संजय जोशी
मैं 1985 से किसी न किसी तरह से जसम, युगमंच और ज़हूर भाई को जानता हूँ। तभी से नैनीताल के कॉफी हाउस ‘इंतखाब’ को भी। वैसे ज़हूर भाई को इंतखाब भाई भी कह सकते हैं क्योंकि दोनों आपस में इतना रचे बसे हैं कि एक की कल्पना दूसरे के बिना हो ही नहीं सकती। जो लोग ज़हूर भाई को नहीं जानते जो ‘इंतखाब’ को भी नहीं जानते उन्हें बता दें कि ज़हूर भाई नैनीताल के सबसे जीवंत , प्रभावशाली व सक्रिय रंगकर्मी और ‘इंतखाब’ नैनीताल के मल्लीबाज़ार में स्थित दाल -रोटी के इंतज़ाम के लिए उनके द्वारा शुरू की गई कपड़ों की दुकान जहां कपड़े बिकने से ज्यादा नाटक का कारोबार चलता है।
सुनते हैं इसके शुरूआती समय में आज के साइंस एक्टिविस्ट आशुतोष उपाध्याय अपने पार्टी एक्टिविज़्म ( वे तब सीपीआई एम एल के पूरावक्ती कार्यकर्त्ता थे ) में सोने की जगह यहीं पाते थे और हर रात सोने से पहले उन्होंने ज़हूर भाई को कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो पढ़ाने की बहुत कोशिश की , उनकी कोशिश पूरा होने से पहले ही ज़हूर भाई नींद के आगोश में चले जाते। आज यह जानना दिलचस्प है कि बिना पूरा मेनिफेस्टो पढ़े हुए भी ज़हूर भाई ज्यादा कामरेड बने हुए हैं। इस बात की तस्दीक के लिए नैनीताल के दोस्तों को युगमंच से जुड़े रंगकर्मी अनिल राव की बीमारी और उसमें ज़हूर भाई के गहरे जुड़ाव की याद जरूर होगी। और ऐसी अनेक तस्दीकेँ उनसे जुड़ी हुई हैं , कुछ के बारे में हमें मालूम है कुछ का पता सिर्फ़ ज़हूर भाई को ही है।
इंतखाब में चुपचाप दैनिक अखबार में नज़र घुसाए ज़हूर भाई युगमंच , जसम या होली महोत्सव या किसी और आयोजन की बात सोच रहे होते हैं। शाम होते -होते दुकान के स्टूलों पर किसी नए नाटक की स्क्रिप्ट पर चर्चा या किसी आयोजन की तैयारी की ज़िम्मेदारी बंटने लगती है।
आमतौर पर बहुत शालीन रहने वाले ज़हूर भाई नाटक की रिहर्सल के दौरान भूखे शेर की मानिंद दिखते हैं जिसमें कोई छोटी सी चूक होने पर आपका शिकार तय है। लेकिन ऊँची दहाड़ वाला यह शेर नाटक को सफल बनाने के लिए किसी भी तरह की मेहनत और त्याग कर सकता है।
कवि , संगठनकर्त्ता, कपड़े के दुकानदार , शानदार दोस्त के साथ -साथ यह आदमी सबसे पहले नाटक का आदमी है। नाटक के लिए किसी को इस तरह जान छिड़कते मैंने आज तक नहीं देखा।
ज़हूर भाई को आज उनके 67 वें जन्मदिन पर बहुत सी मुबारकबाद बहुत सी शुभकामनाओं के साथ उन्हें और उनकी पार्टनर मुन्नी भाभी को भी सलाम इतनी शानदार पारी के लिए क्योंकि जैसे ज़हूर भाई का साथ इंतखाब, युगमंच, जसम, प्रतिरोध का सिनेमा के साथ है वैसा ही उनका मुन्नी भाभी के साथ भी है , बल्कि यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि इन सब साथों को खूबसूरती से जोड़े रखने में मुन्नी भाभी की भी शानदार भूमिका है।
उम्मीद है आज शाम के लिए जरूर मुन्नी भाभी की रसोई में कुछ खास पक रहा है जिसकी खुशबू मुझ तक आ रही है।
एक बार फिर से प्यारे ज़हूर भाई को बहुत सी शुभकामनाएं और मुबारक़बाद ।
आप ऐसे ही कमाल रचते रहें।