आज सक्रिय गांधीवादी महिलाओं की संख्या बहुत कम क्यों है?
इला भट्ट ने कहा-हमारी बहनों को मुझसे अलग क्यों कर रहे हैं। इस देश में मेरी जैसी लगभग 21 लाख गांधीवादी महिलाएं कार्यशील हैं। एक महिला दूसरी महिला को अपना कौशल हस्तांतरित कर रही है। मैंने महात्मा गांधी से यही तो सीखा कि केवल अपने लिए काम मत करो। तुम्हारे काम का दायरा ऐसा हो जो कइयों का भला कर सके।
हमारी गांधीवादी बहनें इसी ध्येय से काम कर रही हैं कि एक-दूसरे का भला करने की इस कड़ी का अपार विस्तार हो।
आप अपने गांधीवादी कार्यक्षेत्र की सबसे बड़ी ताकत क्या मानती हैं? मेरे इस सवाल पर इला भट्ट थोड़ा रुक कर सोचने लगीं। फिर कहा-मैं अपने काम का आकलन खुद कैसे कर सकती हूं। दक्षिण अफ्रीका के गांधीवादी राष्ट्रवादी नेल्सन मंडेला जिन्होंने गांधी के सत्याग्रह की ताकत को महसूसा था और उसे स्थापित करने की कोशिश की थी, उन्होंने मुझसे कहा था कि आपके संगठन सेवा की सबसे बड़ी ताकत इसकी स्वायत्ता और साहस है।यह समूह सच को साहसपूर्वक बोल सकता है।
अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने आपको अपनी आदर्श स्त्री यानी नायिका के रूप में देखा था…मेरा सवाल पूरा होते ही इला भट्ट ने कहा कि वास्तव में वे कह रही थीं कि सेवा के साथ काम कर रहीं 21 लाख महिलाएं उनकी नायिका हैं।
इतना बोलने के बाद वो कुर्सी से उठीं तो मुझे लगा कि अब वे बातचीत बंद करना चाहती हैं तो मैंने अपना रिकार्डर भी बंद कर दिया। उन्होंने हंसते हुए कहा कि आपके सवाल खत्म हो गए? मेरे रिकार्डर फिर से शुरू करने की प्रक्रिया देखते हुए उन्होंने कहा कि जब आपको लिखने की मुसीबत नहीं है तो चलिए हम कैंपस में टहल कर बातचीत करते हैं।
टहलते हुए मैंने उन्हें रेमन मैग्सेसे, राइट लाइवलीहुड, गांधी शांति पुरस्कार और पद्म पुरस्कार से सम्मानित किए जाने के बाबत पूछा तो उन्होंने कहा-ये पुरस्कार मुझे अकेले नहीं मिले बल्कि सेवा से जुड़ी सभी गांधीवादी बहनों को मिले हैं।
मैंने पूछा, सेवा की स्थापना आपने 1972 में की थी लेकिन आपका दिमाग कबसे इसके लिए तैयार होने लगा था। इस पर उन्होंने मुझसे प्रतिप्रश्न किया-गांधी को मानते हो? मैंने कहा, मैं गांधीवादी नहीं हूं लेकिन मैंने गांधी को खूब पढ़ा है। अपने पत्रकारीय जीवन की सबसे बड़ी रिपोर्ट सेवाग्राम जाकर ही लिखी थी।
मेरा जवाब सुनने के बाद इला भट्ट ने कहा-कुछ करने के पहले आपको अपने अंदर की क्षमता को पहचानना जरूरी होता है। मेरे पैदा होने से लेकर मेरे शादी होने तक मेरे आसपास का वातावरण मुझे ऐसा ही काम करने के लिए गढ़ रहा था। महात्मा गांधी की ही बात करूं तो यह सोचा कि मेरे काम से किस वर्ग को सबसे ज्यादा फायदा हो सकता है जो अभी सबसे कमतर है। फिर मुझे अपने सामने का पूरा महिला समाज दिखा। बस एक महिला, महिलाओं के साथ गांधीवादी समाज बनाने के लिए जुट गई। गांधी की सीख के साथ हम सब एक-दूसरे को गढ़ती गईं। बा और बापू की बनाई राह मेरे सामने थी।
अब मेरा उनसे आखिरी सवाल था। भारत जैसे देश में सामाजिक समानता के लिए सहकारी समितियां अचूक नुस्खा हैं। फिर भी अब ऐसी समितियां गिनती की बची रह गई हैं, और जो हैं भी उसका उतना व्यापक असर नहीं हो रहा है। इसकी क्या वजह है? इला भट्ट ने कहा कि सहकारी समित के बनाने के मूल में स्त्री ही है।
स्त्री बचत करती है, स्त्री पुरुषों की तुलना में ज्याद सहिष्णु होती है। स्त्री सामूहिकता की बुनियाद है। देश की महिलाओं को सशक्त करने के लिए सहकारी आंदोलन को बढ़ाना ही होगा। स्त्री सशक्तिकरण के लिए सहकारी समिति से श्रेष्ठ ढांचा और कोई नहीं हो सकता।
‘डाउन टू अर्थ’ से साभार