राजीव लोचन साह
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चन्द्रचूड़ के घर पर होने वाली गणपति पूजा के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वहाँ जाने की खबर से राजनैतिक और न्यायिक हलकों में खलबली मच गई है। छोटी अदालतों में भी न्यायाधीश उन लोगों से मिलने में परहेज करते हैं, जिनके मुकदमे उनकी अदालतों में चल रहे होते हैं। सर्वोच्च न्यायालय तक आते-आते यह अलिखित आचार संहिता बहुत कठोर हो जाती है। बहुधा न्यायाधीश उन मुकदमों से अपने आप को स्वयं ही अलग कर लेते हैं, जिनमें उनके कोई परिचित शामिल हों। सर्वोच्च न्यायालय में अनेकों ऐसे मुकदमे होते हैं, जिनमें भारत सरकार एक पक्ष होती है। ऐसे में देश की कार्यपालिका के प्रमुख के देश की न्यायपालिका के प्रमुख के घर किसी निजी आयोजन में जाने से खलबली मचना स्वाभाविक है। यह कोई सार्वजनिक आयोजन होता तो किसी को आपत्ति नहीं होती। ऐसे अनेक समारोहों में इन दोनों व्यक्तियों की औपचारिक मुलाकात होती रहती है। यदि चन्द्रचूड़ ने यह आयोजन बड़े पैमाने पर किया होता और उसमें अन्य मंत्री, विपक्षी नेता तथा बड़े अधिकारी शामिल होते तो भी शायद इस मामले को इतनी गम्भीरता से नहीं लिया जाता। मगर प्रधानमंत्री के अतिरिक्त अन्य किसी प्रमुख व्यक्ति के उस समारोह में होने की कोई सूचना नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि क्या नरेन्द्र मोदी को मुख्य न्यायाधीश ने आमंत्रित किया था अथवा वे बिना बुलाये ही वहाँ आरती करने चले गये। बहरहाल इस घटना की अनेक तरह से व्याख्या हो रही है। कुछ लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री नवम्बर में सेवानिवृत्त होने वाले चन्द्रचूड़ को कोई बड़ी नियुक्ति का प्रलोभन देकर उनसे सरकार के पक्ष में कोई फैसले करवाना चाहते हैं तो कुछ का मानना है कि महाराष्ट्र, जहाँ गणपति पूजा का विशेष महत्व है, में जल्दी ही होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर नरेन्द्र मोदी गणपति की आरती करने चले गये थे। बहरहाल सभी प्रमुख न्यायविदों ने इस घटना को लेकर चिन्ता व्यक्त की है।